Menu
blogid : 4582 postid : 2184

धनबल पर रोक में विफल रहे हैं हम

मुद्दा
मुद्दा
  • 442 Posts
  • 263 Comments

-बाबूलाल मरांडी (पूर्व मुख्यमंत्री झारखंड)
-बाबूलाल मरांडी (पूर्व मुख्यमंत्री झारखंड)

इस फैसले से बिकने वाले विधायकों को मिलेगा सबक

राज्यसभा चुनाव को लेकर झारखंड में जो परिस्थितियां उत्पन्न हुईं, उसमें सरकार में बैठे लोगों की भूमिका  शुरू से ही विवादास्पद रही। सरकार में शामिल घटक दलों के 45 सदस्य हैं। भाजपा के 18, झामुमो के 18, आजसू के पांच, जदयू के दो और  निर्दलीय दो। इसके बावजूद सत्ता में शामिल दलों की मंशा चुनाव के मोर्चे पर कभी साफ नहीं दिखी। भाजपा के समर्थन से एनआरआइ अंशुमान मिश्र का पर्चा दाखिल कराया गया। संजीव कुमार झामुमो के घोषित उम्मीदवार बने, जबकि आरके अग्रवाल झामुमो के अघोषित प्रत्याशी के रूप में उतरे। रही पवन धूत की बात तो इन्हें भी खड़ा करने में परोक्ष रूप से सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका रही।


इधर, अंशुमान को लेकर जब पार्टी के अंदर-बाहर विरोध उत्पन्न हुआ, तो भाजपा ने अपना दागदार चेहरा छुपाने की नीयत से उनका पर्चा वापस कराया। इस बीच 21 मार्च को दिल्ली में भाजपा संसदीय कमेटी की बैठक के बाद महासचिव अनंत कुमार ने कहा, ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ न हो, इसलिए चुनाव में भाजपा वोटिंग नहीं करेगी। 28-29 मार्च को अचानक यह चर्चा सरेआम होती है कि भाजपा वोटिंग कर सकती है। 30 मार्च को चुनाव के दिन जब पार्टी के इलेक्शन एजेंट मतदान केंद्र के इर्द-गिर्द चहलकदमी करते दिखे तो समझ में आ गया कि भाजपा की मंशा कुछ और ही थी।


पता नहीं दिल्ली से आदेश आया या फिर मुख्यमंत्री भवन से, तकरीबन एक बजे भाजपा के विधायकों ने एक-एक कर वोट डालना शुरू कर दिया। सत्ता में शामिल आजसू और जदयू ने अपने इलेक्शन एजेंट की घोषणा नहीं की। इससे वोटिंग की बात स्पष्ट नहीं होती। कांग्रेस के केएन त्रिपाठी, झामुमो के विष्णु भैया और राजद के सुरेश पासवान ने कथित रूप से अपना वोट सार्वजनिक कर गड़बड़ी की।


इधर, माकपा के गुरुदास दास गुप्ता ने  झारखंड के राज्यसभा चुनाव में ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ की आशंका संसद में उठाई तो कई सांसदों ने उनका साथ दिया। हमने ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ की आशंका जताते हुए निर्वाचन आयोग को चुनाव रद करने और पूरे प्रकरण की सीबीआइ जांच का अनुरोध पत्र दिया।


हमें प्रसन्नता है कि न सिर्फ आयोग ने इसे गंभीरता से लिया, बल्कि झारखंड उच्च न्यायालय ने भी इसकी सीबीआइ जांच का आदेश दिया। चुनाव आयोग और  हाई कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक है। पैसे के बल पर चुनाव जीतने की मंशा रखने वाले प्रत्याशियों और चुनावों के दौरान बिकने वाले विधायकों को इससे सबक मिलेगा।

विनोद श्रीवास्तव से बातचीत पर आधारित

………………………………………………………..


