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Mudda: जब जब उठी अंगुली

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जब जब उठी अंगुली

गाजियाबाद पीएफ घोटाला

फरवरी, 2008 में तत्कालीन जिला जज रमा जैन ने 82 लोगों के खिलाफ गाजियाबाद कोषागार से गैरकानूनी रूप से रकम निकालने के आरोप में एफआइआर दर्ज करने का आदेश दिया। इन लोगों पर 2001 से 2007 के दौरान कोषागार से सात करोड़ रुपये निकालने का आरोप था। बाद में जिला अदालत के प्रशासनिक अधिकारी आशुतोष अस्थाना ने कुबूल किया कि इस रकम से 36 जज लाभान्वित हुए थे। मामले में आरोपी अस्थाना ने बताया कि इन जजों में एक सुप्रीम कोर्ट से, 11 इलाहाबाद और उत्तराखंड हाई कोर्ट से और 24 उत्तर प्रदेश की विभिन्न जिला अदालतों से जुड़े थे। यह पहला ऐसा मामला है जब देश के मुख्य न्यायाधीश ने सीबीआइ को यह अनुमति दी कि वह मामले में नाम आए जजों से पूछताछ कर सके।


जस्टिस एम भट्टाचार्य

बांबे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को 1995 में इस्तीफा देना पड़ा। इन पर आरोप लगे कि इन्होंने पश्चिम एशिया के एक प्रकाशक से रॉयल्टी के रूप में 80 हजार डॉलर की भारी-भरकम राशि प्राप्त की।


जस्टिस अरुण मदान

21 मार्च, 2003 को राजस्थान हाईकोर्ट से इस्तीफा देना पड़ा। भ्रष्टाचार के एक मामले में जजों की समिति ने आरोपों को सही पाया। इसके अलावा एक महिला डॉक्टर के यौन उत्पीड़न के भी आरोप इन पर लगे थे।


जस्टिस शमित मुखर्जी

दिल्ली हाई कोर्ट के जज रहे शमित मुखर्जी को 31 मार्च, 2003 को इस्तीफा देना पड़ा। करोड़ों रुपये के डीडीए घोटाले में शुरू हुई सीबीआइ जांच में इनका नाम आया था।


जस्टिस सौमित्र सेन

कोलकाता हाई कोर्ट के जज थे। अगस्त, 2008 को मुख्य न्यायाधीश ने इनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की सिफारिश की। हालांकि महाभियोग प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही इन्होंने इस्तीफा दे दिया था।


जस्टिस वी रामास्वामी

1993 में सुप्रीम कोर्ट के जज थे। यही एक मात्र ऐसे जज हैं जिनके खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव पूरा हुआ। हालांकि कांग्र्रेस ने इनके खिलाफ वोट न करके इन्हें बचा लिया लेकिन इसके बाद फिर ये फिर कभी अदालत में नहीं बैठे। घर पर ही बैठकर इन्होंने सेवानिवृत्ति ली।


कायम रहा दिया तले सोलह साल अंधेरा

सुप्रीम कोर्ट ने सोलह साल पहले महिलाओं को कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए दिशा निर्देश जारी किए थे। हर सरकारी और गैर सरकारी दफ्तर में यौन उत्पीड़न की शिकायतों के निपटारे का एक तंंत्र विकसित करते हुए कोर्ट ने कहा था कि जब तक इस बारे में कानून नहीं आ जाता ये दिशा निर्देश कानून की तरह लागू रहेंगे। आज तक कानून नहीं बना और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश ही देश भर में कानून की तरह लागू हैैं। आदेश पर अमल हुआ और सभी सरकारी गैर सरकारी दफ्तरों मे यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच के लिए कमेटियां बनी। लेकिन सोलह सालों में इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया या फिर किसी ने सोचा ही नहीं था कि लोगों को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रहीं छह सात घंटे रोजाना न्याय की चौखट पर गुजारने वाली लड़कियों और महिलाओं की इज्जत भी खतरे में है। न्यायालय परिसर में भी यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच के लिए कमेटी होनी चाहिए। इसी वर्ष जब दिल्ली हाई कोर्ट के एक महिला टायलेट में एक कर्मचारी के ताक झांक की शिकायत आई तो दो महिला वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की और 1997 के विशाखा मामले में दिए गए फैसले की याद दिलाते हुए सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट सहित सभी अदालतों में यौन उत्पीड़न की शिकायत के लिए कमेटी बनाने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली है और परिसर में यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच के लिए कमेटी बना दी। फिलहाल अंतरिम कमेटी है और हाल ही में जारी गजट अधिसूचना के मुताबिक नियमित कमेटी का गठन अभी होना है।


