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सुरक्षित यातायात की चुनौती

मुद्दा
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संजय सिंह -उप राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख, दैनिक जागरण
संजय सिंह -उप राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख, दैनिक जागरण

सड़क परिवहन

सुरक्षित यातायात को लेकर देश के नियम कायदे सख्त नहीं हैं ऊपर से उनका अनुपालन बेहद ही लचर।


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भारी नुकसान

हर साल जीडीपी का लगभग तीन फीसद सड़क दुर्घटनाओं की भेंट चढ़ जाता है। योजना आयोग द्वारा 2000 में गठित कार्यदल के मुखिया प्रकाश नारायण के मुताबिक तब सालाना 55 हजार करोड़ रुपये का नुकसान सड़क दुर्घटनाओं से हो रहा था। विश्व बैंक व डब्ल्यूएचओ के अनुसार भारत में सड़क दुर्घटनाओं में घायलों के इलाज व बीमा पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद का डेढ़ फीसद खर्च होता है।

भारत में ट्रैफिक नियमों को लेकर जनता का रवैया और सड़कों का त्रुटिपूर्ण डिजायन, खराब गुणवत्ता व गलत जगह पर गलत ढंग के या विलुप्त यातायात संकेतक कोहरे में सड़कों को काल बना देते हैं। वैसे भी यहां का मोटर वाहन कानून और उसके नियम-कायदे कोहरे में यातायात को लेकर बहुत सख्त नहीं हैं, जबकि उनका अनुपालन करने वाली एजेंसियां और भी लापरवाह हैं।


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हर साल देश में सवा लाख से ज्यादा लोगों की मौत सड़क दुर्घटनाओं में होती है। इनमें एक चौथाई से ज्यादा हादसे उत्तर भारत में होते हैं, जहां कोहरे के दिनों में बड़े हादसों की संख्या सर्वाधिक है। ये हादसे  खासकर उन हाइवे और एक्सप्रेस वे पर होते हैं जहां वाहनों की रफ्तार काफी होती है। साल दर साल ऐसे हादसों की संख्या भी बढ़ रही है। कोहरे के दौरान कृषि के काम आने वाले ट्रैक्टरों को टर्निंग व फॉग लाइट से छूट दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा कारण है। नियमानुसार इन ट्रैक्टरों को हाइवे की मेन लेन में आने पर रोक है। इन्हें हाइवे पर किनारे पार्किंग की भी मनाही है, लेकिन व्यवहार में कई ट्रैक्टर चालक इन नियमों का उल्लंघन करते देखे जा सकते हैं। भारतीय किसान प्रशिक्षित ड्राइवर नहीं होते। इसके बावजूद वे अपने ट्रैक्टरों को ट्रालियों समेत कहीं भी रात-बिरात खड़ा कर देते हैं जो बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। कई ट्रक चालक भी कोहरे के दौरान सड़कों के किनारे बिना किसी साइन या सिग्नल के ट्रक पार्क कर देते हैं।  दिल्ली-मुंबई जैसे चंद महानगरों में यातायात पुलिस इन पर कार्रवाई करती है, बाकी जगह मनमानी का

आलम है।


कोहरे की समस्या मुख्यत: उत्तर भारत से जुड़ी है। लिहाजा यहां की संबंधित राज्य सरकारों-उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और बिहार के साथ मिलकर केंद्र को एक योजना बनानी चाहिए। इसे दिसंबर से लेकर फरवरी के दौरान लागू करना चाहिए। इसके तहत यातायात नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। सड़क निर्माण एजेंसियों-सार्वजनिक लोकनिर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) व राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) को सड़कों पर संकेतकों की हालत दुरुस्त करनी चाहिए। सड़कों पर मोड़ों, अवरोधों व डायवर्जन पर फ्लोरिसेंट पेंट वाली चेतावनियां बेहद जरूरी हैं। 78 फीसद से ज्यादा दुर्घटनाएं चालक की गलती से होती हैं। लिहाजा सबसे बड़ी जरूरत ड्राइविंग लाइसेंस (डीएल) व्यवस्था को दुरुस्त करने की है। बिना प्रशिक्षण के किसी को डीएल नहीं मिले। प्रशिक्षित ड्राइवर सड़क सुरक्षा की गारंटी हैं, जबकि अधकचरे ड्राइवर साक्षात यमराज हैं। नियमों का उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना बढ़ाने के लिए मोटर वाहन अधिनियम 2012 बिल में प्रावधान किए गए हैं। लेकिन इसे लोकसभा की मंजूरी का इंतजार है।


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पुराने ढर्रे से ही निपटेगी रेलवे


रेल यातायात


कोहरे के पीक अवधि में गैर जरूरी ट्रेनों को रद कर प्रमुख ट्रेनों को कच्छप चाल से चलाने की मंशा

