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पर्वः_प्रकाशोत्सव। समृद्धि का प्रतीक। अंधेरे पर उजाले की विजय। बुराई पर अच्छाई की जीत। अज्ञानता पर ज्ञान का परचम। विपन्नता को भगाने खुशहाली को लाने का दिन। देश के प्रमुख त्योहार दीपावली को समृद्धि का सूचक माना जाता है।
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सर्वः सभी लोग इस दिन धन की प्राप्ति के लिए लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं। इनकी कृपा भी बरसती है। लिहाजा हम उत्तरोत्तर समृद्ध भी होते गए। अपवादों को छोड़ दें तो यह बात समाज के हर तबके और हर व्यक्ति पर लागू होती दिखती है। वह खुद को पहले की तुलना में ज्यादा समृद्ध समझ सकता है, लेकिन क्या वास्तव में भौतिक समृद्धि ही सचमुच की समृद्धि है। क्या केवल इसी से कोई खुशहाल हो सकता है। आज बहुसंख्य का नैतिक एवं चारित्रिक पतन सहज भाव से देखा जा सकता है। जिन्हें हमारा आदर्श होना चाहिए था, वे भ्रष्टाचार, अपराध,काले धन और समाज विरोधी गतिविधियों की तिजोरी में कैद हैं। प्रकृति के प्रति हम सभी अपना दायित्व भूल चुके हैं। पर्यावरण को मिटाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। हमारे अस्तित्व के लिए जिम्मेदार जल, जंगल जमीन और हवा का अस्तित्व मिटाने में जुटे हैं। ऐसे में क्या सबकुछ गंवाकर केवल धन प्राप्त करके हम खुद को समृद्ध पाते हैं।
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गर्वः धन को हाथ का मैल समझने वाले देश में हमारे मनीषियों ने कहा था कि अगर आपका धन (वेल्थ) चला जाए तो समझो कुछ नहीं गया। अगर आपका स्वास्थ्य (हेल्थ) चला जाए तो समझो आपने कुछ खोया, लेकिन अगर चरित्र चला जाए तो समझो सब चला गया। लगता है, आज इन बातों के मायने उलट गए हैं। आज हमारे पास सब कुछ है, लेकिन हमारी प्राथमिकता में से चरित्र गायब है। इसलिए चरित्र रूपी समृद्धि को हासिल करना हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है। अंधेरे को दूर भगाने वाले पावन पर्व दीपावली से बढ़िया और कोई मौका नहीं हो सकता। लिहाजा आइए, वास्तविक समृद्धि को हासिल करने के लिए हम सब संकल्प लें।
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