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विदेशी कंपनियों के देश के रिटेल क्षेत्र में कारोबार करने की स्थिति में इससे जुड़े सभी पक्षों पर विचार की जरूरत है।
उपभोक्ता: बांह फैलाए वैश्वीकरण के फायदे उठाने को आतुर है। प्रतिस्पर्धा उसे बेहतर ऑफर दिलाएगी।
रिटेलर : वैश्विक खिलाड़ियों के आने से प्रत्यक्षतौर पर इनको चुनौती मिलेगी। हालांकि ये समुदाय इसका स्वागत कर रहा है क्योंकि उसको पता है कि अब नए गठबंधन और नई क्षमताएं संभव हैं। अधिक ग्राहकों वाले छोटे खुदरा व्यापारियों पर इसका नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा।
कर्मचारी : इस क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए रोजगार के नए विकल्प होंगे।
किसान : आधुनिकीकृत रिटेल के साथ पहले से ही कुछ किसानों को गारंटीशुदा बाजार के फायदे मिल रहे हैं। यद्यपि कुछ पुराने कानून मसलन एपीएमसी एक्ट राह में रोड़ा बने हुए हैं। किसानों के मुनाफे कम होने की आशंका जताने वालों को अहसास नहीं है कि रिटेल सबसे बड़ी और आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में भी कभी एकाधिकारवादी प्रवृत्ति का बिजनेस नहीं रहा। इनके पास यह अवसर होगा कि वह व्यापार के लिए किससे संपर्क करना चाहते हैं? उनको बेहतर किस्म के उत्पादन की चिंता करनी चाहिए। कई अर्थव्यवस्थाओं में इनकी उत्पादकता को बढ़ाने में रिटेलरों ने अहम भूमिका निभाई है। इसके साथ उन्होंने टिकाऊ कृषि उत्पादन तकनीकों को भी खोजा है।
सरकार : इससे टैक्स और लेवी अधिक संग्रहित होगा। वित्तीय बिजनेस, निर्माता और रीयल एस्टेट प्रतीक्षारत हैं।
व्यापारी: खुदरा क्षेत्र के इस अहम वर्ग के लिए कठिन चुनौतियां होंगी। रिटेल क्षेत्र के आधुनिकीकरण से तय रूप से सप्लाई चेन का हर चरण वैल्यू चेन के हिस्से में तब्दील होगा। यह बदलाव लागतों में वृद्धि करने वाला नहीं बल्कि वैल्यू में गंभीर बढ़ोतरी करने वाला होगा। इससे कुछ लोग तो प्रसन्न होंगे लेकिन बाकी लोग इसके आगमन के खिलाफ विरोध करेंगे।
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चुनौतियां और रास्ते
इस मुद्दे पर लाखों सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) इकाइयां इस बात से चिंतित है कि वस्तुओं के सस्ते आयात से इनके उत्पाद विस्थापित हो जाएंगे। यद्यपि रिटेल नीति में इस संबंध में कुछ प्रयास किए गए हैं। इसमें एमएसएमई से 30 प्रतिशत खरीद की अनिवार्यता की गई है। इस पर भी कयास लगाए जा रहे हैं। पहला, व्यापार विशेषज्ञ इस बात को लेकर शंकालु हैं कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के इस दौर में 30 प्रतिशत खरीद की व्यवस्था टिक पाना संदेह के घेरे में है। दूसरा, नए कानून में किसी भारतीय, विदेशी या बडे़ कारपोरेट घराने द्वारा एमएसएमई की स्थापना संबंधी विभाजन रेखा नहीं खींची गई है। इससे यह शंका है कि विदेशी रिटेलर 30 प्रतिशत की बाध्यता को पूरा करने के लिए अपनी एमएसएमई का गठन कर सकते हैं।
ऐसे में नुकसान को कम करने वाले विकल्पों को अपनाने की जरूरत हैं-
’एक वैधानिक स्वतंत्र नियामक का गठन हो जो संगठित रिटेल और इससे जुड़ने वाले किसानों, वेंडरों और ग्राहकों के लिए नियम कानून बनाए।
आउटलेट खोलने से पहले (बैंकिंग की तरह) नियामक को सूचना देना आवश्यक हो। नियामक निश्चित
स्थान पर आउटलेट खोलने के लिए आवेदन ग्रहण कर सके और लाइसेंस प्रदान कर सके
सर्वप्रथम केवल 10 बड़े शहरों में ही संगठित रिटेल आउटलेट खोले जाने चाहिए
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