टक्कर रोधी प्रणालियां

ङ्क्तकोहरे के दौरान टक्कर रोकने के लिए कोंकण रेलवे द्वारा विकसित एंटी  कोलीजन डिवाइस (एसीडी) को पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे और दक्षिण-मध्य रेलवे से आगे बढ़ाने में रेलवे की कोई रुचि नहीं रह गई है। यूरोपीय ट्रेन प्रोटेक्शन एंड वार्निंग सिस्टम (टीपीडब्ल्यूएस) प्रोजेक्ट को भी रोक दिया गया है। इनके स्थान पर अब ट्रेन कोलीजन एवायडेंस सिस्टम (टीसीएस) पर काम शुरू हुआ है। इसमें वाइब्रेंट सेंसर और माइक्रो कंट्रोलर के जरिए सामने से आ रही ट्रेन का पता पटरी के कंपन से चल जाता है और ड्राइवर को केबिन में लगे मॉनीटर पर लगभग एक किमी पहले ही इसकी सूचना मिल जाती है। चेतावनी के बाद यदि ड्राइवर बे्रक लगाता है तो ठीक वरना, अपने आप ब्रेक लग जाएंगे। लेकिन कोई नहीं जानता कि आरडीएसओ को इसमें भी कामयाबी मिलेगी या नहीं।


कोहरा रोधी उपकरण


कोहरे से निपटने के लिए उत्तर रेलवे ने पिछले साल छह सौ एंटी फॉग डिवाइस खरीदे थे। इन्हें प्रमुख ट्रेनों में लगाया गया है। हालांकि इनका बहुत लाभ नहीं दिखाई दिया है। इसीलिए रेलवे इन पर निर्भर नहीं है। पुराने आजमाए नुस्खों पर ही उसे ज्यादा भरोसा है। लिहाजा सिग्नल खंभों को फ्लोरिसेंट पेंट से रंगने, सिग्नल से पहले पटरियों पर पटाखे लगाकर चेतावनी देने व कम रफ्तार जैसे उपाय ही चलेंगे। आइआइटी कानपुर और आरडीएसओ लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में कोहरा रोधी उपकरण विकसित करने में कुछ अड़चनों के कारण पूरी कामयाबी नहीं मिल सकी है।


पैसे और तकनीक के मोर्चे पर लाचार भारतीय रेलवे ने कोहरे से निपटने के लिए नायाब तरीका अपनाया है। इसके तहत उसने तमाम आधुनिक  उपायों को ताक पर रख मंथर गति का हाथ थामा है। इसमें कोहरे के पीक सीजन में उत्तर भारत की तमाम गैर प्रमुख ट्रेनों का संचालन रद कर दिया जाता है। जबकि प्रमुख ट्रेनों को निर्धारित रफ्तार से कम रफ्तार पर चलाया जाता है। इस योजना को पिछली सर्दियों में सफलतापूर्वक अजमाया जा चुका है। तब तकरीबन 30 गैरजरूरी ट्रेनें रद कर दी गई थीं और प्रमुख ट्रेनों को धीमे चलाया गया था। इससे ट्रेनें लेट जरूर हुईं, लेकिन कोई दुर्घटना नहीं हुई। पिछले साल की कामयाबी के मद्देनजर इस बार भी रेलवे ने तीन महीने पहले ही एक जनवरी, 2013 से 17 फरवरी, 2013 के दौरान 28 कम महत्वपूर्ण ट्रेनों को रद करने की घोषणा कर दी है। दिल्ली की ओर आने वाली छह कम अहम ट्रेनों को आधे रास्ते चलाया जाएगा। हावड़ा से दिल्ली की ओर आने वाली कुछ ट्रेनें मुगलसराय में खत्म हो जाएंगी तो गोरखपुर से आने वाली कानपुर में। इसी तरह चार ट्रेनों के रूट डायवर्ट किए गए हैं।


रेल मंत्रालय प्रवक्ता अनिल सक्सेना के मुताबिक इस बार भी कोहरे के दौरान बरती जाने वाली सारी तयशुदा सावधानियों का पालन सुनिश्चित किया जाएगा। कोहरे से प्रभावित रहने वाले उत्तर भारत के मार्गों दिल्ली-कानपुर-इलाहाबाद तथा दिल्ली-लखनऊ, दिल्ली-आगरा, दिल्ली-चंडीगढ़ व दिल्ली-अमृतसर-पठानकोट-जम्मू तथा दिल्ली-हरिद्वार-देहरादून तथा दिल्ली-जयपुर के रूट शामिल हैं। इन रूटों पर मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों के अलावा राजधानी, दूरंतो, शताब्दी जैसी तेज रफ्तार ट्रेनें भी चलती हैं। इन ट्रेनों में दिल्ली के आसपास 500 किमी के दायरे में मौसमी कोहरे के छंटने तक गति सीमा लागू रहेगी।


Tag: fog, mist traffic, transport, railway ministry,रेल मंत्रालय,कुहासा , ट्रेन , train

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