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Lack of Nutrition: मिटेगी भूख खत्‍म होगा कुपोष्‍ण

मुद्दा
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दावे में कितना दम

बिल

खाद्य सुरक्षा अधिकार। देश में एक बड़े तबके को दो जून की रोटी मुहैया कराने की पहल। भोजन प्राप्त करना अब उन सभी लोगों का हक होगा उन्हें किसी के रहमोकरम पर नहीं आश्रित होना होगा। अधिकार की अवहेलना होने पर इस कानून के आधार पर अदालत का दरवाजा भी खटखटाया जा सकेगा। इस ऐतिहासिक कानून की इबारत लिखी जा चुकी है। सरकार इसे पारित करवाने को कृतसंकल्प दिख रही है। लोकसभा में खाद्य सुरक्षा कानून को मंजूरी भी मिल चुकी है।


विडंबना

आम चुनाव से ठीक पहले बिल को लाए जाने के समयकाल पर खड़े किए जा रहे सवाल को अगर दरकिनार कर दिया जाए तो भी इस प्रस्ताव को लेकर विसंगतियों और असहमतियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। आजादी के छह दशक बाद और हरितक्रांति के चार दशक बाद अगर हमारे नीति नियंता इस तरीके का कोई कानून लाकर मुदित हो रहे हों तो यह उनकी विफलता का ही द्योतक है। 21वीं सदी में एक तरफ जहां पौष्टिक आहार की बातें हो रही हों, न्यूट्रीशियन-डायटीशियन की सलाह पर संतुलित आहार लेने पर जोर दिया जा रहा हो, सुपोषण-कुपोषण के सख्त उच्चस्तरीय मानकों को लेकर बहस जारी हो, ऐसे में हम महज पांच किलो सूखे अनाज के वितरण को लेकर अपनी पीठ ठोंक रहे हैं, जिस अनाज की क्वालिटी को लेकर कोई गारंटी नहीं है और उस अनाज से जो भोजन बनेगा, उसका तो भगवान ही मालिक है।


विधान

एक बार को अगर यह मान भी लिया जाए कि विकासशील देश भारत में आज भी बड़ी संख्या में लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं और उस स्थिति में उनके लिए अनाज मुहैया कराना ही बड़ी उपलब्धि से कम नहीं हैं। लेकिन प्रस्तावित योजना में तमाम ऐसी विसंगतियां और विकृतियां हैं जो इसके मकसद को पूरा होने में बड़ी बाधक हैं। जब तक इन चुनौतियों से पार नहीं पा लिया जाएगा तब तक सरकार का बेड़ा पार भले ही हो जाए आम जनता की भूख शांत नहीं होने वाली है। पोषण और संतुलित भोजन की बात तो किसी मृगमरीचिका से कम नहीं है। ऐसे में संप्रग सरकार द्वारा चुनाव से ठीक पहले लाए जाने वाले तथाकथित इस ऐतिहासिक कानून की पड़ताल हम सबके लिए सबसे बड़ा मुद्दा है।

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ऐतिहासिक मौके पर चूक गए हम

दीपा सिन्हा

(खाद्य एवं जन स्वास्थ्य मसलों की स्वतंत्र शोधकर्ता और भोजन के अधिकार अभियान की कार्यकर्ता)

भुखमरी और कुपोषण को खत्म करने के लिए इस ऐतिहासिक अवसर का सरकार पूरा लाभ नहीं उठा सकी। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा बिल (एनएफएसबी) ऐसे समय में पारित हुआ है जब करीब आठ करोड़ टन अनाज सरकारी गोदाम में भरा है और भुखमरी के बढ़ते मामले सामने आ रहे हैं। इस लिहाज से गरीबों के लिए यह जीत के समान है। साथ ही यह निराशाजनक भी है कि सरकार देश से भुखमरी और कुपोषण को खत्म करने के लिए इस ऐतिहासिक अवसर का पूरा लाभ नहीं उठा सकी।


