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सामाजिक आचार बताते हैं त्योहार –

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Sanjay Srivastavaसमृद्धि की आशाओं के जलसे के रूप में मनाए जाने वाले त्योहार दीपावली का सबसे बड़ा महत्व सिर्फ धन नहीं है। इसका महत्व जीवन के कई अनमोल पहलू से जुड़ा हुआ है। हमारे जीवन में भाई-चारे को बढ़ाने और एक दूसरे के दुख-सुख का हमसफर बनाना ही शायद इसका मुख्य उद्देश्य होता है।

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कुछ वर्षों से दीपावली का एक नया रूप देखने में आ रहा है। हम ऐसा त्योहार मनाने में व्यस्त हैं जिसमें हम शायद त्योहार और श्रद्धा के सही मायने से अलग हो रहे हैं। आज कल बाजारों में देवी-देवताओं के नए रूप इस बात का आभास दिलाते हैं कि पिछले 20-25 साल की आर्थिक समृद्धि ने हमारे अंदर एक अजीब सी बेचैनी भर दी है जिसका समाधान ज्यादा से ज्यादा महंगी चीज को हासिल कर लेना ही है। आज हम इतने तो समृद्ध हैं ही कि लाखों रुपये खर्च कर हीरे जड़ित लक्ष्मी जी की प्रतिमा खरीद सकें। कई लोग इसे ‘उभरते भारत का नया रूप’ जैसे तर्क दे सकते हैं और बता सकते हैं कि यह हमारे आर्थिक विकास की एक झलक है। सभी अपनी-अपनी खुशियों का प्रकटीकरण अलग अलग अंदाज से करते हैं और करना भी चाहिए। इसमें कुछ गलत नहीं है लेकिन अगर त्योहारों का रिश्ता सारे समाज से है तो जिस प्रकार हम दीपावली मनाते हैं उसपर किस प्रकार की सामाजिक दृष्टि डाली जाए। बाजार से लेकर व्यक्तिगत रूप में सभी त्योहार के मायने का अपव्यय करते हुए दिखते हैं। मिलावटखोरी चरम पर होती है। हम भी पटाखों और फुलझड़ियों को चलाने में संयम नहीं बरतते। सबसे पहले इस पर गौर करना चाहिए कि समृद्धि का यह त्योहार एक ऐसे माहौल में मनाया जाता है जहां इस देश की अधिकतम जनता अपना जीवन बहुत ही दयनीय दशा में गुजारती है। अगर कुछ घरों में लाखों रुपये की रोशनी जगमगाती है, तो कई करोड़ लोगों को एक-आध घंटे की बिजली भी नहीं उपलब्ध है। कहीं पकवानों का लंबा मेन्यू होता है तो कहीं दो जून का खाना भी नहीं नसीब होता है। हां, यह बात और है कि समृद्धि के इस प्रतीक त्योहार के अवसर पर शायद ही हम सोचते हैं कि पैसा बनाने के उचित और अनुचित तरीके क्या होने चाहिए? बेशक यह सच है कि हर साल अरबपतियों की सूची लंबी होती जा रही है। बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के नए-नए मामले सामने आ रहे हैं। क्या यह जरूरी नहीं कि इस पावन पर्व पर हम समृद्धि के सही मायने पर विचार करें?



खुशियों के इस त्योहार पर क्या हम निजी खुशियों को सामाजिक दु:ख-सुख की दृष्टि से भी देखते हैं? त्योहार और धर्म चरित्र के विकास में सहयोग करते हैं। सामाजिक सोच को बढ़ावा देते हैं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और अगर उसकी सोच सामाजिक नहीं है तो उसका उच्च स्तरीय चरित्र कदापि नहीं हो सकता। सच्चे धर्म की झलक ‘सर्व जन हिताय’ में ही है। यह अंधकार को समाप्त करने वाला त्योहार है। यह अंधकार कई प्रकार का हो सकता है। कहीं समृद्धि के अभाव का अंधकार होता है, तो कहीं ज्ञान और चरित्र का अंधकार होता है। एक सफल जीवन वह है जो दोनों प्रकार के अंधकारों से अपने आप को दूर करे।


प्रो संजय श्रीवास्तव


इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्र्रोथ, दिल्ली विश्वविद्यालय

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Tags:Diwali, Celebration, India, Diwali Celebration, दीपावली , महालक्ष्मी

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