-गुरुदास दास गुप्ता (सीपीआइ के वरिष्ठ नेता)
-गुरुदास दास गुप्ता (सीपीआइ के वरिष्ठ नेता)

गाय भैंस की तरह हो रही है विधायकों की खरीद

(झारखंड में राज्यसभा चुनाव के दौरान धन बल के इस्तेमाल और विधायकों की खरीद फरोख्त का मामला संसद में सबसे पहले उठाने वाले व्यक्ति और इस संबंध में इनके शिकायती पत्र के बाद ही चुनाव आयोग ने झारखंड राज्यसभा चुनाव पर रोक लगाई)


चुनावों में धांधली और भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हो चली हैं। इसकी पीछे राजनीति में धनबल की बढ़ती प्रवृत्ति जिम्मेदार है। यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है। अब धनबली प्रत्याशी को जिताऊ उम्मीदवार माना जाता है। चुनावों में पानी की तरह पैसा बहाने वाले लोग जीतकर संसद पहुंचते हैं। यही लोग राजनीति में धनबल को बढ़ावा देते हैं। गरीब प्रत्याशी के लिए चुनाव अब बहुत महंगे होते जा रहे हैं। ऐसे उम्मीदवार इन धनबलियों का मुकाबला नहीं कर पाते। लिहाजा राजनीति में इनके पहुंचने की संभावना बहुत कम होती है। चुनावों में व्यापक पैमाने पर काले धन के इस्तेमाल की बात को नकारा नहीं जा सकता है। यह अब जगजाहिर हो चुका है। अभी हाल में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में चुनाव आयोग द्वारा गठित टीमों ने जगह-जगह बड़ी मात्रा में काला धन जब्त किया। मतदाता को अपने पक्ष में करने के लिए इस काला धन का जमकर इस्तेमाल किया जाता है। झारखंड के राज्यसभा चुनाव के दौरान मिली दो करोड़ से अधिक की रकम भी काला धन ही थी। यह इस बात का संकेत है कि पैसा (काला धन) लेकर विधायकों को खोजे जाने की प्रवृत्ति बढ़ी है। हमारे देश में लोग पैसा लेकर वोट दे रहे हैं। यह भी दिख रहा है कि पैसा लेकर अब चुने गए विधायक भी खरीदे जा रहे हैं। जिस तरह से बाजार में गाय-भैसों को खरीदा जाता है उसी तरह राज्यसभा चुनावों के दौरान विधायकों को खरीदा जा रहा है। इस परंपरा को समाप्त किया जाना चाहिए। अगर यही व्यवस्था रही तो जनतंत्र बर्बाद हो जाएगा। जनतंत्र का मतलब होता है जनता का राज। जब नीति नियंता नोटों के बल पर खरीद कर राजनीति में पहुंचेंगे तो यह परिभाषा कितनी सार्थक हो पाएगी। वे जन कल्याण और जनहित की जगह खुद के बारे में सोचेंगे। राजनीति में धनबल के बढ़ते प्रभाव को रोकने का एक मात्र हथियार जनता है। जनता को मैदान में उतरकर इसके खिलाफ लड़ने की जरूरत है। इतिहास गवाह है कि जनता जब जब जगी है, एक नई शुरुआत हुई है। सिर्फ कानून बनाकर इसे नहीं रोका जा सकता है। इस पेशे से जुड़े लोगों के पास हर नियम की काट होती है। झारखंड में राज्यसभा चुनाव में धनबल के इस्तेमाल की शिकायत के बाद सख्त कदम उठाने के लिए हम चुनाव आयोग को बधाई देते हैं।

(अरविंद चतुर्वेदी से बातचीत पर आधारित)

………………………………..


धनबल पर रोक में विफल रहे हैं हम

दुनियाभर में भ्रष्टाचार और शासन प्रणाली में आ रहे बदलावों पर नजर रखने वाले अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्लोबल इंटीग्र्रिटी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत राजनीति में धनबल का इस्तेमाल रोक पाने में बुरी तरह विफल रहा है। 2011 के लिए जारी इस रिपोर्ट के अनुसार राजनीतिक दलों और उम्मीदवार से जुड़ी वित्तीय जानकारी आम जनता को उपलब्ध कराने के मामले में भारत को 100 में से शून्य अंक मिले हैं। वहीं एक उम्मीदवार के वित्तीय स्रोत के मामले में भारत को महज 28 अंक मिले हैं। राजनीतिक दलों के वित्तीय स्रोतों के नियमन के प्रभावी होने के मामले में भी भारत को शून्य अंक मिले हैं। समग्र रूप से भारत को 100 में से 70 अंक मिले हैं। इसके कानूनी ढांचे को 87 जबकि कानून लागू होने के मामले में 100 में से मात्र 55 अंक मिले हैं।

