- 442 Posts
- 263 Comments
सरहद
पाकिस्तान की तरफ से जारी लगातार संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाओं से इन आशंकाओं को बल मिलता है कि सीमा पर पाकिस्तान एक बड़े युद्ध की तैयारी कर रहा है। इस साल कश्मीर सीमा पर इस तरह की सबसे ज्यादा घटनाएं हुई हैं। दूसरी तरफ लद्दाख के बाद पिछले दिनों अरुणाचल प्रदेश के 20 किमी भीतर तक चीनी फौजें कई दिनों तक डेरा डाले बैठी रहीं।
समस्या
पाकिस्तान में नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने के बावजूद सत्ता पर पकड़ फौज की ही है जो भारत को लगातार उकसाने की कार्रवाई में लगी है। पिछले दिनों भारतीय विदेश सचिव की अपने चीनी समकक्ष से मुलाकात के बावजूद चीनी घुसपैठ की ताजा घटना परेशान करने वाली है।
शक्ति
इन घटनाओं के मद्देनजर कहा जा सकता है कि पाकिस्तान और चीन मिलकर सरहद पर भारत को घेरने की कोशिशों में लगे हैं। संभवत: इसीलिए लद्दाख में चीनी मुहाने के निकट पिछले दिनों भारतीय वायुसेना ने भी भारी-भरकम हरक्युलिस को उतारकर दम-खम का परिचय दिया है। इन सबके बावजूद मौजूदा परिस्थितियों में दोतरफा चुनौती के मुकाबले के लिए सुनियोजित राजनीतिक-सैनिक रणनीति की दरकार हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
……………….
सीमा पर शांति का सवाल
–प्रो उमा सिंह
(साउथ एशियन स्टडीज, स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज, जेएनयू)
पाकिस्तानी सेना ने न सिर्फ नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर दबाव बनाया बल्कि अफगानिस्तान में भारतीय हितों को भी प्रवाहित करने की कोशिश की।
भारत और पाकिस्तान एक दूसरे के खिलाफ संघर्ष विराम के उल्लंघन का आरोप लगा रहे हैं। इस माहौल में अगले महीने न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मनमोहन सिंह की प्रस्तावित मुलाकात के मसले पर भारत ने खामोशी अख्तियार कर रखी है।
पाकिस्तान में चुनाव के दरम्यान नवाज शरीफ ने भारत के साथ दोस्ताना रिश्तों का वादा किया था और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी इसी भावना को व्यक्त करते रहे। इसके विपरीत पाकिस्तानी सेना ने न सिर्फ नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर दबाव बनाया बल्कि अफगानिस्तान में भारतीय हितों को भी प्रवाहित करने की कोशिश की। तीन अगस्त को जलालाबाद में भारतीय कांसुलेट पर हमला उसकी मिसाल है। पाकिस्तान के लिए अफगानिस्तान काफी हद तक भू-रणनीतिक महत्व रखता है। उसकी दशकों से भारत को संतुलित रखते हुए अफगानिस्तान में मजबूत पकड़ बनाए रखने की रणनीति रही है। इसलिए अफगानिस्तान में अपने ‘रणनीतिक लाभ’ के लिए भारतीय प्रभाव को यथासंभव रोकने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि अविश्वास के इस वातावरण में दोनों देशों के बीच क्या बातचीत हो सकती है? दोनों तरफ की सीमाओं पर तनाव और लोगों के बीच उन्माद बढ़ने से क्या लाभ या हानि होगी? इस संदर्भ में यह समझने की जरूरत है कि पाकिस्तानी सेना का राष्ट्रीय सुरक्षा के निर्णयों में प्रभाव है जिनका असर दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय सुरक्षा पर पड़ता है।
भारतीय सिविल सोसायटी में भी मांग उठ रही है कि हमको आपरेशन पराक्रम के स्टाइल सरीखी आक्रामक कूटनीति को अपनाना चाहिए। यह वाजपेयी-ब्रजेश मिश्रा-मनमोहन सिंह कूटनीतिक लाइन के उलट है। यह समझने की जरूरत है कि इस आक्रामक रणनीति की कीमत चुकानी होगी। जिहादी तत्व (पाकिस्तानी सेना में भी शामिल) तो मना रहे हैं कि दोनों देशों के बीच तनाव बढ़े और कश्मीर मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में आ जाए।
वक्त की मांग है कि दृढ़ता का परिचय देते हुए भारतीय नेतृत्व पाकिस्तान को शांति का माहौल बनाने के लिए राजी करे। अतीत की तुलना में वहां की सभी बड़ी पार्टियां भारत के साथ संबंध सुधारने पर सहमत हैं। पाकिस्तान में मुंबई पर हुए 26/11 आतंकी हमले में शामिल आतंकियों के खिलाफ चल रहे केस में कुछ खास प्रगति नहीं होने से भारत चिंतित है। यह कई द्विपक्षीय मसलों पर सहमति के बीच बड़ा रोड़ा है।
इन सबके बावजूद मजबूत और स्थिर पाकिस्तान भारतीय हित में है। अपने हितों के लिए हमें कश्मीर मुद्दे के समाधान की तरफ देखना चाहिए। यद्यपि यह भी सही है कि कश्मीर के बजाय पाकिस्तान की प्रकृति और हमारे प्रति उसका आक्रामक रुख दोनों पक्षों के बीच सबसे अहम मसला है। पाकिस्तान से होने वाले हमलों में उसके इन्कार के पीछे प्रमुख रूप से चार पृथक शक्तियां सिविल सरकार, सेना, आइएसआइ और आतंकवादी जिम्मेदार हैं जो एक-दूसरे की आड़ में जवाबदेही से बच जाती हैं। भारत के खिलाफ दुश्मनी पाकिस्तानी सियासत में सेना की स्थायी भूमिका को बताती है जो सिविल सरकार के बावजूद देश को चला रही है। नवाज शरीफ सेना पर लगाम लगाने में कितना सफल होंगे यह निकट भविष्य में देखने को मिलेगा।
Read Comments