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हरियाणा लिख रहा नई इबारत

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Women Power

और जीत लिया बोरलाग पुरस्कार

वल्र्ड फूड प्राइज फाउंडेशन में पिछले वर्ष ‘नार्मन बोरलाग पुरस्कार’ जीतने वाली देश की पहली महिला बंगाल की हैं। कोलकाता से सटे उत्तर 24 परगना जिले की अदिति मुखर्जी सिर्फ बोरलाग पुरस्कार पाने वाली ही नहीं बल्कि देश में दूसरी हरित क्रांति की दूत बनकर उभरी हैं। नई दिल्ली स्थित अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान में शोधकर्ता अदिति ने भूगर्भ जल पर किए गए अपने शोध से देश कीकृषि पद्धति में अभिनव क्रांति का आगाज किया है। उनकी इस उपलब्धि को पूरी दुनिया ने सराहा है।


15 नवंबर, 1976 को जन्मीं अदिति मूल रूप से उत्तर 24 परगना जिले के सोदपुर की रहने वाली हैं। उन्होंने प्रेसिडेंसी कालेज से भूगोल में आनर्स किया। इसके बाद उन्होंने दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय और फिर आइआइटी मुंबई में पढ़ाई की। एमटेक के बाद वह पीएचडी करने इंग्लैंड चली गईं। लंदन से लौटने के बाद उन्होंने भू-जल पर शोध शुरू कर दिया। अदिति कहती है कि ‘2004 में जब मैं पीएचडी कर रही थी, उसी समय मैंने महसूस किया कि देश के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर बंगाल व बिहार जैसे पूर्वी राज्यों में अच्छी बारिश होने और भूगर्भ जल का स्तर ऊंचा होने के बावजूद वहां खेती में पानी की किल्लत सामने आ रही है। मैं उसी समय इसे लेकर अनुसंधान में जुट गई। पहले चरण में मैंने लगभग एक हजार किसानों से बातचीत की। मैंने पाया कि बिजली और सिंचाई के लिए पंप की मुकम्मल व्यवस्था नहीं होने का खेती पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ रहा है। जब मैंने कार्य शुरू किया तो कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया। उन्होंने उम्मीद जताई कि बंगाल में विशेषकर जलपाईगुड़ी, मालदा और कूचबिहार जैसे उत्तर के जिलों में आने वाले समय में निश्चित रूप से इसका फायदा देखने को मिलेगा। अदिति अब यह पता लगाने में जुटी हुई हैं कि उनके अनुसंधान का क्या प्रभाव पड़ा हैं? दिल्ली में अपने पति के साथ रहने के बावजूद उनका अक्सर सोदपुर आना-जाना लगा रहता है। उन्हें वल्र्ड फूड प्राइज फाउंडेशन की ओर से फील्ड रिसर्च के लिए यह पुरस्कार दिया गया है।


Women Power

उन्हें पिछले वर्ष 17 अक्टूबर को आयोवा में सम्मानित किया गया। पुरस्कार के तहत 10 हजार डॉलर (करीब साढ़े पांच लाख रुपये) की राशि दी गई। उनके शोध के आधार पर पश्चिम बंगाल में नीतियां तक बदली गईं और किसानों को लाभ पहुंचा। अदिति कहती हैं कि इससे मेरे वर्षों के काम को नई पहचान मिली है। राज्य में दूसरी हरित क्रांति की राह प्रशस्त हो रही है। अनुसंधान के बाद दिए गए सुझाव नीति-निर्माताओं को प्रासंगिक लगे और उन्होंने सही फैसले किए।’ उन्होंने कहा कि भू-जल दोहन के लिए बिजली की उचित कीमत निर्धारित करने जैसी नीतियां काम कर रही हैं। बिहार और असम भी इस मामले में बंगाल का अनुकरण कर सकते हैं और यह इलाका भारत का नया अन्न भंडार हो सकता है।

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Women Power: जीवन में सब कुछ मुमकिन है

