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पार्टी बनाम प्रत्‍याशी

मुद्दा
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सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनावी महासमर की तैयारियां चरम पर हैं। आगामी सात अप्रैल से इस महायज्ञ में अपने वोटों की आहुति से मतदाता लोकतंत्र में व्याप्त प्रदूषण को कम करते हुए उसे मजबूत करेंगे। ऐसा करने से पहले यह सवाल जरूर उनके अंतस को मथ रहा होगा कि वोट डालने के अपने दायित्व का निर्वाह वह किस प्राथमिकता के आधार पर करे। अगर वह किसी पार्टी की रीति-नीति से प्रभावित है और उस पार्टी द्वारा उतारा गया उम्मीदवार उस मतदाता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पा रहा है तो क्या पार्टी के नाम पर खराब छवि वाले उम्मीदवार को वह अपना मत दे दे। राजनीतिक और सामाजिक पंडितों के इस अहम सवाल पर कई मत हो सकते हैं। सभी मतों को लेकर अपनी-अपनी शंकाएं और समाधान बताए-सुझाए जा सकते हैं लेकिन सच्चाई तो यह है कि जब पंचायत चुनाव में पंचायत स्तरीय मसलों पर वोट दिया जाना आदर्श स्थिति मानी जाती है तो राष्ट्रीय स्तर के चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दों को पुष्पित-पल्लवित करने वाली पार्टी को मौका दिया जाना स्वाभाविक सी बात होगी। इस पैमाने पर एक मानक और जोड़ा जा सकता है कि राष्ट्रीय मुद्दों की बात करने वाले राजनीतिक दलों को यह विचार करना चाहिए कि अगर कोई मतदाता उनकी नीतियों से प्रभावित है तो उनके द्वारा पेश किए गए उम्मीदवार को लेकर उसे निराशा हाथ न लगे। यानी ऐसी पार्टियां साफ-सुथरी छवि वाले ऐसे प्रत्याशी जनता के समक्ष पेश करें जिनमें तमाम काबिलियत के साथ नेतृत्व का अहम गुण भी हो। ऐसे में लोकसभा के आम चुनाव में मतदाताओं के बहुमूल्य मतों को दिए जाने की प्राथमिकता के आधार की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

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