कमेटी के गठन की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाली वरिष्ठ वकील विभा दत्त मखीजा कहती हैैं कि कई बार कोर्ट परिसर में इस तरह की घटनाएं सुनने को मिलती हैैं लेकिन ये सब सिर्फ कारीडोर चर्चा तक रह जाती हैैं। हम चाहते थे कि एक ऐसा तंत्र बने जिस पर पीड़ित और आरोपी दोनों को न्याय मिलने का भरोसा हो। इसी बीच दिल्ली हाई कोर्ट की घटना अखबारों में आई और सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई। मालूम हो कि मखीजा उस कमेटी की भी सदस्य थीं जिसने सुप्रीम कोर्ट परिसर में यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच के लिए गठित होने वाली कमेटी के गठन व कार्यक्षेत्र निर्धारण का मसौदा तैयार किया था। मखीजा कहती हैैं कि हम ऐसी कमेटी चाहते थे जो महिलाओं के साथ बात व्यवहार में पुरुषों को संवेदनशील भी बनाए और यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच भी करे। महिलाओं से बात व्यवहार में संवेदनशीलता लाने के लिए एक आचार संहिता बनाई जाएगी। उसमें बात व्यवहार की सीमा रेखा तय होगी। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में ऐसी शिकायतों की जांच के लिए अंतरिम कमेटी है। नियमित कमेटी बनने में वक्त लग रहा है क्योंकि नियमित कमेटी में वकीलों और उनके साथ काम करने वाले क्लर्क एसोसिएशन के निर्वाचित लोग सदस्य होंगे। निर्वाचित सदस्य होने से पक्षपात के आरोपों की संभावना नहीं रहेगी और पारदर्शिता कायम होगी। जबकि दूसरी ओर अंतरिम कमेटी की सदस्य वकील सावित्री पांडेय कहती हैं कि ऐसा नही है कि सुप्रीम कोर्ट में यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच के लिए कमेटी थी ही नहीं। कमेटी तो थी लेकिन उसका प्रचार प्रसार नहीं था वह नाम मात्र की थी।

(माला दीक्षित)


कैसी होगी जांच कमेटी

† कमेटी में 7 से 13 सदस्य होंगे

† कमेटी के मुखिया सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश होंगे।

† कमेटी में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन, एडवोकेट ऑन रिकार्ड एसोसिएशन, एससीबीए क्लर्क एसोसिएशन के निर्वाचित सदस्य कमेटी के सदस्य होंगे।


कैसे काम करेगी कमेटी

कमेटी दो हिस्सों में काम करेगी। एक तो वह पुरुषों को महिलाओं के साथ बात व्यवहार में संवेदनशील बनाएगी। इसके लिए कार्यशालाएं आयोजित की जाएंगी। इसके अलावा कमेटी सुप्रीम कोर्ट परिसर में यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच और निवारण करेगी।

दोषियों पर कार्रवाई अगर आरोप ज्यादा गंभीर नहीं हैं लेकिन सही पाए गए तो दोषी को चेतावनी दी जाएगी और नोटिस बोर्ड पर उसे दी गई चेतावनी छाप कर लगाई जाएगी।

† अगर आरोप गंभीर होंगे तो दोषी का सुप्रीम कोर्ट में एक वर्ष के लिए प्रवेश रोक दिया जाएगा।

† अगर आरोप बहुत गंभीर हुए तो कमेटी दोषी के खिलाफ पुलिस में एफआइआर दर्ज करने की सिफारिश करेगी।


17 नवंबर 2013  को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘सबके आत्मचिंतन का है वक्त‘ पढ़ने के लिए क्लिक करें.


17 नवंबर 2013  को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘बेदाग हो न्याय और मूर्ति‘ पढ़ने के लिए क्लिक करें.


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