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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अनुसार देश के 6.5 लाख गांवों में से महज 5.5 फीसदी गांवों में बैंक शाखाएं मौजूद हैं। यानी करीब 95 फीसदी गांव आज भी बैंक सुविधाओं से महरूम हैं। एक दूसरे अध्ययन के मुताबिक देश की 40 फीसदी आबादी के पास ही बचत खाता है।
सभी के लिए बैंक खाता
2005 से ही आरबीआई सभी बैंकों को नो फ्रिल अकाउंट खोलने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। यह एक ऐसा बैंक खाता होता है जिसमें न्यूनतम बैलेंस रखने जैसी कोई शर्त नहीं होती है।
खाता खोलने में दिक्कत
एक खाते की लागत 200 रुपये आती है। इसके साथ ही इस खाते में किए जाने वाले हर लेन-देन की लागत 20 रुपये आती है। व्यावहारिक रूप से इस खाते का औसत बैलेंस 2000-3000 रुपये के बीच होना चाहिए। इस लागत के बोझ से बचने के लिए बैंक आउटसोर्सिग का रुख कर रहे हैं।
बैंकों की आउटसोर्सिग
बैंक अपनी शाखाएं खोलने की बजाय नो फ्रिल अकाउंट को बिजनेस कॉरेसपांडेंट (बीसी) फर्मो के माध्यम से आउटसोर्स कर रहे हैं। इनके पास एजेंटों की पूरी टीम होती है जो हर खाताधारक के पास जाकर उसके बॉयोमेट्रिक कार्ड के उपयोग द्वारा रकम निकालने या जमा करने में उसकी मदद करते हैं। इस प्रक्रिया में ये एजेंट अपने पास मौजूद हैंड हेल्ड कंसोल (विशेष प्रकार की मशीन) का प्रयोग करेंगे। खाते में लेन-देन को मोबाइल फोन से भी अंजाम दिया जा सकेगा।
कितना हुआ विस्तार
आरबीआई के मुताबिक अप्रैल 2010 से मार्च 2011 के बीच बैंकों ने 43,337 नए गांवों को जोड़ा। इनमें से केवल 525 गांवों में बैंक शाखाएं स्थापित की गई जबकि 42,506 गांवों को बीसी द्वारा और 306 गांवों को एटीएम द्वारा जोड़ा गया।
नकदी हस्तांतरण की परिकल्पना
इसमें यूआइडीएआइ द्वारा तैयार किए गए आधार कार्ड को एक भुगतान पुल की तरह काम करने की परिकल्पना की गई। इसके आंकड़ों से यह पता चल सकेगा कि कौन सी यूआइडी संख्या किस बैंक खाते से संबद्ध है। अब किसी भी लाभार्थी को भुगतान करने के लिए जैसे ही उसके आधार में भुगतान दर्ज किया जाता है, सिस्टम इस भुगतान को आधार से संबद्ध बैंक खाते में पहुंचा देगा।
लाभार्थी को कैसे मिलेगी रकम?
हर गांव के लिए एक बीसी एजेंट नियुक्त होगा। अपने हैंड हेल्ड टर्मिनल द्वारा यह सभी लाभार्थियों के फिंगरप्रिंट लेगा। त्वरित पुष्टि के लिए यह आंकड़े फिर से यूआइडीएआइ प्रमाणीकरण तंत्र के पास आएंगे। यह प्रक्रिया आधार इनेबेल्ड पेमेंट सिस्टम कहलाती है। जैसे ही पहचान की पुष्टि होगी वैसे ही एजेंट के माध्यम से लाभार्थी अपने खाते से लेनदेन करने में सक्षम होगा।
श्रृंखला में झोल
* बैंक शाखाएं (विशेषकर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के) और सर्वर आपस में जुड़े नहीं हैं।
* अधिकांश बैंकों ने अपने बीसी को केवल खाते से लेनदेन ही नहीं बल्कि नो फ्रिल अकाउंट के रखरखाव करने को भी कह रखा है। केवल 30 बैंकों के पास ऐसे बैंकिंग साफ्टवेयर का लाइसेंस है। अन्य बैंक उपभोक्ताओं के हिसाब से भुगतान करते हैं। इसलिए उन्हें नो फ्रिल अकाउंट को अपनी कोर बैंकिंग सिस्टम से जोड़ना बिना पर्याप्त रिटर्न के लागत बढ़ाने वाला कदम है।
मोबाइल द्वारा नकदी हस्तांतरण
मोबाइल और प्रीपेड कार्ड कंपनियां इस दिशा में काम कर रही हैं। इनकी मंशा है कि सरकार लोगों के मोबाइल फोन पर नकद भेजने की व्यवस्था करे। उपभोक्ता मोबाइल रिचार्ज केंद्र पर जाकर नकदी प्राप्त कर सकेगा।
भुनाने को तैयार
तीन लाख करोड़ के मौके को भुनाने के लिए बैंकिंग सेवा में कई दूसरे क्षेत्रों के खिलाड़ी कूदने को तत्पर दिख रहे हैं।
बैकिंग कॉरेसपांडेंट
प्रस्ताव: एजेंटों के माध्यम से उनके हैंड हेल्ड टर्मिनल द्वारा गांवों में बैंक सुविधा मुहैया कराना। वर्तमान में यह एक मॉडल सक्रिय।
समस्या: घाटे का सौदा है। उपभोक्ता के पास विकल्प नहीं होगा। बीसी के सत्ता केंद्र बनने की आशंका।
टेलीकॉम कंपनियां
प्रस्ताव: ये कंपनियां अपने 10 लाख बिक्री केंद्रों को मोबाइल मनी से नकदी में बदलने का साधन बना सकती हैं।
समस्या: यह कैसे सुनिश्चित होगा कि मोबाइल कंपनियां इसके बहाने कहीं अपने उत्पाद तो नहीं बेच रहे हैं। छोटे रिचार्ज केंद्रों पर अधिक नकदी का इंतजाम समस्या है।
अन्य कंपनियां
प्रस्ताव: ग्रामीण इलाकों में बड़ी कंपनी के खुदरा व्यापारी।
समस्या: यह कैसे सुनिश्चित होगा कि मोबाइल कंपनियां इसके बहाने कहीं अपने उत्पाद तो नहीं बेच रहे हैं। इसके अलावा अधिक गरीब और छोटे गांवों में ऐसे खुदरा कारोबारियों की मौजूदगी नगण्य है।
16 अक्टूबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “नए डिलीवरी सिस्टम के पेंच” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
साभार : दैनिक जागरण 16 अक्टूबर 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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