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संतुलित खुराक बनाम भरपेट भोजन
भोजन के अधिकार कानून के तहत प्रति माह प्रति व्यक्ति को पांच किग्र्रा अनाज दिया जाएगा। इसमें चावल, गेहूं या मोटा अनाज शामिल होगा। इस हिसाब से उसे प्रतिदिन 167 ग्र्राम गेहूं, चावल या मोटा अनाज मिलेगा। एक तो यह मात्रा पेट भरने के लिए भी काफी नहीं है। पेट भरने के लिए भी प्रतिदिन के लिहाज से कम से कम इससे अधिक मात्रा में अनाज के साथ दालें या सब्जियों की भी जरूरत होती है। ऐसे में संतुलित या पौष्टिक खुराक की बात करना तो दूर की कौड़ी है। आइए, जानते हैं कि एक संतुलित खुराक में कौन-कौन से तत्व कितनी मात्रा में शामिल होते हैं।
खाद्य सुरक्षा बिल एक नजर में-
योजना: इसके तहत हर महीने प्रति व्यक्ति के हिसाब से पांच किग्र्रा चावल, गेहूं या मोटा अनाज क्रमश: तीन, दो और एक रुपये प्रति किग्र्रा के हिसाब से मुहैया कराया जाएगा।
दायरा: इस योजना से देश की 67 फीसद आबादी यानी 82 करोड़ लोगों की भूख और कुपोषण दूर करने का दावा किया जा रहा है। इनमें से 75 फीसद लोग ग्र्रामीण क्षेत्र से और 50 फीसद शहरी क्षेत्र से होंगे।
कुल खर्च: योजना की कुल लागत 1.30 लाख करोड़ रुपये का अनुमान है। यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का एक फीसद है। वर्तमान में 90 हजार करोड़ रुपये खाद्य सब्सिडी के रूप में सरकार खर्च कर रही है। इस कानून के लागू होने पर सरकार के खजाने से 40 हजार करोड़ रुपये इस मद में और खर्च होंगे।
कुल अनाज की जरूरत: इसके कुल 6.2 करोड़ टन अनाज की जरूरत होगी। प्रक्रिया:भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) द्वारा उचित मूल्य पर राशन की दुकानों के माध्यम से लोगों को सस्ती दरों पर अनाज उपलब्ध कराए जाएंगे। वर्तमान में एफसीआइ पूरे देश में पांच लाख से अधिक ऐसी दुकानें संचालित करता है।
खूबियां: इस योजना से 82 करोड़ लोगों की भूख और कुपोषण मिटाने का दावा किया जा रहा है। महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में इसे एक बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है। परिवार की वरिष्ठ महिला को घर की मुखिया मानते हुए उसके नाम से ही राशन कार्ड जारी किए जाने का प्रावधान है।
खामियां: पहले से ही वित्तीय घाटे के बोझ से हांफते देश के खजाने पर इस कार्यक्रम से और भार बढ़ेगा। इस कार्यक्रम की लागत से वित्तीय घाटा का जीडीपी के 5.1 फीसद पर पहुंचने का अनुमान है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को और विस्तार देने का मतलब है कि रिसाव के नए रास्ते खोलना। तमाम मसलों पर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच असहमति के चलते योजना की कामयाबी पर संदेह जताया जा रहा है।
दुनिया में ऐसी योजनाएं: वैसे तो कई देशों में इससे मिलती जुलती सस्ती दरों पर लोगों को अनाज मुहैया कराने की योजनाएं लागू हैं, लेकिन दक्षिण अफ्रीका, इक्वाडोर, नेपाल, ब्राजील जैसे देश में बाकायदा भोजन के अधिकार कानून को लागू किया गया है।
कानून की कठिनाई
