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संबंधों का टर्निंग प्वाइंट है यह मौका

मुद्दा
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यदि सऊदी अरब के साथ भारत का इसी तरह दीर्घकालिक रणनीतिक गठबंधन हो जाता है तो यह न केवल भारत के लिए बेहतर होगा बल्कि पूरी दुनिया को आतंक से लड़ने में मदद मिलेगी।


जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू जुंदाल की गिरफ्तारी निश्चित रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। इससे उत्साहित कुछ विश्लेषक मानने लगे हैं कि यह भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में ‘टर्निंग प्वाइंट’ साबित होगा। इस मामले में गृह मंत्री पी चिदंबरम का यह बयान दुर्भाग्यपूर्ण है कि अबू के रहस्योद्घाटन ने ‘हमारे संदेह की पुष्टि’ की है कि ‘26/11 आतंकी हमले में पाकिस्तान की भूमिका’ थी। उनके बयान में पाकिस्तान की आपराधिक गतिविधियों के जो पहले से ही सुबूत मौजूद हैं, उनको नजरअंदाज किया गया। दुनिया में कोई भी सुबूत पाकिस्तान को उसकी द्वेषपूर्ण रणनीति को छोड़ने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। इसके उलट सुबूतों पर सवाल खड़े करने और भ्रामक खबरों को फैलाने की उसकी प्रवृत्ति बताती है कि उसके रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है।


अजमल कसाब की गिरफ्तारी के बाद 26/11 मामले में अबू जुंदाल की गिरफ्तारी सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। सुबूतों के मुताबिक उसके तार अन्य आतंकी केसों से भी जुड़ रहे हैं। उससे पूछताछ के बाद इस बात की फिर से पुष्टि ही होगी कि पाकिस्तान हमारी सरजमीं पर आतंक का अभियान छेड़े हुए है। उससे पाकिस्तानी आतंकी नेतृत्व, संरक्षणदाता आइएसआइ, सेना और राजनीतिक प्रतिष्ठान के बीच साठगांठ के बारे में भी पता चलेगा। यदि जांचकर्ता तकनीकी सुबूत मसलन 26/11 आतंकी हमले के दौरान उसकी रिकॉर्ड की गई आवाज के नमूने का मिलान करने में सफल रहते हैं तो कम से कम समय में उसको भी कसाब की तरह दोषी ठहराया जा सकेगा। इससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत अपने केस को मजबूती से पेश कर सकेगा जोकि पाकिस्तान की दोमुंही बातों से वैसे ही उससे दूर होता जा रहा है।


इस पूरे मामले में सऊदी अरब की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सऊदी अरब ने जिस तरह प्रत्यर्पण प्रक्रिया की औपचारिकता के बगैर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के हाथों अबू जुंदाल को सौंपा उससे भी भविष्य में अच्छे परिणाम मिलने की गुंजायश बढ़ गई है। अभी तक सऊदी अरब को पाकिस्तान के सहयोगी के रूप में देखा जाता रहा है। इसके चलते पाकिस्तान समर्थित आतंकी, माफिया उसकी जमीन का इस्तेमाल करते रहे हैं। यद्यपि एक केस के आधार पर ही कोई निर्णय नहीं निकाला जा सकता लेकिन यदि सऊदी अरब के साथ भारत का इसी तरह दीर्घकालिक रणनीतिक गठबंधन हो जाता है तो यह न केवल भारत के लिए बेहतर होगा बल्कि पूरी दुनिया को आतंक से लड़ने में मदद मिलेगी। इससे यह भी संकेत मिलता है कि पाकिस्तान धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अलग-थलग होता जा रहा है।


