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Lack of Nutrition: मंशा सही मगर तरीका गलत

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मंशा सही मगर तरीका गलत

किरीट एस पारिख

(चेयरमैन, इंटीग्रेटेड रिसर्च एंड एक्शन फॉर डेवलेपमेंट और योजना आयोग के पूर्व सदस्य)


कुपोषण कम करने के लिए एफएसबी की तुलना में शौचालय का अधिकार अधिक महत्वपूर्ण हो सकता है। खाद्य सुरक्षा बिल (एफएसबी) को लागू करने में अगर कारगर तरीका अपनाया जाता तो भुखमरी दूर करने की यह बेहतर योजना साबित हो सकती थी।


लाभान्वितों की पहचान : अभी तक गरीबों की पहचान का हमारा अनुभव बहुत खराब रहा है। इस बार अमीरों की पहचान कर उनको दायरे से बाहर रखने के नजरिये की जरूरत है। 2011 में योजना आयोग ने ग्रामीण भारत में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना की थी। उसके आधार पर गाड़ी और निश्चित जमीन के स्वामी जैसे कुछ मानकों के आधार पर कहा जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्र के 30 प्रतिशत लोग इस आधार पर बाहर किए जा सकते हैं। इस माध्यम से कुछ गैर जरूरतमंद अमीर तो अंदर आएंगे लेकिन कोई भी गरीब योजना के दायरे से बाहर नहीं होगा।


भुखमरी की समस्या : इसके जरिए भुखमरी से पूरी तरह छुटकारा पाने के मसले पर संदेह है। औसतन प्रति व्यक्ति हर महीने 10.7 किग्रा अनाज का उपभोग करता है। ऐसे में एफएसबी के तहत पांच किलो अनाज मिलने के बावजूद उपभोक्ता को 5.7 किलो अनाज बाजार से खरीदने की दरकार होगी। एफएसबी के प्रभाव का बाजार में अनाज की कीमतों पर अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर अनाज की खरीदारी कितनी प्रभावी है? यदि खरीदारी 100 प्रतिशत प्रभावी है तो एमएसपी के अधिक रहने पर बाजार की कीमतें न्यूनतम रहेंगी। इस लिहाज से पांच किलो पर 50 रुपये की सब्सिडी पाने वाले गरीब व्यक्ति को एफएसबी के तहत 10 रुपये प्रति किलो अनाज मिलेगा और उसको बाजार से 5.7 किलो अनाज खरीदने के लिए 20 से 30 रुपये अतिरिक्त खर्च करने होंगे। इस प्रकार यदि बाजार दरों में परिवर्तन नहीं हो तो 20 या 30 रुपये या अधिक से अधिक 50 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह की अतिरिक्त आय पर कुल प्रभाव पड़ेगा। इस तरह अगर आकलन किया जाए तो ग्रामीण गरीबी और भुखमरी को कम करने के मामले में इसका एक से दो प्रतिशत से ज्यादा असर पड़ने की संभावना नहीं है।


कुपोषण : यदि अतिरिक्त आय को पोषण युक्त भोजन पर खर्च किया जाए तो भी कुपोषण को नहीं खत्म किया जा सकता। आकलन है कि एक वर्ग किमी में करीब 200 व्यक्ति खुले में शौच करते हैं। इसको नियंत्रित करने से पहले भोजन की खपत बढ़ाने से कुपोषण पर मामूली असर ही पड़ेगा। अमीर तबके में भी बाल कुपोषण की घटनाएं देखने को मिलती हैं। ऐसे में कुपोषण कम करने के लिए एफएसबी की तुलना में शौचालय का अधिकार अधिक महत्वपूर्ण हो सकता है।


उपयोगिता : एफएसबी के तहत सस्ती दरों पर अनाज पाने के कारण यदि किसान अपने लिए अनाज का उत्पादन बंद कर दे तो इससे उत्पादन पर गंभीर असर पड़ेगा। ऐसे में यदि एफएसबी के तहत केवल आय के स्तर पर सहयोग किया जाए तो प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण बेहतर तरीका हो सकता है। यह तरीका अनाज उत्पादन और बाजार में होने वाली सभी समस्याओं का अंत कर देगा।


सोनिया गांधी का यह कहना सही है कि यदि संसाधनों की जरूरत है तो उनको खोजना होगा। यह बेहतर होगा कि यदि सरकार डीजल, एलपीजी और इस तरह के अन्य मदों पर दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म कर इनको प्राप्त कर सके। ऐसा नहीं होने की दशा में एफएसबी केवल महंगाई और उससे जनित गरीबी और भुखमरी को बढ़ाएगा।

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पोषण मिले तभी मकसद खिले

कविता श्रीवास्तव

(महासचिव, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज)


कानून में भोजन के सबसे महत्वपूर्ण पक्ष पोषण यानी सस्ते में दाल, तेल इत्यादि उपलब्ध कराने का जिक्र ही नहीं है। भारत जैसे कुपोषित देश में महंगाई के मारे इन चीजों की खपत लगातार कम हो रही है। इससे औसतन कैलोरी उपभोग केवल 1900 रह गया है जो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान की खपत से भी कम है। समाज के खाद्य असुरक्षित लोग, बुजुर्ग नि:शक्त जन व बेघरों के लिए सामुदायिक रसोई पर एकदम चुप्पी साधी हुई है।


एक तरह से अभी तक जहां केंद्र सरकार द्वारा देश के 36 प्रतिशत जनता को सस्ता राशन उपलब्ध कराया जा रहा था वह अब 67 प्रतिशत लोगों को पहुंचाया जायेगा। ऐसे में पोषण की दृष्टि से कानून की सफलता को लेकर संदेह करना अनावश्यक नहीं है।


कानून के अच्छे पहलू के तहत परिवार की वरिष्ठ महिला को परिवार का मुखिया मानते हुए उसके नाम राशन दिए जाने का प्रावधान क्रांतिकारी कदम है।  इससे परिवार की खाद्य सुरक्षा अब औरत के हाथ होगी। इसके अलावा स्तनपान कराने वाली मां को प्रसव के छह माह तक छह हजार रुपये दिए जाने की व्यवस्था है। ताकि इस समयावधि के दौरान मां को काम पर न जाना पड़े और वह अपने बच्चे के पास रह सके। इसके अलावा भी पोषण के पहलू पर सोचने की जरूरत है जिससे यह कानून महज एक दैनिक राशन देने वाला कानून बनकर रह जायेगा।


1 सितंबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘संतुलित खुराक बनाम भरपेट भोजन’ कठिन राह पर चलना है मीलों’ पढ़ने के लिए क्लिक करें.


1 सितंबर  को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘मिटेगी भूख खत्‍म होगा कुपोष्‍ण’ कठिन राह पर चलना है मीलों’ पढ़ने के लिए क्लिक करें.


Web Title: malnutrition in india

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