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कूटनीति : दिल्ली में हुए कार बम धमाके में भले ही इजरायली राजनयिक को निशाना बनाने की कोशिश की गई हो लेकिन ईरान और इजरायल के बीच पश्चिम एशिया में अघोषित युद्ध की तपिश से भारत की भूमि भी सुलगने लगी है। भारतीय कूटनीति के लिए यह परीक्षा की घड़ी है
कोशिश : ईरान और इजरायल दोनों ही भारत के अच्छे मित्र हैं। अपनी जरूरतों के कारण भारत इनमें से किसी एक की कीमत पर दूसरे से सहयोग की कल्पना नहीं कर सकता। उसके सामने इस बात की चुनौती है कि वह दोनों देशों के बीच संतुलन स्थापित करने की कोशिश करते हुए तनाव को कम करने की ओर कदम बढ़ाए
कठिनाई : चीन, पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों के साथ हमारे रिश्ते जगजाहिर हैं। ये देश ताजा अंतरराष्ट्रीय गतिरोध का लाभ लेने की कोशिश में लगे हैं। ऐसे में भारत के सामने बदलते अंतरराष्ट्रीय भूराजनैतिक समीकरणों के बीच अरब जगत, पश्चिम एशिया और इजरायल के साथ अपने संतुलन को बनाए रखने की कठिनाई बड़ा मुद्दा है
कूटनीति की अग्निपरीक्षा
पश्चिम एशिया में जारी ईरान-इजरायल के बीच तनातनी की अनुगूंज भारतीय भूमि पर भी सुनाई देने लगी है। यह हमला भारतीय कूटनीति के लिए नई चुनौती साबित हो रहा है। ईरान और इजरायल के रिश्ते पिछले काफी समय से जटिल रहे हैं। ऐसी गंभीर परिस्थिति में भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को प्रभावित किए बिना संतुलन स्थापित करने की कोशिश करे क्योंकि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में वह पीछे छूटने का खतरा नहीं ले सकता।
इसके अलावा भारत में सभी धर्म, संप्रदायों के लोग रहते हैं। किसी भी एक पक्ष में खड़े होकर वह उनकी भावनाओं को आहत नहीं कर सकता।
ईरान से भारत करीब साढ़े तेरह प्रतिशत तेल ईरान से आयात करता है। ओएनजीसी के चेयरमैन के अनुसार मंगलौर रिफाइनरी के लिए 50 प्रतिशत तेल ईरान से ही आता है। इसमें एक बड़ा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि पहले हमारी विदेश तेल पर निर्भरता करीब 70 प्रतिशत थी लेकिन यह निर्भरता बढ़ते-बढ़ते 90 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। सात-आठ प्रतिशत की तेज आर्थिक वृद्धि के लिए यह जरूरी भी है। अपनी इस निर्भरता की वजह से भारत किसी भी कीमत पर ईरान के साथ अपने रिश्तों में खटास पैदा नहीं कर सकता। दूसरी ओर इजरायल भी हमारा महत्वपूर्ण रक्षा सहयोगी है। 1999 में पाकिस्तान द्वारा कारगिल हमला करने के बाद इजरायल ने खुलकर भारत का साथ दिया था। उसके बाद से ही दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण रक्षा और इंटेलीजेंस संबंध विकसित हुए हैं।
भारत की विदेश नीति के सामने एक नई चुनौती यह भी है कि चीन ने खुलकर ईरान को समर्थन दिया है। सीरिया के मसले पर भी चीन और रूस एक हो गए थे। इसका कारण यह है कि चीन भी अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए काफी हद तक ईरान पर निर्भर है। वह करीब 14-18 प्रतिशत तेल ईरान से आयात करता है। उसने इस बात का आश्वासन भी ईरान को दिया है कि यदि पश्चिमी देशों को ईरान तेल देना बंद कर देगा तो वह उससे प्रतिदिन 50 हजार बैरल तेल की खपत को और भी बढ़ा देगा। दरअसल चीन मौके का फायदा उठाकर ईरान से अपनी दोस्ती बढ़ाना चाहता है और बदले में अधिक तेल चाहता है क्योंकि उसकी भी तेज आर्थिक विकास के लिए तेल और गैस की अधिक जरूरत है। वैसे भी जैसे-जैसे ईरान पश्चिमी जगत को तेल देना बंद करता जाएगा वैसे में वह एशिया में नए विकल्प तलाशेगा। ऐसे में भारत पर भी यह दबाव बढ़ गया है कि राजनयिक तौर पर वह ईरान समेत एशिया के बाकी मुल्कों से संबंधों को मजबूत करने पर जोर दे और उस क्षेत्र में स्थायित्व बहाली की कोशिशें करता रहा।
इस लिहाज से कूटनीतिक स्तर पर भारत पर यह दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है कि वह केवल तटस्थ नहीं बना रह सकता। उसको ठोस कदम उठाते हुए बदलते भूराजनैतिक समीकरणों में ब्रिक्स, जी-20 जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों के माध्यम से ईरान और इजरायल के बीच जारी संघर्ष को कम करने के लिए पहल करते रहना चाहिए।
भारत की चुनौती
ईरान और इजरायल के साथ संतुलन स्थापित करने के साथ मधुर संबंध बनाए रखना। इजरायल के साथ हमारे मजबूत रक्षा संबंध हैं। ऊर्जा संबंधी जरूरतों के लिए ईरान के कच्चे तेल पर भी हमारी काफी हद तक निर्भरता है
दिल्ली में 13 फरवरी को हुए कार बम धमाके की जांच पर पूरे अंतरराष्ट्रीय जगत की नजर लगी हुई है। इसलिए जांच पूरी करके नतीजे का एलान
भारतीय खुफिया एजेंसियों पर यह दबाव बढ़ गया है कि इस तरह की घटना भविष्य में दोबारा नहीं हो। ऐसी दशा में भारत की भूमि अंतरराष्ट्रीय खींचतान का अखाड़ा बन सकती है
अतुल चतुर्वेदी से बातचीत पर आधारित
19 फरवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “विरोध की वजह” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
19 फरवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “पश्चिम एशिया का संकट” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
साभार : दैनिक जागरण 19 फरवरी 2012 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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