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पहले से बेहतर हुआ है हवाई सफर

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19cnt21हवाई यातायात


उड्डयन क्षेत्र पहले के मुकाबले बेहतर ढंग से तैयार है। इस मामले में न केवल हवाईअड्डों की तैयारी में सुधार हुआ है, बल्कि एयरलाइनों और तकनीकी स्टॉफ ने भी इस बार ज्यादा प्रयास किए हैं।


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कोहरे को लेकर इस बार एक अच्छी बात यह हुई कि तैयारियां काफी पहले कर ली गई हैं। दरअसल, अक्टूबर के अंत और नवंबर की शुरुआत में ही दिल्ली एवं आसपास के आसमान में छाई धुंध ने संबंधित महकमों को वक्त से पहले अलर्ट कर दिया। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने उसी वक्त उत्तर भारत के सभी हवाईअड्डों तथा वहां के लिए उड़ानों का संचालन करने वाली एयरलाइनों को कोहरे से निपटने के लिए पुख्ता इंतजाम करने के निर्देश दे दिए थे।


इसी के बाद उड्डयन महानिदेशालय  की निगरानी में दिल्ली एयरपोर्ट के अलावा अमृतसर, लखनऊ, जयपुर, वाराणसी, गोरखपुर, आगरा आदि हवाईअड्डों पर कोहरे से निपटने की तैयारियां चाक-चौबंद की गई हैं। सबसे ज्यादा जोर दिल्ली एयरपोर्ट की तैयारियों पर दिया गया है, जहां रोजाना आठ सौ से ज्यादा उड़ानों का संचालन होता है। दिल्ली एयरपोर्ट का संचालन करने वाली कंपनी डायल (डेल्ही इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड) को कहा गया है कि वह कोहरे के दौरान उड़ानों की लेटलतीफी के शिकार हुए यात्रियों के लिए खाने-पीने और आराम करने के समुचित इंतजाम करे। साथ ही उड़ानों के बारे में इलेक्ट्रॉनिक सूचना प्रणाली को अद्यतन रखे। टर्मिनल-3 की तीनो हवाई पट्टियों को तैयार रखे और उनमें प्रकाश एवं संकेतकों की तमाम व्यवस्थाएं दुरुस्त करे। कोहरे के पीक सीजन में डायल स्टॉफ की छुट्टियां कम से कम कर वरिष्ठ अधिकारियों को हमेशा मौजूद रहने को कहा गया है।


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एयर इंडिया, इंडिगो, जेट एयरवेज, स्पाइसजेट जैसी स्वदेशी एयरलाइनों तथा दिल्ली में लैंडिंग व टेकऑफ करने वाली विदेशी एयरलाइनों से कोहरे के दौरान एटीसी के निर्देशों का पूरी तरह पालन करने का कहा गया है। इनसे कहा गया है कि कोहरे के दौरान इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (आइएलएस) कैटेगरी-2 व कैटेगरी-3 के उपकरण लगे विमानों का ही संचालन करें व इनमें प्रशिक्षित पायलटों को ही तैनात करें। ज्यादातर एयरलाइनों ने कैट-2 विमानों व पायलटों की नियुक्ति कर ली है। जबकि कैट-3 विमानों व पायलटों का सीमित इंतजाम हुआ है। कोहरे में अक्सर उड़ानें लेट होती हैं। दृश्यता बढ़ने पर एक साथ कई उड़ानों की लैंडिंग व टेकऑफ का दबाव एयरपोर्ट व एयर ट्रैफिक कंट्रोलर (एटीसी) पर होता है। फिट उपकरणों के अलावा अनुभवी व दक्ष लोगों का होना जरूरी होता है। एटीसी को कई उड़ानों को आकाश में इंतजार करने तो कइयों को डायवर्जन के लिए कहना होता है। डायवर्जन की स्थिति में निकटवर्ती हवाईअड्डों को तैयार रहना होता है। दिल्ली से डायवर्ट होकर विमान जयपुर, लखनऊ, अमृतसर या कभी-कभी अहमदाबाद भेजे जाते हैं। इसीलिए इन सबको अलर्ट कर दिया गया है।