देहरादून की दिलराज कौर को देखकर यकीन नहीं होता कि यह वही लड़की है, जिसे स्कूल पढ़ाने को राजी नहीं थे। दाखिला मिला तो सहपाठी उसके साथ बैठना नहीं चाहते, रिश्तेदार और पड़ोसी उसे देख नाक-भौं सिकोड़ने लगते थे। दून की इस बेटी के शरीर के बाएं हिस्से में समस्या जन्मजात है। बकौल दिलराज, ‘मां बताती हैं मेरे पैदा होने के बाद सब लोगों में तरह-तरह की बातें होने लगी मगर मां ने इन सब बातों पर कभी गौर नहीं किया। मां ने हमेशा हिम्मत से काम लिया और सात साल में इस लायक बनाया कि मैं चलने लगी। कोई स्कूल दाखिला लेने को राजी नहीं था। किसी तरह स्कालर्स होम में दाखिला मिला। मैं तीसरी कक्षा में थी कि एक दिन स्कूल से यह कहकर निकाल दिया कि विकलांग होने के कारण मैं स्कूल का डेकोरम मेंटेन नहीं कर पाती। तब श्री गुरुराम राय एजुकेशन मिशन ने मेरी मदद की। एसजीआरआर में तीसरी कक्षा में मेरा दाखिला हुआ।’ वह बताती हैं ‘पापा के दोस्त की सलाह पर 2004 में अंतराष्ट्रीय शूटर जसपाल राणा की मझौन स्थित शूटिंग रेंज में प्रैक्टिस शुरू की। मेरे लिए यह बड़ी चुनौती थी, लेकिन मां के हौंसले से मुझमें जैसे एक शक्ति का संचार हुआ।’ अगस्त 2004 में राज्य शूटिंग चैंपियनशिप में एयर पिस्टल स्पद्र्धा (10 मीटर)में स्वर्ण जीतने के बाद दिलराज ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। दो दर्जन से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय निशक्त श्रेणी शूटिंग प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी दिलराज करीब दो दर्जन से ज्यादा पदक जीत देश की प्रथम निशक्त महिला शूटर बन चुकी हैं।

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Women Power: हरियाणा लिख रहा नईइबारत

सीमा सुरक्षा में भी राज्य की बेटियों ने कमाल किया है। रुचि और भावना ने समुद्री सीमाओं की सुरक्षा कमान थाम रखी है।लिंग अनुपात के लिहाज से राष्ट्रीय फलक पर हरियाणा भले ही बदनामी झेल रहा हो लेकिन इसकी शान भी लड़कियां ही हैं। मौजूदा भारतीय महिला हाकी टीम की ज्यादातर लड़कियां हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के शाहबाद कस्बे से हैं। आमतौर पर उनका बैकग्राउंड भी सामान्य है, लेकिन इस खेल को उन्होंने इसलिए चुना क्योंकि उन्हें लगा कि इसके जरिए वे केवल अपनी पहचान ही नहीं बनाएंगी। रोहतक से ताल्लुक रखने वाली हाकी खिलाड़ी ममता खरब ने जो चाहा, कमोबेश वो सब पा लिया है। सुरेंद्र कौर, राजविंदर कौर, जायदीप कौर और जसजीत कौर सरीखे महिला हाकी टीम के महत्वपूर्ण नाम इसी ग्रामीण परिवेश की देन हैं। इसी तरह भिवानी जिले के बलाली गांव की दो बहिनें गीता फौगाट और बबीता फौगाट ने कुश्ती में पूरी दुनिया में हरियाणा को नई पहचान दी। कैथल जिले के सामान्य परिवार की ममता सौदा ने अपने दृढ़ इरादों के बूते एवरेस्ट की चोटी फतह की है। भिवानी की मुक्केबाज पूजा और हिसार की कविता गोयत ने दुनिया में हरियाणा के मुक्के की धाक जमाई है। फरीदाबाद की अनुराज सिंह ने निशानेबाजी में और हिसार की गीतिका जाखड़ ने पहलवानी में हरियाणा को नई पहचान देते हुए अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। सीमा सुरक्षा में भी हरियाणा की बेटियों ने कमाल किया है। रुचि सांगवान और भावना राणा ने समुद्री सीमाओं की सुरक्षा कमान थाम रखी है। देश में पहली बार महिलाओं को समुद्री सीमाओं की चौकसी का जिम्मा मिला है।


19मई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘मिस्त्री की बेटी बनी चैंपियन‘ पढ़ने के लिए क्लिक करें.

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