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विधायिका की विसंगति

मुद्दा
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pti11पंचायत

लोगों की समस्याओं को आपसी सहमति से दूर करने वाली संस्था। इसके सदस्य यानी पंचों को परमेश्वर बताने वाले देश में इस संस्था की अहमियत का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। गांव स्तर की समस्याओं का निराकरण करने के लिए अगर लघु पंचायत (संस्था का शुरुआती प्रारूप) होती है तो देशव्यापी समस्याएं सुलझाने के लिए संसद हमारी सबसे बड़ी पंचायत है।


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पीड़ा

एक बार फिर देश की सबसे बड़ी पंचायत लग चुकी है। अपने कल्याण के लिए जनमानस उस ओर टकटकी लगाए निहार रहा है। देखे भी क्यों न। आखिर इसी दिन के लिए तो इन्हें चुनकर भेजा जो है। लेकिन यह क्या? पंचायत तो दूसरों में सहमति कराने के लिए जानी जाती हैं लेकिन यहां अहम मसलों पर इनके बीच ही सहमति नहीं दिख रही है। असहमति का यह दौर बहुत पुराना और लंबा है। विडंबना देखिए। खुद से जुड़े मसले हों तो क्या पक्ष, क्या विपक्ष सभी एक हो जाते हैं। सहमति का अद्वितीय नमूना दिखता है। सरकार बचानी हो तो पर्याप्त संख्या बल का इंतजाम सहजता से हो जाता है। जनहित पर इनके बीच असहमति से आम इन्सान छला महसूस करता है। उसे लगता है कि उसकी भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है।


परहेज

22 नवंबर से शुरू हुए शीतकालीन सत्र के दौरान भी सबसे बड़ी पंचायत अपने इस रूप की पुनरावृत्ति करते हुए दिख रही है। जिस तरह से विपक्षी कमर कसे हुए हैं उससे तो यह गतिरोध लंबा खिंचता दिख रहा है। इस रस्साकशी में आम जनहित को चोट पहुंच रही है। ऐसे में यह हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है कि अहम मसलों पर राजनीति करने की बजाय हमारे राजनीतिक दल संसद के सबसे बड़ी पंचायत होने की कहावत को चरितार्थ और सार्थक करें। इसके लिए उन्हें उन मसलों पर आपसी सहमति बनानी होगी जो राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक क्षेत्रों के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकते हैं।


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44 साल से लंबित लोकपाल विधेयक

पहली बार 1968 में चौथी लोकसभा में पेश। इस सदन से यह विधेयक 1969 में पारित भी हो गया लेकिन राज्यसभा में अटका रहा। इसी बीच लोकसभा के भंग हो जाने के चलते यह विधेयक पहली बार में ही समाप्त हो गया। इस विधेयक को एक बार नए सिरे से 1971, 1977, 1985, 1989, 1996, 1998, 2001, 2005 और हाल ही में 2008 में संसद में पेश किया गया। हर बार पेश करने के बाद इस विधेयक में सुधार के लिए या तो किसी संयुक्त संसदीय समिति या गृह मंत्रालय की विभागीय स्थायी समिति के पास भेजा गया। और जब तक इस विधेयक पर सरकार कोई अंतिम निर्णय ले पाती सदन ही भंग हो गया।


अब तक लंबित बिल

संसद के शीतकालीन सत्र में कुल 20 बैठकें होंगी। इस दौरान सदन में 25 लंबित बिल विचार और पास कराने के लिए रखे जाएंगे। 10 नए बिलों को भी पेश किए जाने की संभावना है। संसदीय मसलों पर गहरी नजर रखने वाली संस्था पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार संसद में अब तक कुल 102 बिल लंबित हैं। इनमें सबसे पुराना बिल द इंडियन मेडिकल काउंसिल अमेंडमेंट बिल, 1987 को 26 अगस्त, 1987 को राज्यसभा में पेश किया गया था। इनमें 15 ऐसे बिल भी हैं जो दोनों में से किसी न किसी एक सदन से पारित हो चुके हैं। कई बिलों पर स्थायी समिति अपनी रिपोर्ट भी दे चुकी है।


मौजूदा सत्र में पेश होने वाले बिल व स्थिति द एजुकेशनल ट्रिब्यूनल्स बिल, 2010: तीन मई को लोकसभा में पेश। यहां पारित लेकिन राज्यसभा में लंबित


नेशनल एक्रीडिटेशन रेगुलेटरी अथॉरिटी फॉर हायर एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस बिल: मई, 2010 को लोकसभा में पेश, अगस्त 2011 को स्थायी समिति ने रिपोर्ट पेश की


प्रोहिबिशन ऑफ अन्फेयर प्रैक्टिसस इन टेक्निकल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस, मेडिकल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस एंड यूनिवर्सिटी बिल, 2010: 3 मई 2010 को लोकसभा में पेश, 30 मई, 2011 को स्थायी समिति ने रिपोर्ट पेश की


आर्किटेक्ट (अमेंडमेंट) बिल, 2010:  31 अगस्त को राज्यसभा में पेश, जनवरी,11 को समिति ने रिपोर्ट दी

बैंकिंग लॉज (अमेंडमेंट) बिल, 2011: 22 मार्च को लोकसभा में पेश, 13 दिसंबर,11 को स्थायी समिति ने रिपोर्ट दी

पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी बिल, 2011: 24 मार्च, 2011 को लोकसभा में पेश, 30 अगस्त, 2011 को स्थायी समिति ने रिपोर्ट पेश की

इंश्योरेंस लॉज (अमेंडमेंट) बिल, 2008: 22 दिसंबर को राज्यसभा में पेश, 13 दिसंबर,11 को समिति ने रिपोर्ट दी