कुल मिलाकर यह एक असाधारण सफलता है। एक बेहद महत्वपूर्ण आतंकी को गिरफ्तार किया गया है। निश्चित रूप से खुफिया एजेंसियों ने बेहतरीन काम किया। कूटनीतिक स्तर पर भी होशियारी से काम किया गया। यह दीर्घकालिक प्रक्रिया की शुरुआत भर है। अब यह आशा ही की जा सकती है कि लचर भारतीय न्यायिक प्रणाली उसको सजा देने में कामयाब हो सकेगी। उल्लेखनीय है कि अजमल कसाब को दो साल पहले ही दोषी ठहरा दिया गया था लेकिन अभी तक उसको फांसी नहीं दी गई है। जहां तक पाकिस्तान की बात है तो आतंकवाद के मामले में उसकी भूमिका अब न तो भारत के लिए ही कोई रहस्य रह गई है और न ही दुनिया के लिए ही। अफगानिस्तान में भी पाकिस्तान यही भूमिका अदा कर रहा है लेकिन वहां पर अमेरिका बगैर किसी हिचक के आतंकी ठिकानों पर बम गिरा रहा है।

लेखक अजय साहनी (निदेशक, इंस्टीट्यूट ऑफ कॉनफ्लिक्ट मैनेजमेंट)

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गैर जिम्मेदार पड़ोसी

26/11 को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर पाकिस्तान से आए दस आतंकियों ने कोहराम मचाया। पाकिस्तान में बैठे कुछ लोगों के नाम इसमें सामने आए। दुनिया के सबसे बड़े आतंकी हमलों में शुमार इस मामले के दोषियों को सजा दिलाने के लिए भारत ने उन तमाम जरूरी साक्ष्यों को पाकिस्तान के हवाले किया। पहले तो ना-नुकुर करते पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय दबाव में आकर हमले में शामिल लोगों पर मुकदमा शुरू किया। आरोपियों के खिलाफ की जा रही गैरजरूरी देरी के चलते पाकिस्तानी गंभीरता देखी जा सकती है। पूरी अदालती कार्यवाही किसी नाटक की तरह लगती है। इसी मामले में अमेरिका और भारत की अदालतों में चल रहे मुकदमे निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुके हैं।


पाकिस्तान में

किस पर मुकदमा: जकी उर रहमान लखवी, शाहिद जमील रियाज, हम्माद अमीन शादिक, मजहर इकबाल, जमील अहमद, अब्दुल वाजिद और युनुस अमजद

कहां चलाया जा रहा है: रावलपिंडी की अदियाला जेल के बंद कमरे में

स्थिति: अभी तक किसी पर आरोप नहीं तय किए जा सके हैं। सुनवाई को लेकर कई विवाद खड़े हुए हैं। तकनीकी रूप से देरी का मसला अलग ही है। अभियोजन पक्ष के 160 गवाहों में से अभी तक चंद लोगों के बयान लिए जा सके हैं।

देरी का कारण: पिछले साल सितंबर में कई सप्ताह तक इस मामले की कार्यवाही नहीं हो सकी। इसका मुख्य कारण इस मामले के लिए किसी जज की नियुक्ति न हो पाना था। मुकदमे की शुरुआत से अब तक इस मामले में पांच जज बदले जा चुके हैं। अंतिम बार पांच जून को मामले से जुड़े जज के स्थानांतरण के बाद इसकी सुनवाई नहीं हो सकी है। पाकिस्तान यह भी दावा करता है कि आरोपियों के खिलाफ भारत ने पर्याप्त सुबूत नहीं मुहैया कराए हैं।


भारत में

अजमल कसाब को सजा-ए-मौत: मुंबई आतंकी हमले में पकड़ा गया एकमात्र जिंदा पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब पर मुकदमा चलाया गया। मई, 2011 में मुंबई की विशेष अदालत ने कसाब को मौत की सजा सुनाई। तीन साल की सुनवाई के बाद आए फैसले में जज ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया में कहा कि ऐसे आतंकी को जिंदा रखना समाज और भारत सरकार के लिए किसी ‘अलसाए खतरे’ से कम नहीं है।

