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न च वित्तेन तर्पणीयो मनुष्य

मुद्दा
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pushpantदीपावली के दिन महालक्ष्मी का पूजन किया जाता है जिन्हें मनचाही ‘समृद्धि’ का दात्री समझा जाता है। सुख-संपत्ति एक दूसरे का पर्याय बन चुके हैं और इनके अलावा समृद्धि का कोई अन्य रूप हम आज पहचानते ही नहीं। पूजा के वक्त आराधक अपनी सामथ्र्य भर हैसियत का प्रदर्शन करते हैं इस कामना के साथ कि लक्ष्मी मेहरबान हों तथा निकट भविष्य में ही हमारे घर को अपार धन से भर दें। कोई बच्चा पूछे तो उसे समझाया जाता है कि अंधेरी रात में लक्ष्मी को राह दिखलाने का काम ही दीपक करते हैं और उनके प्रकाश में कोई बाधा ना पड़े इसीलिए दरवाजे देर तक खुले रखे जाते हैं!


कुछ और दुस्साहसिक लोग इसीलिए जुआ खेलना इस पूजा का अभिन्न अंग समझते हैं कि क्या जाने कौन सा दाव लग जाए और वह पलक झपकते मालामाल हो जाए। यह नादान इस प्रतीक के पीछे की प्रेरणा को आत्मघातक रूप से भूल चुके हैं। पासा फेंकना हो या ताश की गड्डी फेंटना इसका मकसद सिर्फ  यह याद दिलाना है कि लक्ष्मी बेहद चंचला होती हैं कहीं कभी स्थिर नहीं रहती। धनागम, धनगमन संयोग से होता है।


बचपन की सुनी कुछ और बातें इस दिन हमें बरबस याद आती हैं। ‘संतोषम् परमम् सुखम्’ तथा ‘विद्यैव धनमक्षयम्’ का अनुवाद निरक्षर भी खुद कर सकता है। सच्चा सुख संतोष में है और विद्या ही ऐसा धन है जो दोनों हाथ से खर्च करने पर भी घटता नहीं। दिक्कत अनुवाद की नहीं इस लोक पारंपरिक ज्ञान को आत्मसात कर उसके अनुसार आचरण करने की है। उपनिषद का सूत्र वाक्य है ‘न च वित्तेन तर्पणीयो मनुष्य:’ यानी अपार धन राशि भी मनुष्य को मोक्ष नही दिला सकती! क्यों लक्ष्मीजी का वाहन उल्लू दर्शाया गया है? क्या वास्तव में महालक्ष्मी का बैर सरस्वती से है? क्यों और कब हमने सरस्वती के खजाने के अनमोल रत्नों को समृद्धि में शुमार


करना बंद कर दिया? यह सोचने विचारने का दिवाली के दिन से बेहतर  कोई दूसरा मौका नहीं मिल सकता। भारत के मिथकों तथा पुराणों में अनेक जगह ‘अष्ट सिद्धि नव निधि’ का उल्लेख होता है। जरा इस सूची पर नजर डालें। यह मात्र धन-दौलत, सोने, चांदी या जवाहरात तक सीमित नहीं। व्यक्तिगत साधना तथा परिश्रम से अर्जित ‘असाधारण क्षमताएं’ ही असली समृद्धि है जो हमें दुख संताप पर विजय प्राप्त करने में समर्थ बनाती हैं। इनको शब्दश: अनुवाद कर चमत्कारों का पर्याय

ना समझें। यह तमाम प्रकरण प्रतीक हैं जो हमें समृद्धि के विविध रूपों के बारे में सार्थक, संतुलित ढंग से सोचने में

मददगार होते हैं।



इस वर्ष दीपावली पर हमारा सविनय निवेदन ही नहीं, सस्नेह आग्रह भी है कि अपनी समृद्धि को ‘आंकने के लिए तथा तदुपरांत इसकी वृद्धि की प्रार्थना करने का काम स्थगित कर, हानि लाभ वाले लेखे जोखे को परे सरका, अपनी तथा परिवार की सर्वांगीण विकास वाली समृद्धि की कामना करें! दीपावली आप सभी के लिये मंगलमय हो!

पुष्पेष पंत

प्रोफेसर, जेएनयू

Tags:Diwali, Celebration, India, Diwali Celebration, दीपावली , महालक्ष्मी

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