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नाकामी के तीन बरस

मुद्दा
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सरकार: आम जनता के हितों को सुरक्षित रखने वाली और अपनी नीतियों से जन कल्याण को सुनिश्चित करने वाली संस्था। प्रधानमंत्री, इस संस्था का मुखिया। मई, 2009 में जब अवाम ने अपने खैरख्वाह के रूप में कांग्र्रेस को लगातार दूसरी बार बहुमत के करीब पहुंचाया और अर्थवेत्ता मनमोहन सिंह लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए तो इसके पीछे लोगों की यही आशाएं और उम्मीदें रही होंगी कि अब उनका जीवन सुधरेगा।


शासन: आगामी 22 मई को संप्रग-2 सरकार अपने कार्यकाल के तीन साल पूरे कर रही है। सत्ता की शीर्ष कुर्सी पर लगातार आठ साल से और तीन साल के अपने दूसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लगता है जनता कि अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं। महंगाई की मार से जनमानस आकुल है। दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से अब तक खाद्य वस्तुएं आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं।


शिकस्त: घोटालों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। आर्थिक विकास की सुस्ती का इलाज  अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को ढूंढे नहीं मिल रहा है। सुधार ठप से पड़े हैं। आंतरिक और वाह्य, दोनों ही मामलों में सरकार को शिकस्त मिल रही है। सरकार के मंत्री एक ही मसले पर अलग-अलग सुर अलाप रहे हैं। सहयोगी दलों की धमकियां डराने वाली होती हैं। सकारात्मक नतीजों की बाट जोह रही जनता में असंतोष चरम पर है। ऐसे में सरकार के तीन साल की उपलब्धियों का आकलन हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।


मैं, मनमोहन सिंह, ईश्वर की शपथ लेता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा, मैं प्रधानमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंत:करण से निर्वहन करूंगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा


मैं, मनमोहन सिंह, ईश्वर की शपथ लेता हूं कि जो विषय संघ के प्रधानमंत्री के रूप में मेरे विचार के लिए लाया जाएगा अथवा मुझे ज्ञात होगा उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को, तब के सिवाय जबकि ऐसे मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों के सम्यक् निर्वहन के लिए ऐसा करना अपेक्षित हो, मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संसूचित या प्रकट नहीं करूंगा।

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जयराम रमेश (केंद्रीय ग्र्रामीण विकास मंत्री)
जयराम रमेश (केंद्रीय ग्र्रामीण विकास मंत्री)

कठिन दौर से गुजर रही सरकार

केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के लिए बीते साल का समय बेहद कठिन दौर से गुजरा। यानी, संप्रग के पहले चरण की सरकार की तरह यह समय नहीं रहा। आर्थिक मोर्चे पर आई मंदी ने झकझोर दिया है। इस दौर में आयात और निर्यात के बढ़ते अंतर से वित्तीय स्थितियां प्रतिकूल रहीं। सोने का अंधाधुंध आयात चिंताजनक रहा, जिससे सरकार की राह में मुश्किलें बढ़ी हैं। सोने के प्रति लोगों का लगाव चिंता का सबब बना।


पेट्रोलियम उत्पादों का आयात तो समझ में आता है। इसे जारी रखना भी जरूरी है, लेकिन सोने का ऐसा कोई खास उपयोग नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पैदा हुई आर्थिक समस्याओं से घरेलू वित्तीय स्थितियां बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। इससे निराशा पैदा हुई, लेकिन इसी के बीच रास्ता निकाल लेना एक बड़ी चुनौती है। विपरीत आर्थिक हालात के बीच हौसले के साथ आगे बढ़ना ही एक बड़ी चुनौती है। हालांकि आर्थिक और राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में सरकार आर्थिक मंदी के भंवर में फंस चुकी है। लेकिन ऐसा कहना उचित नहीं है। हम इससे बाहर निकल आएंगे। और जरूर निकल आएंगे।


सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती 2जी स्पेक्ट्रम विवाद से निपटना था। हालांकि विपक्षी दल इसी को लेकर सरकार पर जमकर बरसे। सिविल सोसायटी के लोगों ने सरकार पर चौतरफा हमला किया। संप्रग के दूसरे कार्यकाल के बीते तीन साल में कई मुद्दों को लेकर घटक दल भी सरकार को आंख दिखाने से नहीं चूके।


सरकार की उपलब्धियों में भूमि अधिग्र्रहण विधेयक को गिना जा सकता है। विधेयक पर संसद की स्थाई समिति की सिफारिशें आ चुकी हैं। आगामी मानसून सत्र में सरकार इसे पारित कराने के लिए संसद में रखेगी। ग्र्रामीण विकास, पेयजल और स्वच्छता कार्यक्रम को सरकार ने राष्ट्रीय एजेंडे पर रखा है। पेयजल व स्वच्छता कार्यक्रम के बजट में 40 फीसद तक की वृद्धि की गई है। लोगों में ग्र्रामीण विकास के प्रति जागरूकता पैदा हुई है।


ग्रामीण विकास मंत्रालय की नीतियां जमीनी तौर पर दिखने लगी हैं। मनरेगा और पीएमजीएसवाई जैसी योजनाओं का प्रभाव हुआ है। ग्र्रामीण कनेक्टिविटी बढ़ी है। ग्र्रामीण बेरोजगारों का पलायन रोकने में मदद मिली है। ग्र्रामीण विकास की नीतियों का सकारात्मक असर यह हुआ है कि पिछले वर्षों में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और उड़ीसा जैसी गैर कांग्र्रेसी सरकार वाले राज्यों में ग्र्रामीण सड़कों को लेकर विवाद बना हुआ था। लेकिन सालभर के भीतर इन राज्यों को उनके हिस्से की पूरी राशि मंजूर की गई है। इन राज्यों की अब कोई शिकायत नहीं रह गई है।


महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्र्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का दूसरा अवतार पेश हुआ। इसमें 30 अन्य कार्य जोड़े गए हैं। इन कार्यों में कृषि क्षेत्र को खास तवज्जो दी गई है। मनरेगा में अनियमितता और भ्रष्टाचार की ढेर सारी शिकायतें आ रही थी, जिसे सरकार ने प्राथमिकता के तौर पर लिया है। इसीलिए भ्रष्टाचार रोकने के लिए नियंत्रक व महालेखा परीक्षक के माध्यम से उपाय किए गए हैं। इसके तहत ग्र्राम पंचायत स्तर तक के खाते जांचने का प्रावधान किया गया है।


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