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हमारी सिंचाई प्रणाली

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देश की अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी भले ही लगातार कम हो रही हो, लेकिन बड़ी तादाद में आज भी लोगों की आजीविका का मुख्य स्नोत खेती किसानी ही है। हालांकि जीडीपी में कृषि की घटती हिस्सेदारी के पीछे इस क्षेत्र का उपेक्षित होना है। यह मानकर बैठ जाना कि भारतीय कृषि मानसून पर आधारित है, सरकार की अकर्मण्यता का और किसानों की बेबसी का परिचायक है। इसके अलावा सिंचाई, बुवाई, इत्यादि की आधुनिक विधियों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने में विफल रहना, कम पानी की खपत वाली फसलों की प्रजातियां विकसित करने में नाकाम रहना इत्यादि कृषि के पिछड़ेपन के प्रमुख कारण हैं।


जरूरत: 1950-51 के दौरान कुल सिंचाई क्षमता 226 लाख हेक्टेयर थी। अब (2005) सिंचित क्षेत्र का रकबा 10 करोड़ हेक्टेयर हो चुका है। सिंचाई क्षमता में वृद्धि के चलते ही हम खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हो सके हैं। 1951 में खाद्यान्न उत्पादन 5 करोड़ टन के मुकाबले अब करीब पांच गुना बढ़ चुका है। हालांकि मौजूदा परिस्थितियां डराने वाली हैं। जिस तरह से सिंचाई भगवान भरोसे हैं और ग्लोबल वार्मिंग से बारिश का चक्र बदल रहा है उसका सीधा असर कृषि पर पड़ रहा है। हमारी जरूरतें बढ़ रही हैं। 2050 में 1.6 से 1.7 अरब भारतीयों का पेट भरने के लिए हमें 45 करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत होगी। यानी मौजूद उपलब्धता का दोगुना। ऐसे में बिना सिंचित क्षेत्र में वृद्धि के सिर्फ मानसून भरोसे इसे हासिल करना असंभव है।


सिंचाईं के साधन

स्रोत1950-1951*%1999-2000*

%

नहरों द्वारा834018031.5
कुओं और

नलकूपों द्वारा

602933658.7
पोखर द्वारा3617274.7

अन्य स्नोत3014295.1

कुल209100572100.0

पानी की मांग

मकसद2000

20102025
घरेलू इस्तेमाल

425673
सिंचाई541

688910
ऊर्जा

81223
उद्योगों में

2515
अन्य41

5272
कुल

6348131093

(अरब घन मीटर में)

भगवान भरोसे

देश में कुल खाद्यान्न का 56 प्रतिशत हिस्सा 470 लाख हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र से उपजाया जाता है। शेष 44 फीसद खाद्यान्न 950 लाख हेक्टेयर असिंचित जमीन में पैदा किया जाता है। यानी लगभग आधा अनाज उत्पादित करने में सिंचाई की सुविधा के अभाव में दोगुनी जमीन का रकबा इस्तेमाल करना पड़ रहा है। यह पूरा क्षेत्र बारिश के ऊपर निर्भर है। यह हाल एक, दो नहीं बल्कि हजारों साल से चला आ रहा है। अगर सरकार यहां सिंचाई के साधन मुहैया करा दे तो यह माटी सोना उपजने लगे।

लंबित सिंचाई योजनाएं

एक्सीलेरेटेड इरीगेशन बेनेफिट्स प्रोग्र्राम के तहत 2002 से चलाई जा रहीं 96 सिंचाई योजनाओं में से अधिकांश अपने समय से बहुत पीछे हैं। 15 राज्यों में चल रहीं ये योजनाएं 3 से 6 साल देरी से चल रही हैं।

बर्बादी: देरी से इनकी लागत में काफी इजाफा हो चुका है। जिसका सीधा असर जनता की जेब पर पड़ना तय है। सभी योजनाओं की लागत 61,319 करोड़ रुपये हो चुकी है जो शुरू करने के समय से 35 फीसद बढ़ चुकी है।

राज्यकुल  योजनाएंलंबितअनुमानित लागत*
शुरुआत मेंअब

महाराष्ट्र26

183,6678,861
आंध्र प्रदेश

181711,73515,991
मध्य प्रदेश

1293,5925,605
ओडिशा

545121,921
उत्तर प्रदेश

631,3131,320
पंजाब

33,9104,378

सिंचाई की विधियां

कुदरती रूप से होने वाली बारिश जब पौधों की पानी की जरूरतें पूरी नहीं कर पाती, तब उनकी सिंचाई जरूरी हो जाती है। देश दुनिया में पौधों की सिंचाई कई तरीकों से की जाती है। सिंचाई का कौन सा तरीका कितना कुशल और प्रभावी है यह कई कारकों पर निर्भर करता है। इनमें से वहां की जलवायु दशा, मिट्टी की संरचना और प्रकार, पौधे की किस्म और सिंचाई तकनीक प्रमुख हैं।

सरफेस इरीगेशन: इस तरीके में पूरे खेत को पानी से भर दिया जाता है। सिंचाई का यह सबसे आसान और सस्ता तरीका है। हालांकि इसे सबसे अकुशल तरीका माना जाता है क्योंकि इस विधि से इस्तेमाल पानी का 10 फीसद से भी कम पौधे इस्तेमाल करते हैं। इसमें 90 फीसद से ज्यादा पानी बर्बाद होता है।


स्प्रिंक्लर इरीगेशन: जैसाकि नाम से ही स्पष्ट है। बारिश की तर्ज पर इसमें छिड़काव द्वारा पौधों की सिंचाई की जाती है। पानी को पाइप के द्वारा फसल तक पहुंचाया जाता है फिर घूमने वाले फौव्वारों के द्वारा पौधों पर पानी छिड़का जाता है।


ड्रिप इरीगेशन: इस प्रणाली में पाइपों के माध्यम से पानी को पौधे की जड़ों में डाला जाता है। यह सिंचाई की सबसे कुशल और प्रभावी विधि है क्योंकि इससे पौधे के जड़ क्षेत्र को नमी मिलती हैं जहां इसे पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। इस पानी के साथ घुलनशील उर्वरक और कृषि रसायनों को भी पौधों तक पहुंचाया जा सकता है।

स्प्रिंक्लर इरीगेशन से सिंचित क्षेत्र

राज्यरकबा* प्रतिशत

मध्य प्रदेश

85.00 5.20
पश्चिम बंगाल 135.00 8.26

हरियाणा 490.00 29.97

राजस्थान 425.00 25.99

महाराष्ट्र 110.00 6.73

गुजरात 11.00 0.67

उत्तर प्रदेश 10.00

0.61
बिहार 0.50 0.03

हिमाचल प्रदेश 0.25 0.02

जम्मू कश्मीर 0.15 0.01

पंजाब 10.00 0.61

अन्य

358.09 21.90
कुल 1634.99 100.00

*2004-05 में हजार हेक्टेयर में

ड्रिप इरीगेशन से सिंचित क्षेत्र

राज्यक्षेत्र*रकबे का %

महाराष्ट्र

160.28 53.16
कर्नाटक 66.30 18.03

तमिलनाडु 55.90 15.20

आंध्र प्रदेश 36.30 9.88

गुजरात 7.60 2.07

केरल 5.50 1.50

ओडिशा1.90

0.52
हरियाणा 2.02 0.55

राजस्थान 6.00

1.63
उत्तर प्रदेश

2.50 0.68
पंजाब

1.80 0.49
अन्य राज्य

5.40 1.47
कुल

367.70 100.00
*2001 में हजार हेक्टेयर में

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