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कुछ खट्टा कुछ मीठा

मुद्दा
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यदि बजट में कृषि के लिए प्रस्ताव को देखें तो उसमें कई सराहनीय बातें हैं। बजट में उत्तरी क्षेत्र की संभावनाओं पर विशेष ध्यान दिया गया है। इसके अलावा विकसित क्षेत्र के टिकाऊपन को सहयोग प्रदान करते हुए फसलों के विविधीकरण के लिए साधन जुटाने का प्रयास किया गया है।

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हमारे 80 प्रतिशत से ज्यादा किसान लघु और सीमांत है, उन्हें बाजार में बहुत मुश्किलें आती हैं। इस संदर्भ में कृषि उत्पादन संगठनों को सहायता प्रदान करना काफी महत्वपूर्ण है। परन्तु इसके लिए काफी कम संसाधन जुटाए गए हैं। पशुधन में उत्पादन चार प्रतिशत से ज्यादा दर से बढ़ रही है। परन्तु इस दिशा में विशेष प्रयास नहीं किए गए हैं। कृषि वाणिज्यिक होती जा रही है और खर्च बढ़ रहे हैं। ऐसे में किसानों को निजी स्रोतों से लोन लेने से बचाने के लिए संस्थागत ऋण को बढ़ाना अनिवार्य है। इससे निजी निवेश को भी बढावा मिलेगा। इन सबके बावजूद बजट में ऐसी कई प्रमुख खामियां हैं, जिन पर गौर न करने से कृषि क्षेत्र पर तात्कालिक और दूरगामी दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं। इसमें मुख्य है कृषि अनुसंधान को पर्याप्त संसाधन उपलब्ध न कराना। वित्त मंत्री को इस पर  विचार करना चाहिए और शोध कार्यों के लिए आवंटन बढ़ाना चाहिए। कृषि भंडारण, खाद्य-प्रसंस्करण, कृषि विपणन को भी बजट में नजरअंदाज किया गया है।  इस दिशा में भी तत्काल ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

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महंगाई को बढ़ाएगा बजट

खाद्य उत्पादों की कीमतों में तेजी को रोकने के लिए आपूर्ति पक्ष को बेहतर बनाने के लिए वित्त मंत्री ने कोई ठोस कदम नहीं उठाये है।वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने बजट 2013-14 पेश करते हुए उम्मीद जताई है कि इससे महंगाई दर को थामने में सहूलियत होगी। लेकिन दूसरी तरफ उन्होंने जो प्रावधान किए हैैं उससे आम आदमी पर महंगाई का बोझ पड़ना तय है। पेट्रोलियम और उर्वरक  की कीमतों को बढ़ाने का रोडमैप पहले ही लागू किया जा चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि खाद्य उत्पादों की कीमतों में तेजी को रोकने के लिए आपूर्ति पक्ष को बेहतर बनाने के लिए वित्त मंत्री ने कोई ठोस कदम नहीं उठाये हैैं। ऐसे में सभी की उम्मीदें राजकोषीय घाटे के नियंत्रण पर टिकी हुई हैैं। अगर वित्त मंत्री इसे अगले वित्त वर्ष के दौरान 4.8 फीसद पर सीमित करने में सफल रहते हैैं तो महंगाई की दर भी अगले वित्त वर्ष के अंत तक कम हो सकती है।


पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा का कहना है कि राजकोषीय घाटे को जिस तरीके से आंकड़ों में फेर बदल कर 5.2 फीसद रहने का दावा किया गया है वह अपने आप में कई सवाल उठाता है। राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक कम होता है तो दूसरा भी कम होता है। वर्ष 2013-14 में वित्त मंत्री ने राजकोषीय घाटे के 4.8 फीसद पर रहने का लक्ष्य रखा है इसके हिसाब से राजस्व घाटा 3.4 फीसद रहना चाहिए लेकिन उन्होंने इसके 3.9 फीसद रहने का लक्ष्य रखा है। आंकड़ों में इस बाजीगरी का असर महंगाई दर पर पड़ेगा। लिहाजा आम आदमी को महंगाई से खास राहत नहीं मिलने वाली है।

सरकार ने एक तरह से यह भी स्पष्ट कर दिया कि इस पूरे वर्ष पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस महंगे होते रहेंगे। डीजल तो एक वर्ष में छह रुपये प्रति लीटर तक महंगा होगा क्योंकि तेल कंपनियों को इसकी इजाजत मिली है। गैर सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडर की कीमत भी हर महीने बढ़ेगी। इसी तरह से वित्त मंत्री ने राज्यों की बिजली कंपनियों को अपना वित्तीय पुनर्गठन करने का प्रस्ताव जल्द से जल्द भेजने को कहा है। इससे आम जनता के लिए बिजली की दरें महंगी होंगी। ऐसे में वित्त मंत्री के आंकड़ों में भले ही महंगाई थमती दिखे लेकिन आम आदमी को इसका फायदा होता नहीं दिखता।

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