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सीबीआइ
गठन: 1941 में स्थापित विशेष पुलिस संस्थापन के तहत एक अप्रैल, 1963 को इस एजेंसी का गठन किया गया। यह शीर्ष एजेंसी कार्मिक लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय के तहत कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के अधीन काम करती है। प्रत्यक्ष तौर पर केंद्र सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन होने के चलते इस एजेंसी के प्रति आम जनता की यह धारणा होती जा रही है कि सत्ताधारी दल के किसी मंत्री या नेता पर लगे आरोप की जांच निष्पक्ष रूप से नहीं होती है।
कार्यदायित्व: इस आला जांच एजेंसी के जिम्मे प्रमुख कार्य इस प्रकार हैैं
एंटी करप्शन डिवीजन: केंद्र सरकार के सभी विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों और केंद्रीय वित्तीय संस्थानों में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी की जांच करना
इकोनॉमिक क्राइम डिवीजन: केंद्र सरकार के सभी विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों और केंद्रीय वित्तीय संस्थानों के सभी कर्मचारियों एवं अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी की जांच करना
स्पेशल क्राइम डिवीजन: आतंकवाद, बम विस्फोटों, सनसनीखेज हत्याकांड, फिरौती के लिए अपहरण और अंडरवल्र्ड या माफिया द्वारा अपराधों से निपटना
एफबीआइ
सीबीआइ का ढांचा अमेरिका की फेडरल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेशन (एफबीआइ) से मिलता-जुलता है। एफबीआइ अमेरिका की संघीय अपराध जांच एजेंसी है। इसके अलावा यह आंतरिक खुफिया एजेंसी का दायित्व भी निभाती है।
सीबीआइ की शक्तियां और कार्य का दायरा एसपीई एक्ट के तहत सीमित है। यह विशेष अपराधों की जांच करती है। एफबीआइ के पास 200 से भी अधिक संघीय अपराध श्रेणियों की जांच करने का अधिकार क्षेत्र है।
एफबीआइ का इतिहास 112 साल पुराना है। इसकी स्थापना 1908 में ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेशन (बीओआइ) के नाम से हुई थी। 1935 में नाम बदलकर एफबीआइ कर दिया गया। वाशिंगटन डीसी में इसका हेडक्वार्टर है। इसकी प्राथमिकताओं में भ्रष्टाचार, संगठित अपराध, सफेदपोश अपराध, हिंसक गतिविधियों की जांच के अलावा आतंकी हमलों, विदेशी खुफिया ऑपरेशनों और साइबर-हमलों से अमेरिका की सुरक्षा है। इन सबके अलावा कई संघीय कानूनों के जरिए विशेष अपराधों की जांच का जिम्मा भी एफबीआइ को सौंपा गया है।
बदलती जवाबदेही
वर्तमान में सीबीआइ कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के कार्मिक विभाग के तहत काम करती है। 2003 में राजग सरकार के कार्यकाल के दौरान कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को गृह मंत्रालय के मातहत कर दिया गया था। लिहाजा सीबीआइ भी एक तरह से गृह मंत्रालय के तहत काम करने लगी थी। जब लालकृष्ण आडवाणी उप प्रधानमंत्री बने तो वाजपेयी सरकार ने सीबीआइ को इस विभाग से हटाकर केंद्रीय सचिवालय के साथ जोड़ दिया। केंद्रीय सचिवालय प्रधानमंत्री कार्यालय को रिपोर्ट करता था। इससे यह संस्था अब इसके प्रति जवाबदेह हो चुकी थी।
कारण: उस समय इस एजेंसी द्वारा राजनीतिक रूप से कई संवेदनशील मामलों की जांच करने के चलते ऐसा कदम उठाया गया था। इसके अलावा उसी दौरान अयोध्या मामले की सुनवाई अदालत में चल रही थी और आडवाणी उस मामले में एक आरोपी थे।
वापसी: पेंडुलम की तरह दोलन करती इस संस्था की जवाबदेही एक बार फिर बदली। जून, 2004 में इसे फिर से कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग के नियंत्रण में लाया गया।
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राजनेताओं के खिलाफ मामले
लंबित जांच (31-10-2012 तक)
ऐसे 10 मामले हैं जिनमें सीबीआइ जांच लंबित है। इनमें 8 रेगुलर केस (आरसी) और 2 प्रीलिमिनरी इंक्वायरी शामिल हैं। इनमें एक मुख्यमंत्री, दो पूर्व मुख्यमंत्रियों, 12 की संख्या में राजनीतिक दलों के पदाधिकारी (पूर्व सांसद, पूर्व विधायक समेत) के खिलाफ आरोप हैं। सभी मामलों में तीन लोग (एक पूर्व मंत्री और दो विधायक) ऐसे हैं जो एक से अधिक मामलों में आरोपित हैं।
लंबित ट्रायल (31.10.2012 तक)
57 मामले ट्रायल के स्तर पर लंबित हैं। इनमें आठ पूर्व मुख्यमंत्री और 71 विभिन्न राजनीतिक दलों के पदाधिकारी (पूर्व सांसद, पूर्व विधायक समेत) शामिल हैं। सभी लंबित ट्रायल मामलों में एक पूर्व मुख्यमंत्री दो मामलों में आरोपित है और आठ पार्टी पदाधिकारी एक से अधिक मामलों में शामिल हैं।
गिरती साख (फीसद में)
साल दोषसिद्धि दर
2000 | 71.9 |
2001 | 70.0 |
2002 | 68.7 |
2003 | 68.4 |
2004 | 66.3 |
2005 | 65.6 |
2006 | 72.9 |
2007 | 67.7 |
2008 | 66.2 |
2009 | 64.4 |
2010 | 70.8 |
2011 | 67.0 |
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खाली पद
(18 अप्रैल, 2012 तक)
कैडर | स्वीकृत क्षमता | उपलब्ध क्षमता |
एक्जीक्यूटिव | 4510 | 3901 |
लीगल | 318 | 258 |
टेक्नीकल | 155 | 115 |
मिनिस्टीरियल | 1538 | 1436 |
कैंटीन पोस्ट | 70 | 43 |
कुल | 6591 | 5753 |
मामले जिनमें आरोपी बरी
साल मामले
2007 | 161 |
2008 | 166 |
2009 | 212 |
2010 | (31 अक्टूबर तक) 138 |
लंबित मामले
समयावधि तक | लंबित मामले |
31-12-2007 | 1143 |
31-12-2008 | 1005 |
31-12-2009 | 988 |
31-07-2010 | 1021 |
मामलों में लंबित ट्रायल
(29 फरवरी, 2012 तक)
कितने साल से | मामले |
2 साल से कम | 1807 |
2-5 साल | 2884 |
5-10 साल | 2891 |
10-20 साल | 2025 |
20 साल से अधिक | 357 |
कुल | 9964 |
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