खाद्यान्न मामलों में आत्मनिर्भर बनने के चार दशक बाद देश की जनता को भोजन का अधिकार दिलाने की शुरुआत कर भले ही सरकार अपनी पहल का जश्न मना रही हो, लेकिन कृषि एवं खाद्य विशेषज्ञों के अनुसार यह महज मृग मरीचिका जैसा ही साबित होने वाला है। प्रमुख व्यावहारिक दिक्कतों पर पेश है एक नजर:
आधी-अधूरी आपूर्ति
देश में प्रति व्यक्ति प्रति माह अनाज की औसतन खपत 10.7 किग्र्रा है। इसलिए इस कानून के तहत पांच किग्र्रा मिलने के बाद भी किसी भी आदमी को शेष 5.7 किग्र्रा के लिए बाजार पर आश्रित रहना होगा। यह इस बिल की सार्थकता पर सवाल खड़े करता है।
लागत की समस्या
अभी इस योजना की सालाना लागत करीब 1.3 लाख करोड़ रुपये है। इसे पूरी तरह से लागू करने के लिए समर्थन मूल्य में इजाफे, खरीद, भंडारण और वितरण की लागत में अगर 8-10 फीसद इजाफा मानकर चलें तो कुल लागत 1.40 करोड़ से कम नहीं आने वाली है। इसमें अगर रेलवे द्वारा अनाज की ढुलाई और भंडारण के साथ पीडीएस को चुस्त दुरुस्त करने की लागत को भी शामिल कर लिया जाए तो यह कीमत 2 लाख करोड़ तक पहुंच सकती है। इसका विपरीत असर लोगों पर पड़ सकता है। महंगाई बढ़ सकती है।
पोषण का प्रश्न
शोध बताते हैं कि इसके लिए सभी को स्वच्छ पानी मुहैया कराने, साफ सफाई और महिलाओं को शिक्षा दिलाने की जरूरत है। जिसके लिए भारी मात्रा में निवेश की जरूरत होगी जो बिल में कहीं से भी ध्वनित नहीं होता है।
जर्जर ढांचा
जिस पीडीएस के ढांचे को विस्तार देकर इसका आधार बनाने की बात कही जा रही है, वह पहले से ही जर्जर है। पीडीएस की जिन खामियों को पिछले पचास साल में दुरुस्त नहीं किया जा सका, इसकी बहुत कम गुंजायश दिखती है कि वे इसे अगले साल तक ठीक होंगी। अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो यह योजना बहुत महंगी और असफल प्रयोग साबित हो सकती है।
बेहतर विकल्प
लोगों के बैंक खातों में नकदी देना ज्यादा श्रेयस्कर हो सकता है। पर्याप्त बैकिंग नेटवर्क वाले स्थानों से इसे शुरू किया जा सकता है। धीरे-धीरे इसके दायरे में उन किसानों को शामिल किया जाए जो अपना पूरा अनाज सरकार को नहीं बेचना चाहते। सही भी है कि एक बार तय कीमत पर वे अपना अनाज सरकार को बेचें फिर तय सस्ती दरों पर सरकार से खरीदें। इस जटिल प्रक्रिया से बचा जा सकता है।
जिस खाद्यान्न के बूते हम लोगों को भोजन का अधिकार सुनिश्चित करने जा रहे हैं, उसे भले ही हमारे अन्नदाता अपने खून पसीने की गाढ़ी कमाई से कई गुना अधिक उपजा रहे हों, लेकिन संसाधनों की कमी से बहुत सारा अनाज नष्ट हो जाता है। ऐसे में बाढ़, सूखे की स्थिति में इस अधिकार के सिरे चढ़ने में दिक्कतें आ सकती हैं।
अनाज पर कैसे हो नाज
भंडारण में बर्बादी
साल मात्रा (लाख टन में) नुकसान (फीसद में) नुकसान
2010-11 1.7 0.21 323
2011-12 2.0 0.23 405
2012-13 1.7 0.27 380
2013- 14 0.5 0.37 120
ढुलाई में नुकसान
2010-11 17.7 0.47 281
2011-12 19.6 0.48 333
2012-13 18.4 0.52 339
2013- 14 (जून, 13 तक) 05.2 0.55 106
खाद्यान्न जो जारी नहीं हो सका (खाने लायक नहीं )
साल मात्रा (टन में) नुकसान
2010-11 6,346 6.58
2011-12 3,338 3.32
2012-13 3,148 2.58
2013- 14 (जून, 13 तक) 8,881 9.85
Web Title: malnutrition in india
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