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किताब में लिखा हिसाब

मुद्दा
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bookजैन हवाला केस


जैन हवाला केस (1995) में सत्तासीन उच्च अधिकारियों के खिलाफ प्रमाण के बावजूद सीबीआइ कोई मामला नहीं बना सकी। दरअसल एस के जैन ने जब

अपने बयान में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव का नाम लिया तो यह प्रयास किया जाने लगा कि बयान का यह हिस्सा रिकॉर्ड में नहीं जाना चाहिए। खुद सीबीआइ के  निदेशक इस मुहिम में लगे थे। जब निदेशक अपनी मुहिम में सफल नहीं हुए तो मामले की जांच कर रही टीम को विभाजित कर दिया गया ताकि जांच के अवांछित तथ्यों को हटाया जा सके। इस प्रकार किसी बड़े नाम से न ही पूछताछ की गई और न ही गिरफ्तार किया गया। केवल जैन के अतिरिक्त कुछ अधिकारियों और विपक्षी राजनीतिज्ञों से पूछताछ हो पाई



झारखंड मुक्ति मोर्चा केस (1995)


इस मामले को ईमानदार एसपी अरुण सिन्हा देख रहे थे। उनको भी तत्कालीन सीबीआइ निदेशक ने आदेश दिया कि इस केस को खास तरीके से पेश किया जाए। उसी आधार पर सबूतों को भी इकट्ठा किया जाए।

जब अरुण सिन्हा ने उनकी बात मानने से इन्कार कर दिया तो निदेशक ने उनसे मामला वापस ले लिया और उनका स्थानांतरण दिल्ली से सिलचर कर दिया गया। हालांकि बाद में कोर्ट ने केस अरुण सिन्हा को दे दिया और उनको एवं डीआइजी को निर्देश दिया कि वे कोर्ट

को केस की प्रगति रिपोर्ट से अवगत कराएं। साथ ही यह निर्देश भी दिया

कि सीबीआइ निदेशक से न ही इस केस के बारे में चर्चा की जाए और न ही उनको कोई कागजात दिखाए जाएं। दरअसल इसमें मुख्य आरोपी कांग्रेस अध्यक्ष पीवी नरसिंह राव थे।


लखूभाई पाठक केस


जब लखूभाई पाठक ने सबसे पहले 1987 में आरोप लगाया था तब पीवी नरसिंह राव का नाम भी लिया था लेकिन राव की पार्टी कांग्रेस सत्ता में थी लिहाजा कोई मामला दर्ज नहीं किया गया। यह सबको पता है कि इस केस को कई वर्षों बाद रजिस्टर किया गया वह भी तब जब सीबीआइ ऐसा करने को मजबूर हो गई। एक स्पेशल अधिकारी को लखूभाई से केस रजिस्टर करने के लिए ब्रिटेन भेजा गया जिसमें पीवी नरसिंह राव का नाम शामिल नहीं किया गया। इस तरह लखूभाई के आवेदन को संशोधित कर केस रजिस्टर किया गया। ट्रायल कोर्ट में लखूभाई पाठक ने अपने बयान में बताया कि उन्होंने केस में नरसिंह राव का नाम लिया था



इंडियन बैंक घोटाला (1995)


सीबीआइ की एक ब्रांच इस बैंक में 100 करोड़ रुपये घोटाले की जांच कर रही थी, इसी तरह एक दूसरी ब्रांच भी ऐसे ही घोटाले की जांच कर रही थी। इन मामलों में साफ था कि बैंक के चेयरमैन ने अपने अधिकारियों पर दबाव डालकर एडवांस लोन दिलवाए जिनके बारे में पहले से ही पता था कि वे लोन चुकता नहीं कर पाएंगे। इन मामलों की जांच चल ही रही थी कि हमारे पास बैंक के सीएमडी गोपालकृष्णन के सेवा विस्तार से संबंधित कागजात आए। मैंने उनको सेवा विस्तार देने का विरोध करते हुए कहा कि यदि उनको दो वर्षों का सेवा विस्तार दिया गया तो हमको इससे भी बड़े घोटाले की जांच करनी पड़ेगी। इन सारे तथ्यों के बावजूद वित्त मंत्रालय ने उनको सेवा विस्तार दे दिया


चारा घोटाला (1996)


चारा घोटाले की जांच कर रहे संयुक्त निदेशक यू एन बिस्वास की रिपोर्ट को ही सीबीआइ निदेशक ने बदलवा दिया था। उसमें से लालू प्रसाद का नाम हटा दिया गया था। जब पटना हाईकोर्ट में यू एन बिस्वास ने कहा कि यह उनकी रिपोर्ट नहीं है तो कोर्ट ने उनसे कहा कि वह अपनी रिपोर्ट कोर्ट को ही पेश करें। यानी कि कोर्ट ने सीबीआइ निदेशक को विश्वास लायक ही नहीं समझा



Tag: चारा घोटाला,इंडियन बैंक,जैन हवाला केस,लखूभाई पाठक केस,सीबीआइ, पीवी नरसिंह राव



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