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आपदा के बाद राहत की सोच से उबरना जरूरी

मुद्दा
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अधूरी तैयारी

प्रमुख परियोजनाएं


  • खतरों के आकलन का नक्शा (वुनरेबिलिटी एटलस): भूकंप, भूस्खलन, बाढ़ का काम अधूरा, सुनामी चक्रवात को लेकर काम की शुरुआत  तक नहीं
  • शहरों का माइक्रोजोनेशन (भूकंप की आशंका के हिसाब से शहरों को अलग-अलग हिस्सों में बांटना): भूतकनीकी पड़ताल बीच में बंद, राज्यों व केंद्रीय नगर विकास मंत्रालय के बीच आकलन की गफलत


  • राष्ट्रीय भूकंप जोखिम नियंत्रण परियोजना: 2007 में मंजूर, 2010 तक गृह मंत्रालय ने नहीं दी वित्तीय मंजूरी, 2012 में नए सिरे से तैयारी
  • राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम नियंत्रण परियोजना: 2007 में शुरू, अगस्त 2011 में बंद, नवंबर 2011 में फिर खुली फाइल

  • राष्ट्रीय बाढ़ जोखिम नियंत्रण परियोजना: 2007 में शुरू, 2009 में जल संसाधन मंत्रालय की आपत्ति, परियोजना का दायरा सिकुड़ा
  • मोबाइल रेडिऐशन डिटेक्शन  सिस्टम: 2011 में मंजूर, अभी तक उपकरणों की खरीद भी नहीं
  • नेशनल स्कूल सेफ्टी प्रोग्राम: 2008 में परियोजना की भूमिका बनी, 2012 तक कई गतिविधियां लंबित

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  • संचार परियोजनाएं
  • नेशनल डाटाबेस फॉर इमरजेंसी मैनेजमेंट: 2006 में शुरू अभी तक केंद्रीय अधिकारी तैनात नहीं, राज्यों और केंद्रीय मंत्रालयों ने नहीं दी जरूरी सूचनाएं
  • नेशनल डिजास्टर कम्युनिकेशन नेटवर्क: 2007 में शुरू, अभी तक चल रही तैयारी


  • सेटेलाइट बेस्ड कम्युनिकेशन नेटवर्क फॉर डिजास्टर मैनेजमेंट: 2005 में पूरी होनी थी परियोजना, 2006 में शुरू हुआ काम, 6.77 करोड़ का खर्च लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय व आवास में बने केंद्र भी निष्क्रिय
  • एयरबोर्न लेजर टरेन मैपिंग एंड डिजिटल कैमरा सिस्टम: मूलत: बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के पूर्वानुमान के लिए। उपकरणों की खरीद 2004 में लेकिन परियोजना पूरी नहीं हुई। 2010 तक कोई सर्वे नहीं


  • डिजास्टर मैनेजमेंट सिंथेटिक अपर्चर राडार: 2003 में परियोजना मंजूर, 29 करोड़ का खर्च, काम पूरा नहीं
  • डॉप्लर वेदर राडार: 2006 में मंजूर, 35.64 करोड़ का खर्च मगर राडार नहीं लगे
  • नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट इंफॉर्मेटिक्स सिस्टम: 2008 में बनी योजना, नेशनल रिमोट सेंसिंग को दिया गया काम लेकिन अब तक गृह मंत्रालय की मंजूरी नही

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आपदा के बाद राहत की सोच से उबरना जरूरी

आठ साल पहले राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण बनाया गया था, लेकिन उत्तराखंड में आई तबाही से साबित हो गया है कि आपदा प्रबंधन में हम ढाई कोस से ज्यादा नहीं चल पाए हैैं। आपदा की तैयारियों और दिक्कतों के बारे में प्राधिकरण के उपाध्यक्ष शशिधर रेड्डी से हमारे विशेष संवाददाता नीलू रंजन ने बात की। पेश है प्रमुख अंश…


उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन के तैयारियों की हवा निकल गई है?

जिस तरह से यह घटना घटी। इतने कम समय में इतना ज्यादा बारिश हुई और पहले से इसकी कोई सूचना नहीं थी। पूर्व सूचना होती, तो जरूर उससे फायदा होता। पूर्व सूचना देने की हमारी प्रणाली ठीक नहीं है। वैसे वहां किसी ने अंदाजा नहीं लगाया कि आपदा इतना भयंकर हो सकती है और एक बार हो जाने के बाद ज्यादा कुछ करने को नहीं बचता है।


हम हमेशा घटना के बाद जागते है?

इसे इस रूप में देखिए कि हम कहां से चले थे और कहां पहुंचे हैैं। आज हम आपदा से निपटने में अत्याधुनिक विज्ञान व तकनीक का इस्तेमाल कर रहे है। पहले हम केवल आपदा के बाद राहत के बारे में सोचते थे। हमारी अब जो प्लानिंग हो रही है, उसमें आपदा प्रबंधन को अहम स्थान दिया जा रहा है।


आपदा प्रबंधन की तैयारियों पर सीएजी के उठाए सवाल सही साबित हो रहे हैं?

ऐसा नहीं है। आपदा प्रबंधन में भारत की तुलना में जापान बहुत आगे है, लेकिन 2011 में सुनामी आने पर उसकी सारी तैयारी धरी की धरी रह गई।


तो क्या हमारी तैयारी पूरी है?

हमें अपनी तैयारियों को बहुत बढ़ाना है, इसमें कोई शक नहीं है। हमारे जितने संसाधन हैैं, उनको हम इस्तेमाल करना सीख रहे हैैं। लोगों में जागरूकता लाना है। भूकंप जैसी आपदा को ध्यान में रखे बिना लोग मकान बनाते जा रहे हैैं। अतिक्रमण करते जा रहे हैैं। ऐसे में क्या किया जा सकता है।


राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों की स्थिति बहुत ही बदतर है?

ऐसा नहीं है कई जगहों पर यह बहुत ही अच्छा कर रहे हैं। यह एक नई व्यवस्था है इसे खड़ा होने में समय लगता है। वैसे इसमें सबसे बड़ी समस्या हमारी पुरानी सोच है, जिसमें केवल आपदा के बाद राहत का काम किया जाता था और फिर अगले आपदा का इंतजार करते थे। यह सोच धीरे-धीरे बदलेगी। आपदा से नुकसान को रोकने के लिए पहले से तैयारी के बारे में हम अभी नहीं सोचते है।


अस्तित्व में आने के पांच साल बाद भी उत्तराखंड का आपदा तंत्र कोई काम नहीं कर रहा है?

मुझे पूरी जानकारी नहीं है। यदि ऐसा हुआ है, तो उसके बारे में सोचना जरूरी है और उसको बेहतर बनाया जाएगा।


इस घटना के बाद हिमालय क्षेत्र में आपदा प्रबंधन की नई योजना पर कोई विचार हो रहा है या नहीं?

फिलहाल हम चारधाम यात्रा के बारे में सोच रहे हैैं कि किस तरह से सुरक्षित बनाया जा सकता है। राज्य सरकार को जल्द ही इस पर रिपोर्ट देने को कहा गया है। इसके बाद हम देखेंगे कि क्या-क्या करना है?


23 जून को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘कुदरत का खेल हमारा प्रबंधन फेल‘ पढ़ने के लिए क्लिक करें.


23 जून को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘आपदा के लिए हम हैं जिम्मेदार’ पढ़ने के लिए क्लिक करें.


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