क्षेत्र प्राप्त अंक स्थिति

कुल                            70                    कमजोर

कानूनी ढांचा                87                   मजबूत

कानून लागू करना       55                   बहुत

कमजोर

चुनाव                          71                 कमजोर

मतदान एवं

पार्टी निर्माण                92                 मजबूत

चुनाव ईमानदारी          92                मजबूत

राजनीतिक वित्तीय

पारदर्शिता                   28                दयनीय

………………………………………………..


-सुभाष कश्यप (संविधान विशेषज्ञ)
-सुभाष कश्यप (संविधान विशेषज्ञ)

राज्यसभा-विधान परिषद के अस्तित्व की महत्ता कितनी

इस मसले को लेकर इससे पहले भी देश-विदेश में बहुत कुछ कहा और लिखा जा चुका है। प्रदेशों में विधान परिषद की स्थापना का प्रावधान है। हालांकि इसका गठन और इसे भंग करने का अधिकार संबंधित राज्य की विधानसभा के पास ही होता है। इसे विधानसभा का उच्च सदन माना जाता है। छह साल के कार्यकाल वाले इसके सदस्यों का चयन अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के तहत किया जाता है। इसी तरह केंद्र में संसद का उच्च सदन यानी राज्यसभा है, लेकिन यह एक स्थायी सदन है। यह कभी भंग नहीं होता। इसके सदस्य भी अप्रत्यक्ष तरीके से चुने जाते हैं। अब सवाल यह उठता है कि इन दोनों संस्थाओं के अस्तित्व की महत्ता कितनी है? दरअसल अभी कुछ प्रदेशों में ही विधान परिषद का अस्तित्व है। इस संस्था के गठन को लेकर संविधान के अनुच्छेद 168 में प्रावधान किया गया है। राज्यों में विधान परिषदों के उत्सादन या सृजन का प्रस्ताव अनुच्छेद 169 में किया गया है। इसके अनुसार अनुच्छेद 168 में किसी बात के होते हुए भी, संसद विधि द्वारा किसी विधान परिषद वाले राज्य में विधान परिषद के उत्सादन के लिए या ऐसे राज्य में, जिसमें विधान परिषद नहीं है, विधान परिषद के सृजन के लिए उपबंध कर सकेगी, यदि उस राज्य की विधान सभा ने इस आशय का संकल्प विधान सभा की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया है। इस प्रावधान से एक तरह से यह राज्य की विधान सभाओं का अधिकार है कि वह इसे बनाए रखें या समाप्त कर दें।


वहीं राज्यसभा को राज्यों की सभा यानी काउंसिल ऑफ स्टेट्स कहा जाता है। इसके गठन के पीछे की मूल भावना यह थी कि इसमें राज्यों के प्रतिनिधि आएंगे। ये प्रतिनिधि राज्यों की बात करेंगे। धीरे-धीरे संसद के इस उच्च सदन का यह चरित्र समाप्त होता गया। शुरुआती व्यवस्था के तहत इस सदन के सदस्यों के लिए जिस राज्य से चुने गए हों, उन्हें उसका निवासी होने की शर्त थी। बाद में जब दूसरे राज्य के निवासी किसी अन्य राज्य से राज्यसभा चुनकर पहुंचने लगे तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में गैर राज्यों से सदस्यों के चयन को जायज ठहराया। दूसरा इस सदन का मूल चरित्र स्वतंत्र चुनाव का प्रावधान था। स्वतंत्र चुनाव तभी कहा जाएगा जब गोपनीयता बरती जाएगी। कौन किसको वोट दे रहा है आज के दौर में सभी को पता चल जाता है। ऐसे में चुनाव को स्वतंत्र कैसे कहा जा सकता है? कुल मिलाकर इस सदन का मूल चरित्र समाप्त हो गया। लोकतंत्र पर इसके विपरीत असर को नकारा नहीं जा सकता है।


(अरविंद चतुर्वेदी से बातचीत पर आधारित)

…………………………………….


Read Hindi News


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh