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कम वक्त बीता है। राजनीति के प्रति तेजी से बेचैन होने वाले अधिकतर भारतीय हमारे गणतंत्र के बारे में ऐसी प्रतिक्रिया पर लगभग गुस्सा हो उठेंगे, जो 60 साल से कुछ अधिक पुराना ही है। हमने 63 साल पहले जिस संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणतंत्र की स्थापना की, उससे देश को संतोषजनक ढंग से तरक्की की ओर ले जाने का दावा नहीं किया जा सकता। क्या हम गांवों, कस्बों, शहरों और महानगरों में घूम-घूम कर इस बात का जश्न मना सकते हैं कि हमारे गणतंत्र ने हमारी जिंदगी बेहतर बनाई है? क्या हमारे नेता गवर्नेंस (शासन), पारदर्शिता और न्यायसंगतता के पैमानों पर खरे उतरे हैं?- संदेह नहीं कि इस तरह की आलोचना जायज है, लेकिन लोकतंत्र के मोर्चे पर हुई प्रगति और उसके उद्देश्यों को दरकिनार नहीं किया जा सकता। हमने कई गलतियां भी की है, पर जैसाकि महात्मा गांधी ने कहा है- ‘‘देश की उस स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है, जहां गलतियां करने की स्वतंत्रता न हो।’’ हमारे गणतंत्र के बेहतर कार्य-प्रदर्शन की तीन प्रमुख वजहें उल्लेखनीय हैं- सत्ता की साझेदारी, खुलापन और अपनी गलतियां सुधारने की व्यवस्था में निहित क्षमता। इनके चलते शासन में नियंत्रण एवं संतुलन रहा और नीतिगत संवाद में नागरिकों को मदद मिली है। इन खासियतों ने हमारे लोकतंत्र को मजबूत बनाया, जिसका दायरा चुनाव से बहुत परे तक जाता है। किसी भी लोकतांत्रिक देश के नागरिकों में भिन्न-भिन्न मत, दृष्टिकोण और प्रतिस्पर्धात्मक हित होना स्वाभाविक है। लोकतंत्र का मतलब मतैक्यता नहीं, बल्कि असहमति होते हुए भी इस आशा से आगे बढ़ा जाता है कि नागरिक अलग-अलग नजरियों के बीच पारदर्शी एवं निष्पक्ष ढंग से सामंजस्य कायम करेंगे क्योंकि लोकतंत्र इसके लिए अनुकूल माहौल उपलब्ध कराता है।
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हमारे गणतंत्र ने तीन तत्वों की वजह से इस पर गर्व करने का अहसास कराया है। हम राजनीतिक रूप से स्वतंत्र एवं लोकतांत्रिक हैं। और,यह एक ऐसा देश है, जहां आम तौर पर कानून का शासन लागू होता है। हम आर्थिक रूप से जनता के जीवन स्तर में सुधार ला पाए हैं,यद्यपि इस मोर्चे पर अभी बहुत-कुछ करने की जरूरत है। पिछले कुछ समय से कानून का शासन कमजोर होने लगा है, लेकिन यह दुनिया भर में हो रहा है। यह एक नई प्रवृत्ति है, जिसमें हम नागरिकों को सशक्त, किंतु नेताओं को कमजोर पाते हैं। सिविल सोसायटी और मीडिया की मुखरता से हमारे नेता जवाबदेही को बाध्य हो रहे है। सार्वजनिक जीवन में शुचिता के लिए अन्ना हजारे का आंदोलन और दिल्ली में एक छात्रा के साथ बलात्कार और उसकी हत्या के बाद युवा आंदोलन ने नागरिकों की ताकत को जबर्दस्त ढंग से रेखांकित किया है। लेकिन, नागरिकों का यह ताकत-प्रदर्शन लोकतंत्र की बदौलत संभव बना। भारत का अभ्युदय उस चीन के विपरीत निचले स्तर से हो रहा है, जिसकी कामयाबी की कहानी शीर्ष-स्तर से लिखी गई है।
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भारत को कार्यात्मक अराजकता वाला देश कहा जा सकता है, पर उसने साबित कर दिखाया है कि सिर्फ लोकतंत्र उसे एकता के सूत्र में पिरो कर रख सकता है और करोड़ों लोगों को गरीबी से उबार सकता है। हमारा लोकतंत्र भले ही अभी आदर्श नहीं है लेकिन कुछ देशों में तो यह रिवर्स गियर में जा रहा है। मशहूर ब्रिटिश स्तंभकार बर्नार्ड लेविन ने इसीलिए सही कहा है- ‘‘यदि भारत में लोकतंत्र का पतन होता है तो उससे दुनिया भर में लोकतंत्र के भविष्य का खात्मा हो जाएगा।’’ क्या इस प्रकार की अनेक टिप्पणियां हमारे लिए गर्व की बात नहीं?
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