फॉरवर्ड कांट्रैक्ट्स (रेगुलेशन) अमेंडमेंट बिल, 2010: छह दिसंबर 10 को लोकसभा में पेश, 22 दिसंबर 11 को स्थायी समिति की रिपोर्ट पेश

कंपनीज बिल, 2011: 14 दिसंबर,11 को लोकसभा में पेश, स्थायी समिति को नहीं भेजा गया

प्रिवेंशन ऑफ मनी-लॉड्रिंग (अमेंडमेंट) बिल, 2011: 27 दिसंबर, 2011 को लोकसभा में पेश, नौ मई, 2012 को स्थायी समिति ने रिपोर्ट पेश की

लोकपाल एंड लोकायुक्त बिल, 2011: 22 दिसंबर 11 को लोकसभा में पेश, 27 दिसंबर को यहां पारित। राज्यसभा की सेलेक्ट कमेटी ने रिपोर्ट पेश की

व्हिसिल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन बिल, 2011: 26 अगस्त10 को लोकसभा में पेश, 27 दिसंबर 11 को पारित, राज्यसभा में लंबित

प्रिवेंशन ऑफ बाइब्ररी ऑफ फॉरेन पब्लिक ऑफिशियल्स एंड ऑफिसियल्स ऑफ पब्लिक इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशंस बिल, 2011: 25 मार्च को लोकसभा में पेश, 29 मार्च 12 को समिति ने रिपोर्ट दी

अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) अमेंडमेंट बिल, 2011: 29 दिसंबर को लोकसभा में पेश, 28 माच 12 को स्थायी समिति ने रिपोर्ट पेश की

प्रोटेक्शन ऑफ वुमन फ्रॉम सेक्शुअल हैरसमेंट एट वर्कप्लेस बिल, 2010: सात दिसंबर को लोकसभा में पेश, तीन सितंबर, 12 को पारित, राज्यसभा में लंबित

कांस्टीट्यूशन (108वां अमेंडमेंट) बिल, 2008 (महिला आरक्षण बिल): छह मई, 2008 को राज्यसभा में पेश, नौ मार्च 10 को पारित, लोकसभा में लंबित

कांस्टीट्यूशन (110वां अमेंडमेंट) बिल, 2009 (रिजव्र्स फॉर वुमन 50 परसेंट ऑफ सीट्स इन पंचायत): 26 नवंबर को लोकसभा में पेश, 28 जुलाई 10 को स्थायी समिति ने रिपोर्ट पेश की

कांस्टीट्यूशन (117वां अमेंडमेंट) बिल, 2012 (रिजर्वेशन इन प्रमोशन टू एससी एंड एसटी विद रेट्रोस्पेक्टिव इफेक्ट): पांच सितंबर को राज्यसभा में पेश, समिति को नहीं भेजा गया

कांस्टीट्यूशन (सेड्यूल्ड कास्ट) ऑर्डर (अमेंडमेंट) बिल, 2012 (मोडीफाइड एससी लिस्ट ऑफ केरल, मध्यप्रदेश, ओडिशा, त्रिपुरा और सिक्किम): 21 मई को लोकसभा में पेश, 24 अगस्त 12 को स्थायी समिति ने रिपोर्ट पेश की

मोटर वेहिकिल्स (अमेंडमेंट) बिल, 2007: 15 मई को राज्यसभा में पेश, यहां पारित, लोकसभा में लंबित

वेयरहाउसिंग कारपोरेशंस (अमेंडमेंट) बिल, 2011: 8 दिसंबर को लोकसभा में पेश, 30 अगस्त 12 को स्थायी समिति ने रिपोर्ट पेश की

नेशनल हाइवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया (अमेंडमेंट) बिल, 2011: 19 दिसंबर 11 को लोकसभा में पेश, 15 मार्च 12 को स्थायी समिति ने रिपोर्ट पेश की

सिटिजनशिप (अमेंडमेंट) बिल, 2011: आठ दिसंबर को राज्यसभा में पेश, 28 मार्च 12 को समिति ने रिपोर्ट पेश की

नार्थ-ईस्टर्न एरियाज (रिआर्गनाइजेशन) अमेंडमेंट बिल, 2011: सात दिसंबर, को लोकसभा में पेश, तीन सितंबर 12 को लोकसभा में पारित, राज्यसभा में लंबित


16 साल से लंबित महिला आरक्षण बिल

12 सितंबर 1996 को देवगौड़ा सरकार द्वारा लोक सभा में पहली बार 81वें संविधान संशोधन बिल के तहत पेश किया गया। बाद में इसे संयुक्त संसदीय समिति को सौंपा गया। 1996 में ही समिति ने रिपोर्ट दी। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की राजग सरकार द्वारा बारहवीं लोक सभा में बिल पेश किया गया। 1999  (तेरहवीं लोक सभा) में फिर पेश। 2002 और 2003 में दो बार बिल को पेश किया लेकिन पारित नहीं हो सका। 2009 में इसे दोनो सदनों में पेश किया गया। 25 फरवरी 2010 को कैबिनेट ने इस बिल को मंजूरी दी। और अंतत: नौ मार्च, 2010 को इसे राज्यसभा से पारित कराया जा सका।


अब तक पारित बिल

पारित कुल बिल

पहली (1952-57)               333

दूसरी (1957-62)                327

तीसरी (1962-66)              272

चौथी (1967-70)                216

पांचवीं (1971-76)              482

छठी (1977-79)                 130

सातवीं (1980-84)             329

आठवीं (1985-89)             334

नौवीं (1989-91)                063

दसवीं (1991-96)               277

11वीं (1996-97)               061

12वीं (1998-99)               056

13वीं (1999-2004)           297

14वीं (2004-09)              248

125

में 10वें सत्र तक)


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