इस बिल के यद्यपि कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं। इसके जरिये विशेष रूप से गरीब राज्यों की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में बहुत सुधार की संभावना है। पीडीएस में अभी तक गरीबी रेखा का महत्व रहा है। उसी आधार पर आबादी गरीबी रेखा के ऊपर (एपीएल)और नीचे (बीपीएल) निर्धारित की गई। अब इस नए बिल से पीडीएस इस गरीबी रेखा से कट गई है। इसके मुख्य रूप से दो फायदे होंगे। पहला, गरीब राज्यों में इसका दायरा बढ़ेगा। इसलिए उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और असम में इस एक्ट के जरिये 80 प्रतिशत ग्रामीण आबादी इसके दायरे में आएगी। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ का अनुभव बताता है कि दायरा बढ़ने से पीडीएस व्यवस्था में सुधार हुआ है। दूसरा, गरीबों की पहचान की जटिल और अपारदर्शी प्रक्रिया के बजाय अब अमीरों को दायरे से बाहर कर शेष आबादी को इसके अंतर्गत लाया जा सकेगा। पीडीएस तंत्र की वर्तमान व्यवस्था के तहत करीब आधी गरीब आबादी के पास बीपीएल कार्ड नहीं है। इस प्रकार इसके जरिये दायरे से बाहर होने के मामले में न्यूनतम विसंगति होगी।


यद्यपि पहचान की कसौटी के मामले में बिल खामोश है तो ऐसे में यह खतरा है कि राज्य सरकारें इसके बजाय लाभार्थियों की पहचान का कोई अलग तरीका अख्तियार कर लें। बिल का अन्य सकारात्मक पहलू इसका महिला सशक्तीकरण से संबंध है। राशन कार्ड महिलाओं के नाम पर जारी किए जाएंगे। सार्वभौमिक मातृत्व अधिकार सभी गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को दिए जाएंगे।


हालांकि एनएफएसबी की दृष्टि बहुत महत्वाकांक्षी नहीं रही है और भोजन के अधिकार के मामले में केवल जुबानी जमा खर्च किया गया है। इसकी पहली बड़ी खामी यह है कि इसमें किसानों के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। देश की 60 फीसद आबादी जीविकोपार्जन के लिए कृषि पर निर्भर है और 52 प्रतिशत अनाज का उत्पादन छोटे और सीमांत किसानों द्वारा किया जाता है। यही लोग मुख्य रूप से इस खाद्य बिल की रीढ़ की हड्डी होंगे। ऐसे में इनको पर्याप्त एमएसपी, विकेंद्रित सरकारी खरीद और उत्पादन के लिए प्रोत्साहन समेत विभिन्न उपायों से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। लिहाजा इस बिल में व्यवस्था की जानी चाहिए कि देश के सभी राज्यों से खरीद का तंत्र विकसित हो और सीधे छोटे किसानों से खरीद सुनिश्चित हो ताकि उनको बढ़िया दाम मिल सकें। दूसरा, कुपोषण को खत्म करने के लिहाज से केवल पांच किलो अनाज पर्याप्त नहीं है। तीसरा, शहरी क्षेत्रों में सामुदायिक किचन और जरूरतमंदों के लिए भोजन कार्यक्रम का प्रावधान नहीं किया गया है।  चौथा, अब इसके बजट में बढ़ोतरी होगी लेकिन व्यावसायिक हितों को इसका लाभ लेने से रोकने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश बिल में नहीं दिए गए हैं। पांचवां, शिकायत निवारण प्रकोष्ठ पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं है। उसमें कम दंड का प्रावधान किया गया है गांव और पंचायत स्तर पर प्रभावी तरीका नहीं अख्तियार किया गया है।


1 सितंबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘संतुलित खुराक बनाम भरपेट भोजन’ कठिन राह पर चलना है मीलों’ पढ़ने के लिए क्लिक करें.


1 सितंबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘मंशा सही मगर तरीका गलत’ कठिन राह पर चलना है मीलों’ पढ़ने के लिए क्लिक करें.


Web Title: malnutrition in india

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