हेडली और सईद: मई, 2011 में दिल्ली की एक अदालत ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी को निर्देश दिया कि मुंबई हमले के आरोपियों पाकिस्तानी अमेरिकी डेविड कोलमैन हेडली, उसके सहयोग तहव्वुर राणा और लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज मोहम्मद सईद को उसके समक्ष पेश किया जाए।

गिरफ्तारी वारंट: एक जिला जज ने पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी मेजर इकबाल और मेजर समीर इकबाल, जकी उर रहमान लखवी, इलियास कश्मीरी, साजिद मालिक और पाकिस्तान सेना के पूर्व अधिकारी अब्दुल रहमान मलिक के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया।


अमेरिका में

मामला: मुंबई हमले में छह अमेरिकी नागरिकों की मौत हुई थी। लिहाजा लश्कर-ए-तैयबा और आइएसआइ के खिलाफ अमेरिका ने मजबूत मुकदमा दर्ज किया। आइएसआइ के मेजर इकबाल के इशारे पर हेडली काम करता था।

कहां हैं हेडली और राणा: दोनों अभी अमेरिकी हिरासत में हैं।

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वादाखिलाफी

इतिहास गवाह है। भारत और पाकिस्तान के अलग राष्ट्र बनने के बाद दोनों के संबंधों की खटास कम करने के लिए ज्यादातर प्रयास एकतरफा रहे। भारत ने वे सभी जतन किए जिससे पड़ोसी से मधुर संबंध स्थापित करने में मदद मिले, लेकिन पाकिस्तान है कि सुधरने का नाम ही नही लेता। जब- जब हमने कोई पहल की है तो पाकिस्तान ने भले ही पहल का स्वागत किया हो, लेकिन पीछे से पीठ में छुरा घोंपने से गुरेज नहीं किया। 1947 से पाकिस्तानी की वादाखिलाफी की फेहरिस्त वैसे तो बहुत लंबी है, लेकिन हालिया और प्रमुख मामलों पर पेश है एक नजर।

लाहौर बस यात्रा

1999: फरवरी में भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा की। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ कई अहम समझौैते हुए

वादाखिलाफी: मई में दोनों देशों के बीच एक और युद्ध। भारतीय अधिकृत कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने अपने नापाक कदम रखने का दुस्साहस किया। भारतीय सेना ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए इन घुसपैठियों को सीमा से बाहर खदेड़ा

आगरा शिखर सम्मेलन

2000: जुलाई में भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ के बीच आगरा शिखर सम्मेलन के तहत वार्ता हुई। हालांकि यह वार्ता सफल नहीं हो सकी

वादाखिलाफी

2001: दिसंबर में आतंकियों ने भारतीय लोकतंत्र के मंदिर संसद पर हमला किया। पांच आतंकी सहित 14 लोग मारे गए। हमले में पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद का नाम सामने आने पर भारत ने इनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की। हीलाहवाली वाले पाकिस्तानी रवैए के बाद भारत ने सीमा पर फौज का जमावड़ा शुरू किया। रिश्तों में खटास चरम पर पहुंची


नई शुरुआत

2003: पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा पर शांति विराम की घोषणा की। भारत ने इस कदम का स्वागत किया

2004: दोनों देशों ने एक शांति समझौता किया जिससे कूटनीतिक, खेल और व्यापार क्षेत्र में अहम सुधार देखे गए

वादाखिलाफी: बीच बीच में देश में होते पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमलों से दोनों देशों की फिजां में खटास घुलती रही। जुलाई 2008 में भारत ने काबुल स्थित अपने दूतावास पर हमले में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के हाथ होने का दावा किया


वादाखिलाफी

2008: 26 नवंबर को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर आतंकी हमले के बाद सब्र का पैमाना जवाब दे गया। संसद पर हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव का यह शीर्ष स्तर था। परिणामस्वरूप देश ने पाकिस्तान से अपने सभी तरह के संबंध खत्म कर दिए और दोषियों पर कार्रवाई की मांग की। जबकि पाकिस्तान इस मुद्दे पर भी अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठा सका है


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