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क्रांतिकारी कानून के प्रति जागरूकता की जरूरत

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-प्रदीप कुमार (2010 के सर्वश्रेष्ठ जन सूचना अधिकारी और वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के रैत में बीडीओ)
-प्रदीप कुमार (2010 के सर्वश्रेष्ठ जन सूचना अधिकारी और वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के रैत में बीडीओ)

सूचना अधिकार कानून से बहुत क्रांतिकारी बदलाव आया है। भ्रष्टाचार को नकेल लगाने वाले इस अधिनियम से जनता का सशक्तीकरण हुआ है। इसमें शक नहीं कि लागू करने से लेकर अब तक इसकी पहुंच और इसके प्रति जागरूकता प्रभावी ढंग से बढ़ी है।


शुरुआती दौर में बहुत कम आरटीआइ आवेदन प्राप्त होते थे जो अब काफी बढ़ चुके हैं। यह उत्साहवद्र्धक है। जागरूकता पिछले सात वर्षों के दौरान बढ़ी है हालांकि अधिनियम के साथ सब कुछ ठीक अब भी नहीं है। सूचना का अधिकार मिलने से खुलापन तो आया पर कुछ समस्याएं भी पैदा हो गई हैं। ऐसे आवेदक भी हैं जो कई बहुत पुरानी सूचनाएं इकलौते आवेदन के साथ मांगते हैं। ऐसे आवेदनों के साथ निपटना सूचना अधिकारी के लिए कठिन हो जाता है। लोग कानून के बारे में तो जागरूक हैं लेकिन इसे कैसे और कहां प्रयोग करना है, किस प्रकार की सूचनाओं को लेने के लिए करना है, इसके बारे में लोगों के बीच अभी आधी अधूरी जानकारी है।


चूंकि यह एक सशक्त और प्रभावी कानून है लिहाजा इसका सही इस्तेमाल बहुत जरूरी हो जाता है। कई बार निजी सूचना मांग ली जाती है। सरोकार का एक विषय यह भी है कि गरीबी रेखा के नीचे के मानदंड का इस कानून के इस्तेमाल में दुरुपयोग होता है। चूंकि कानून के अनुसार गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों को सूचना नि:शुल्क देनी होती है लेकिन कई बार देखने में आया है कि नि:शुल्क के नाम पर अमीर तबके के लोग इसका गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसी प्रवृत्ति सरकार के पैसे का नुकसान और कानून का दुरुपयोग करती है।


कुछ आवेदनों में राज्य और केंद्र दोनों के स्तर पर एक ही प्रार्थनापत्र में सूचनाएं मांग ली जाती हैं। लोगों को सूचना के अधिकार का तो पता है लेकिन जानकारी किससे लेनी है यानी सूचना अधिकारी कौन है, क्या पूछना है, अपील के लिए क्या रास्ता है और उसके बाद सूचना का उपयोग कैसे करना है, यह अब भी बहुत लोगों को पता नहीं है। कई बार व्यक्तिगत खुन्नस के मामले भी सामने आए हैं। ऐसे भी मामले हैं जिनमें आवेदन तो कर दिया गया लेकिन उसके पीछे कोई सामाजिक सरोकार, लक्ष्य या सार्वजनिक हित की भावना नहीं है। इस प्रकार के अनुरोध या आवेदन केवल सरकारी कार्यालयों का बोझ ही बढ़ाते हैं।


हालांकि जैसे जैसे लोग इस कानून के प्रति जागरूक हो रहे हैं, मांगी जाने वाली सूचनाओं की गुणवत्ता में सुधार दिख रहा है लेकिन अभी और सुधार की गुंजायश है। आवेदकों को यह पता होना चाहिए कि उन्हें क्या सूचना मिल सकती है और क्या नहीं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह अधिनियम सरकारी कार्यालयों के फैसलों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाता है। जरूरत इस बात की है कि निचले स्तर पर ग्राम पंचायतों और स्कूलों में इसके प्रति जागरूकता अभियान नियमित रूप से चलाए जाएं। जनता को शिक्षित करने के लिए एक मुहिम छेड़ी जाए कि सूचना कैसे लेनी है, प्रार्थनापत्र कैसे देना है ताकि जनता का हित हो सके। आरटीआइ आमजन के रोजमर्रा के जीवन के साथ जुड़ा कानून है। इसकी सफल गाथाएं दस्तावेजों के रूप में प्रचारित की जाएं। चूंकि इसमें दुरुपयोग होने की आशंका और सुशासन की क्षमता दोनों हैं इसलिए प्रतिबद्धता हर स्तर पर चाहिए।


