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अधूरी तैयारी
प्रमुख परियोजनाएं
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आपदा के बाद राहत की सोच से उबरना जरूरी
आठ साल पहले राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण बनाया गया था, लेकिन उत्तराखंड में आई तबाही से साबित हो गया है कि आपदा प्रबंधन में हम ढाई कोस से ज्यादा नहीं चल पाए हैैं। आपदा की तैयारियों और दिक्कतों के बारे में प्राधिकरण के उपाध्यक्ष शशिधर रेड्डी से हमारे विशेष संवाददाता नीलू रंजन ने बात की। पेश है प्रमुख अंश…
उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन के तैयारियों की हवा निकल गई है?
जिस तरह से यह घटना घटी। इतने कम समय में इतना ज्यादा बारिश हुई और पहले से इसकी कोई सूचना नहीं थी। पूर्व सूचना होती, तो जरूर उससे फायदा होता। पूर्व सूचना देने की हमारी प्रणाली ठीक नहीं है। वैसे वहां किसी ने अंदाजा नहीं लगाया कि आपदा इतना भयंकर हो सकती है और एक बार हो जाने के बाद ज्यादा कुछ करने को नहीं बचता है।
हम हमेशा घटना के बाद जागते है?
इसे इस रूप में देखिए कि हम कहां से चले थे और कहां पहुंचे हैैं। आज हम आपदा से निपटने में अत्याधुनिक विज्ञान व तकनीक का इस्तेमाल कर रहे है। पहले हम केवल आपदा के बाद राहत के बारे में सोचते थे। हमारी अब जो प्लानिंग हो रही है, उसमें आपदा प्रबंधन को अहम स्थान दिया जा रहा है।
आपदा प्रबंधन की तैयारियों पर सीएजी के उठाए सवाल सही साबित हो रहे हैं?
ऐसा नहीं है। आपदा प्रबंधन में भारत की तुलना में जापान बहुत आगे है, लेकिन 2011 में सुनामी आने पर उसकी सारी तैयारी धरी की धरी रह गई।
तो क्या हमारी तैयारी पूरी है?
हमें अपनी तैयारियों को बहुत बढ़ाना है, इसमें कोई शक नहीं है। हमारे जितने संसाधन हैैं, उनको हम इस्तेमाल करना सीख रहे हैैं। लोगों में जागरूकता लाना है। भूकंप जैसी आपदा को ध्यान में रखे बिना लोग मकान बनाते जा रहे हैैं। अतिक्रमण करते जा रहे हैैं। ऐसे में क्या किया जा सकता है।
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों की स्थिति बहुत ही बदतर है?
ऐसा नहीं है कई जगहों पर यह बहुत ही अच्छा कर रहे हैं। यह एक नई व्यवस्था है इसे खड़ा होने में समय लगता है। वैसे इसमें सबसे बड़ी समस्या हमारी पुरानी सोच है, जिसमें केवल आपदा के बाद राहत का काम किया जाता था और फिर अगले आपदा का इंतजार करते थे। यह सोच धीरे-धीरे बदलेगी। आपदा से नुकसान को रोकने के लिए पहले से तैयारी के बारे में हम अभी नहीं सोचते है।
अस्तित्व में आने के पांच साल बाद भी उत्तराखंड का आपदा तंत्र कोई काम नहीं कर रहा है?
मुझे पूरी जानकारी नहीं है। यदि ऐसा हुआ है, तो उसके बारे में सोचना जरूरी है और उसको बेहतर बनाया जाएगा।
इस घटना के बाद हिमालय क्षेत्र में आपदा प्रबंधन की नई योजना पर कोई विचार हो रहा है या नहीं?
फिलहाल हम चारधाम यात्रा के बारे में सोच रहे हैैं कि किस तरह से सुरक्षित बनाया जा सकता है। राज्य सरकार को जल्द ही इस पर रिपोर्ट देने को कहा गया है। इसके बाद हम देखेंगे कि क्या-क्या करना है?
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