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बढ़ते धनकुबेर
आज आम आदमी भले ही कमाई और महंगाई से जूझ रहा हो लेकिन हमारे धनकुबेर दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं। हालांकि इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि बीते हुए समय की तुलना में आज आम लोग ज्यादा आराम में हैं। समृद्धि नीचे से लेकर ऊपर तक बढ़ी है। लेकिन यह केवल मौद्रिक समृद्धि ही साबित हो रही है।
दुनिया में कुल अरबपतियों का चार फीसद भारतीय हैं। यानी प्रत्येक सौ अरबपति में से चार यहां से हैं। 2012 में फोब्र्स द्वारा जारी सालाना सूची में 48 अरबपति भारतीय हैं। इनकी कुल संपत्ति 194.6 अरब डॉलर है। यही नहीं, नौ ऐसे लोग भी इस सूची में शामिल हैं जो भारतीय मूल के हैं और परदेस में रह रहे हैं। 19वीं सदी के नौवें दशक में देश में कुल गिने चुने दो अरबपति थे। इनकी कुल संपत्ति 3.2 अरब डॉलर थी। इस समय इनकी कुल संपत्ति देश के सकल घरेलू उत्पाद का एक फीसद थी। 2008 के दौरान शेयर बाजार द्वारा लगाई गई छलांग के समय इनकी संपत्ति सकल घरेलू उत्पाद का 22 फीसद तक पहुंच गई थी। हालांकि बाजार में आई गिरावट से आज इनकी संपत्ति का यह अनुपात 10 फीसद पहुंच चुका है।
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फोब्र्स की 2012 की सूची के अनुसार दुनिया में कुल 1226 अरबपति हैं। इनकी कुल संपत्ति 46 खरब डॉलर है। पिछले साल की तुलना में2012 में अरबपतियों की संख्या में एक फीसद का इजाफा है। पचीस साल पहले जब फोब्र्स ने अपनी पहली सूची जारी की थी तो दुनिया भर में महज 140 अरबपति थे।
पालन पोषण से लेकर हमारे कल्याण में प्रकृति का महती योगदान रहा है, लेकिन हम सब प्रकृति को परे रखकर समृद्धि हासिल करने के फेर में उसका नाश करते जा रहे हैं। प्रकृति और इन्सान के इसी रिश्ते का आकलन करने के लिए 2006 से न्यू इकोनॉमिक्स फाउंडेशन नामक संस्था हैप्पी प्लेनेट इंडेक्स (एचपीआइ) तैयार कर रही है। इसे लोगों के कल्याण और पर्यावरण के बीच के असर के आधार पर तैयार किया जाता है। हम प्रकृति पर इतना प्रहार कर चुके हैं कि इस सूचकांक में बहुत निचले पायदान पर स्थान मिला है।
2012 151 32 50.9
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भ्रष्टाचार का वार
तथाकथित समृद्धि हासिल करते हुए हम साल दर साल भ्रष्टाचार के गर्त में समाते जा रहे हैं। हमारी चाल, चरित्र और चेहरे का नक्श बिगड़ता जा रहा है। नैतिकता की परवाह करने वाले चंद लोग ढूंढने पर मिलेंगे। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा हर साल जारी किए जाने वाले भ्रष्टाचार सूचकांक में हम निचले पायदान पर जगह बनाते रहे हैं। इस सूचकांक में हम सर्वाधिक भ्रष्ट देशों में शुमार हैैं। साल दर साल स्थिति सुधरने की बजाय और बिगड़ रही है
साल रैैंक स्कोर देशों में
2011 95 3.1 183
2010 87 3.3 178
2009 84 3.4 180
2008 72 3.5 179
2007 70 3.3 163
लोकतंत्र की पीड़ा
‘लोकतंत्र’ देखने, सुनने, समझने और महसूस करने में जितना आदर्श और प्रेरक लगता है, उतना है नहीं। लोकतंत्र में शीर्ष सत्ता पर बैठे लोगों की शुचिता, नैतिकता, चरित्र, निष्ठा और जवाबदेही में आए क्षरण का असर सबसे निचले स्तर तक देखा जा सकता है। हम लोकतंत्र में रह जरूर रहे हैं लेकिन जी नहीं पा रहे हैं। इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट द्वारा हर साल तैयार किए जाने वाले लोकतंत्र सूचकांक में हमें ऐसे देशों के साथ शामिल किया गया है जहां पूर्ण लोकतंत्र नहीं है। साल 2011 के लोकतंत्र सूचकांक में हमारे देश को 39वें पायदान पर जगह मिली है। हम लोग भले ही देश में लोकतंत्र कायम होने की अनुभूति करते हुए उसकी कीर्तिगाथा गाते रहें, लेकिन इस सूचकांक में हमें पूर्ण लोकतंत्र नहीं माना गया है। पूर्ण लोकतंत्र के तहत 25 देश ही शामिल हैं जबकि हम कुल 7.30 स्कोर के साथ दोषपूर्ण लोकतंत्र वाली श्रेणी में शामिल हैं। देश में राजनीतिक भागीदारी, सरकारी कार्यप्रणाली और राजनीतिक संस्कृति की दशा को बेहद खराब बताया गया है। लिहाजा इन क्षेत्रों के लिए इसे बहुत कम स्कोर दिया गया है।
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