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chabheसशक्त हथियार


आरटीआइ कानून समाज सेवियों, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और जागरूक लोगों के लिए सबसे बड़ा हथियार साबित हो रहा है। अमल में आने के बाद से अब तक इसके इस्तेमाल से जनहित में कई सूचनाएं सामने आईं जिनसे कई बड़े घोटालों का रहस्योद्घाटन हुआ। ऐसे ही कुछ ताजा घोटालों पर पेश है एक नजर:


हाराष्ट्र सिंचाई घोटाला


70 हजार करोड़ रुपये के इस घोटाले का पर्दाफाश आरटीआइ कार्यकर्ता अंजलि दमानिया ने किया। नतीजतन महाराष्ट्र के सिंचाई मंत्री अजीत पवार को इस्तीफा देना पड़ा। इस मामले में भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर भी आरोप है कि उन्होंने अपने निजी हितों के लिए सिंचाई परियोजनाओं का लाभ लिया और किसानों की जमीन एवं पानी का इस्तेमाल किया।


डॉ जाकिर हुसैन ट्रस्ट मामला


कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के डॉ जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट के फर्जीवाड़े का मामला भी उजागर हुआ है। ट्रस्ट पर आरोप है कि विकलांगों के लिए आयोजित किए जाने वाले कई कैंप लगाए ही नहीं गए और सरकार से पैसा पाने के लिए दस्तावेजों पर फर्जी हस्ताक्षर किए गए। इसके लिए एक निजी खबरिया चैनल के पत्रकारों ने आरटीआइ के तहत सूचनाएं एकत्र कीं।


रॉबर्ट वाड्रा जमीन मामला


टीम अरविंद केजरीवाल ने आरटीआइ के माध्यम से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के हरियाणा में भूमि सौदों का मामला उजागर किया है। ये सौदे रॉबर्ट वाड्रा और रीयल एस्टेट कंपनी डीएलएफ के बीच हुए हैं। इनसे वाड्रा को करोड़ों का लाभ हुआ। इस पूरे मामले में हरियाणा सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठाए

गए हैं। मामला उजागर होने के बाद इन भूमि सौदों की जांच का आदेश देने वाले आइएएस अधिकारी अशोक खेमका का भी तबादला कर दिया गया।


जान की बाजी


जनहित में जान की बाजी लगाने वाले कार्यकर्ताओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है। आरटीआइ द्वारा घोटालों को सामने लाने के बाद इन लोगों के कई दुश्मन पैदा हो गए। अपर्याप्त सुरक्षा के चलते इनमें से कई आरटीआइ कार्यकर्ता जानलेवा हमले में गंभीर रूप से घायल हुए तो कई को जान से हाथ धोना पड़ा है। चुनिंदा मामलों पर एक नजर:


नदीम सैयद : अहमदाबाद म्यूनिसिपल कारपोरेशन (एएमसी) में 2006 से लेकर 2009 के बीच करीब 40 आरटीआइ आवेदनों के जरिए भ्रष्टाचार के कई मामलों का पर्दाफाश किया। पांच नवंबर, 2011 को उनकी हत्या कर दी गई।


शेहला मसूद : 16 अगस्त, 2011 को इस आरटीआइ कार्यकर्ता की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। वह वन्यजीव और पर्यावरण संरक्षण के मसले को उठा रही थी।


अखिल गोगोई : असम के आरटीआइ कार्यकर्ता हैं। उन्होंने आरटीआइ एक्ट का उपयोग कर असम के गोलाघाट जिले में संपूर्ण ग्राम स्वरोजगार योजना में 1.25 करोड़ और इंदिरा आवास योजना में 60 लाख रुपये के घोटाले को उजागर किया। इसके लिए उनको 2008 में षणमुगम मंजूनाथ सद्भावना पुरस्कार से सम्मानित किया गया।


नियामत अंसारी : झारखंड के लातेहार जिले में मनरेगायोजना में व्याप्त घोटाले का पर्दाफाश किया। इसके बाद तीन व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया। दो मार्च, 2011 को उनकी हत्या कर दी गई।


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