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बहनजी कहें, वही सही
कहने को तो बसपा में ‘लोकतत्र’ है लेकिन सच्चाई यह है कि यहा ‘बहनजी’ की इजाजत केबगैर पत्ता भी नहीं हिल सकता। सगठन का पूरा नेटवर्क जोनल और जिला कोआर्डिनेटर्स के हवाले है और वही पार्टी की धुरी हैं। प्रत्याशी चयन में अंतिम फैसला मायावती का ही होता है, हालाकि इससे पहले कोआर्डिनेटर्स से पैनल जरूर मागे जाते हैं। जिलाध्यक्षों की भी राय ली जाती है लेकिन यह औपचारिक प्रक्रिया भर है। यहा टिकटों के लिए झगड़ा नहीं, बचाए रखने की कवायदें जरूर हैं। कोआर्डिनेटर्स की राय विपरीत रही तो ऐन वक्त भी प्रत्याशी बदले जा सकते हैं। वित्तीय प्रबधन नियोजित हाथों में मायावती के निर्देशन में सचालित होता है। खर्च का ब्लू प्रिंट पहले ही तैयार होता है। जिलाध्यक्ष सदस्यता राशि केंद्रीय कार्यालयों में जमा करते हैं। पूरा चुनाव खर्च प्रत्याशियों को वहन करना होता है। यहा तक कि रैलियों में लोगों को ले आने और वापस ले जाने का भी।
नेताजी का इशारा जरूरी
‘नेताजी’ यानी मुलायम सिह यादव की समाजवादी पार्टी में भले ही ‘परिवारिक वर्चस्व’ हो, पर उसमें औपचारिक रूप से ही सही, आतरिक लोकतत्र का पालन तो किया ही जाता है। तमाम मामलों में सर्वसम्मति की मुहर भी जड़ी जाती है। आमतौर पर निर्णय वही होता है, जिसके लिए नेतृत्व का इशारा रहता है। अक्टूबर 92 में गठन के बाद से अब तक 19 सालों तक सपा की बागडोर मुलायम सिह ने ही सभाल रखी है। राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव की पार्टी सगठन में अहम भूमिका रहती है। वह पार्टी प्रमुख मुलायम सिह यादव के भाई हैं। छोटे भाई शिवपाल सिह यादव नेता विरोधी दल हैं। वह पहले सूबे में पार्टी की बागडोर संभाल चुके हैं। इस वक्त यह जिम्मा सपा प्रमुख के पुत्र और सांसद अखिलेश यादव ने सभाल रखा है। सपा ने प्रत्याशियों के चयन में भले ही लोकतात्रिक प्रक्रिया अपनायी हो, पर बड़ी संख्या में उम्मीदवारों को बदलना इस पर प्रश्नचिह्न ही लगाता है।
स्थायी दफ्तर भी नहीं
देश में सबसे पुराने क्षेत्रीय दल शिरोमणि अकाली दल का गठन 14 दिसंबर, 1920 को हुआ था। इसका अपना संविधान है जिसके तहत पार्टी में सर्वोच्च पद सरपरस्त का होता है। उसके बाद अध्यक्ष होता है जिसे अकाली भाषा में जत्थेदार कहते हैं। उनके बाद चार वरिष्ठ उप प्रधान और छह उप प्रधान के पद हैं। एक सेक्रेटरी जनरल, छह महासचिव और दो संगठन सचिवों के के साथ एक सचिव का पद है जो पार्टी प्रवक्ता भी है। पार्टी का कामकाज चलाने के लिए 17 सदस्यीय कोर कमेटी और 39 सदस्यीय राजनीतिक मामलों की कमेटी है। पार्टी ने विभिन्न विंग भी बनाए हुए हैं मगर महिला, युवा, और अनुसूचित जाति विंग ही सक्रिय रहते हैं। छात्र संगठन स्टूडेंट आर्गेनाइजेशन आफ इंडिया [सोई] भी है। जिले में जिला प्रधान अपने स्तर पर ही आफिस बना लेते हैं। बरसों से काबिज जत्थेदारों ने स्थायी ढांचा जरूर बना लिया है मगर यह पार्टी का नहीं है बल्कि इनके अपने ही परिसरों में बने हुए हैं।
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