क्या करें यात्री


कोहरे में यात्रियों को भी तैयार रहना चाहिए और वैकल्पिक उपाय करके चलना चाहिए। उड़ानों के बारे में मोबाइल फोन और इंटरनेट से पूरी सूचना प्राप्त करने के बाद ही घर से निकलना बेहतर रहता है।

दृश्यता और हवाई तकनीक


कैट-3 की जरूरत तब पड़ती है जब दृश्यता सीमा 50 मीटर से कम रह जाती है। इससे अधिक दृश्यता की स्थिति में कैट-2 आइएलएस से काम चल जाता है।


क्या है कोहरा


बूंदों के रूप में संघनित जलवाष्प के बादल को कोहरा कहा जाता है। यह वायुमंडल में जमीन की सतह के थोड़ा ऊपर ही फैला रहता है। एक घने कोहरे में दृश्यताएक किमी से भी कम हो जाती है। इससे अधिक दूरी पर स्थित चीजें धुंधली दिखाई पड़ने लगती हैैं।

कैसे बनता है कोहरा

सापेक्षिक आद्र्रता शत प्रतिशत होने पर हवा में जलवाष्प की मात्रा स्थिर हो जाती है। जिसके चलते अतिरिक्त जलवाष्प के शामिल होने से या तापमान के कम होने से संघनन शुरू हो जाता है। जल वाष्प से संघनित छोटी पानी की बूंदें वायुमंडल में कोहरे के रूप में फैल जाती हैं।


अन्य प्रभाव


केवल आद्र्रता, ताप और दाब ही कोहरे के निर्माण के लिए काफी नहीं होते हैैं। जैसा कि हम जानते हैैं कि गैस से द्रव में बदलने के लिए पानी को गैसरहित सतह की जरूरत होती है। और यह सतह इनको मिलती है पानी के एक बूंद के सौवें भाग से। इन सूक्ष्म हिस्सों को संघनन न्यूक्लियाई या क्लाउड सीड कहते हैैं। धूल मिट्टी, एयरोसॉल और तमाम प्रदूषक तत्व मिलकर संघनन न्यक्लियाई या क्लाउड सीड का निर्माण करते हैं। यदि वायुमंडल में ये सूक्ष्म कण भारी संख्या में मौजूद होते हैं तो सापेक्षिक आद्र्रता 100 फीसद से कम होने के बावजूद जल वाष्प का संघनन होना शुरू हो जाता है।


उत्तर भारत में कोहरे का कारण


दिल्ली, उत्तरी हरियाणा, दक्षिणी पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार देश के सबसे कोहरा प्रभावित क्षेत्रों में प्रदूषण, भू प्रयोग तरीके और कोहरे की आवृत्ति में सीधा संबंध स्पष्ट दिख्राई देता है। दिल्ली जैसे शहरी परिवेश में हवा के अंदर भारी मात्रा में प्रदूषक तत्व जलवाष्प को संघनन के बाद कोहरा निर्माण के लिए प्रचुर सतह को मुहैया कराती हैं  वहीं ग्रामीण इलाकों में खेतों की सिंचाई कोहरे के लिए जरुरत से ज्यादा नमी उपलब्ध कराती है।


बढ़ता प्रकोप:


भारतीय मौसम विभाग के अध्ययन अनुसार

ङ्क्त 1980 के दशक की शुरुआत की जनवरी में प्रतिदिन घने कोहरे का औसत समय- 30 मिनट

ङ्क्त 1995 में घने कोहरे का औसत समय बढ़कर हुआ-1 घंटा

ङ्क्त 1995 के बाद घने कोहरे का औसत समय-2 से 3 घंटा

ङ्क्त 1965 के बाद से उत्तर भारत के सिंचित क्षेत्र में इजाफा-20 गुना


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