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जारी है गरीबी के नए मानक गढ़ने की प्रक्रिया

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Population-logoमापदंड का इतिहास

देश में पहली बार गरीबी रेखा की पहचान 1962 में की गई. इसमें 1960-61 की कीमतों पर गांव में 16 रुपये और शहर में 20 रुपये से ज्यादा मासिक खर्च करने वाले गरीब नहीं थे. कीमतों में परिवर्तन के साथ समय-समय पर योजना आयोग द्वारा गठित विशेषज्ञ कमेटी के सुझावों पर उसके बाद गरीबी रेखा को चिन्हित किया गया. प्रो सुरेश तेंदुलकर के नेतृत्व में गठित कमेटी ने ताजा रिपोर्ट 2009 में दी थी. तेंदुलकर कमेटी ने गरीबी रेखा के आधार बिंदुओं को संशोधित किया. इस कमेटी ने गरीबी रेखा मापने के कैलोरी मानक को कई कारणों से अनुपयोगी पाया. पहला कारण तो यह कि शहर में वास्तविक कैलोरी मानक 2100 कैलोरी तय करने के बावजूद सक्षम व्यक्ति भी 1776 कैलोरी का ही प्रतिदिन उपभोग करता है. यह खाद्य एवं कृषि संगठन के संशोधित मानक 1770 कैलोरी के काफी निकट है. ग्रामीण क्षेत्र में (1999 कैलोरी प्रति व्यक्ति) एफएओ मानक से भी ज्यादा है. दूसरी बात यह कि आज गरीब को स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर काफी खर्च करना पड़ रहा है जबकि 1960 के दशक में माना गया था कि ये सुविधाएं सरकार द्वारा मुहैया कराई जाएंगी. इसका एक कारण यह भी है कि बढ़ती आमदनी और जागरूकता के कारण स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर पहले की अपेक्षा अधिक ध्यान दिया जा रहा है.


हालिया पैमाना

गरीबी रेखा की नई परिभाषा के अनुसार पांच लोगों के परिवार की मासिक आमदनी शहरी क्षेत्र में 4824 रुपये और ग्रामीण इलाके में 3905 रुपये से ज्यादा वाले लोग गरीब नहीं हैं, यह 1961 की गरीबी रेखा से 50 गुना अधिक है. तेंदुलकर कमेटी की गरीबी रेखा का पैमाना ऊंचा है और यह पूर्ववर्ती अनुमान की तुलना में गरीबों की संख्या भी ज्यादा बतलाता है. यह स्पष्ट है कि 1993-94 से लेकर 2004-05 के बीच गरीबी रेखा की पुरानी या नई व्याख्या के अनुसार गरीब व्यक्तियों के प्रतिशत में करीब आठ प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. हालांकि 37.2 प्रतिशत के स्तर से हम सभी को चिंतित होना चाहिए.- [शंकर सिंह]


ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत गणना -2011 की प्रक्रिया जारी है. इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों से व्यक्ति और परिवार के संदर्भ में जो जानकारी जुटाई जाएगी, उनमें निम्न क्षेत्र शामिल है :


* व्यवसाय.

* शिक्षा.

* निशक्तता.

* धर्म.

* रोजगार.

* परिसंपत्तियां.

* मकान.

* भूमि.

* जाति व जनजाति का नाम.

* आय व आय का साधन.

* टिकाऊ और गैर टिकाऊ उपभोक्ता सामान.

* अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति स्थिति


ग्रामीण परिवारों को तीन स्तरीय प्रक्रिया के आधार पर वर्गीकृत किया जाएगा. इनमें उन परिवारों को गरीब नहीं माना जाएगा, जिनके पास निम्न में दर्ज सूची की सुविधाएं उपलब्ध होंगी:


* मोटरचालित दो पहिया, तिपहिया अथवा चार पहिया वाले वाहन या मछली पकड़ने वाली नाव.

* मशीनचालित तिपहिया कृषि उपकरण.

* पचास हजार और इससे अधिक की मानक सीमा के किसान क्रेडिट कार्ड.

* सरकारी नौकरी वाले किसी सदस्य वाला परिवार.

* सरकार में पंजीकृत गैर कृषि उद्योग वाले परिवार.

* परिवार का कोई सदस्य 10 हजार रुपये प्रति मास से अधिक कमाता है.

* आयकर अदा करते हैं.

* व्यावसायिक कर अदा करते हैं.

* सभी कमरों की पक्की दीवारें और छत के साथ तीन अथवा अधिक कमरे.

* रेफ्रिजरेटर है.

* लैंड लाइन फोन है.

* कम से कम एक सिंचाई उपकरण के साथ 2.5 एकड़ अथवा इससे अधिक सिंचित भूमि है.

* दो अथवा उससे अधिक फसल के मौसम के लिए पांच एकड़ अथवा इससे अधिक सिंचित भूमि है.

* कम से कम एक सिंचाई उपकरण के साथ कम से कम 7.5 एकड़ अथवा इससे अधिक भूमि है.


निम्नलिखित मानक वाले परिवारों को स्वत: गरीबी रेखा से नीचे वाला परिवार मान लिया जाएगा :

* बेघर परिवार.

* निराश्रित व भिक्षुक.

* मैला ढोने वाले.

* आदिम जनजाति समूह.

* कानूनी रूप से मुक्त किए गए बंधुआ मजदूर.


इन दोनों मापदंडों से अलग बाकी बचे परिवारों को सात अन्य मापदंडों पर परखा जाएगा. इनमें से पाए जाने वाले सबसे कम आय वाले परिवारों को गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों की सूची में शामिल करने को प्राथमिकता दी जाएगी.


* कच्ची दीवारों व कच्ची छत के साथ एक वेल एक कमरे में रहने वाले परिवार.

* परिवार में 16 से 59 वर्ष के बीच की आयु का कोई वयस्क सदस्य नहीं है.

* महिला मुखिया वाले परिवार, जिसमे 16 से 59 वर्ष के बीच की आयु का कोई वयस्क पुरुष सदस्य नहीं है.

* नि:शक्त सदस्य वाले और किसी सक्षम शरीर वाले वयस्क सदस्य से रहित परिवार.

* अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति परिवार.

* ऐसे परिवार जहां 25 वर्ष से अधिक आयु का कोई वयस्क साक्षर नहीं है.

* भूमिहीन परिवार जो अपनी ज्यादातर कमाई दिहाड़ी मजदूरी से प्राप्त करते हैं.


जनमत

chart-1क्या आधुनिक अर्थव्यवस्था के दौर में गरीबी के मायने बदल गए हैं?


हां: 55%

नहीं: 45%


chart-2क्या मौजूदा आर्थिक तंत्र गरीबी को नियंत्रित करने में सक्षम है?


हां: 18%

नहीं: 82%


आपकी आवाज

अगर मौजूदा आर्थिक तंत्र सक्षम होता तो आज कोई भी आदमी गरीबी के चलते आत्महत्या करने पर मजबूर नहीं होता। -अरुण त्यागी@याहू.इन

केंद्र सरकार और आरबीआइ द्वारा वर्तमान में बनाई जा रही नीतियां सिर्फ उद्योगपतियों को खुश करने के लिए हैं। गरीबों के हितों की कोई बात ही नहीं करना चाहता। -मनमोहन कृष्णन@जीमेल.कॉम

मौजूदा आर्थिक तंत्र गरीबी को नियंत्रित करने के बजाय आंकड़ों की बाजीगरी से नि:संकोच गरीबों को निपटाने में सक्षम है। -नरायणदत्त.एडवोकेट@जीमेल.कॉम

आधुनिक अर्थव्यवस्था और महंगाई के इस दौर में गरीबी के मायने बदल रहे हैं। इसलिए इसकी परिभाषा भी बदलनी चाहिए। एक दशक पहले जितनी आय वाले अमीर माने जाते थे, आज उस आय में अपनी मूल जरूरतें नहीं पूरी की जा सकती। -मनमोहन मिश्र, दिल्ली

दो अंकों की विकास दर हासिल करने का सपना पालने वाले देश में गरीबी के मायने भले ही बदल गए हों लेकिन पहले भी गरीब गुरबत में जीता था और आज भी। -कुलजीत सिंह, अमृतसर


09 अक्टूबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “आसान नहीं है गरीबों की पहचान”  पढ़ने के लिए क्लिक करें.

09 अक्टूबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “आंकड़ों से गरीबी हटाएं, गरीब नहीं”  पढ़ने के लिए क्लिक करें.

09 अक्टूबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “गरीबी एक रूप अनेक”  पढ़ने के लिए क्लिक करें.

साभार : दैनिक जागरण 09 अक्टूबर 2011 (रविवार)

नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.


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