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किसी देश में एक उचित जीवन स्तर जीने के लिए जरूरी न्यूनतम आय को वहां की गरीबी रेखा कहा जाता है. इसकी कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है. जो व्यक्ति अमेरिकी परिभाषा के अनुसार गरीब हैं, जरूरी नहीं कि वह अन्य देशों के गरीबी के पैमाने पर भी खरा उतरता हो. व्यवहारिक रूप से विकसित देशों की गरीबी रेखा विकासशील देशों की गरीबी रेखा से ऊंची है.
-मूलरूप से विकल्पों और मौकों का अभाव ही गरीबी है. यह मानव आत्मसम्मान का उल्लंघन है. इसका मतलब समाज में प्रभावकारी रूप से भागीदारी करने वाली मूल क्षमता का अभाव होना है. इसका मतलब किसी के पास संसाधनों का इतना अभाव होना है कि वह परिवार को न तो भरपेट भोजन कराने में सक्षम है न ही उनके तन ढकने में. न तो वह शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल जा सकता है, न ही इलाज के लिए किसी क्लीनिक में जा सकता है. उसके पास खेती के लिए जमीन नहीं है. उसके पास आजीविका चलाने के लिए रोजगार नहीं हैं. ऋण लेने में भी वह असमर्थ है. इसका मतलब किसी व्यक्ति, परिवार और समुदाय के लिए असुरक्षा, लाचारी और बहिष्कार होता है. इसका मतलब हिंसा के प्रति अतिसंवेदनशील होना, जिसके चलते बगैर स्वच्छ जल और स्वच्छता के एकाकी जीवन जीने या नाजुक माहौल में जीने को अभिशप्त होना होता है. -[संयुक्त राष्ट्र]
-किसी को उसके कल्याण से महरूम रखना भी गरीबी का एक रूप है. इसके कई आयाम होते हैं. इसमें कम आय और आत्मसम्मान से जीने के लिए जरूरी मूलभूत चीजों एवं सेवाओं को ग्रहण करने की अक्षमता शामिल होती है. स्तरहीन शिक्षा और स्वास्थ्य, स्वच्छ जल और साफ-सफाई की खराब उपलब्धता, अपर्याप्त भौतिक सुरक्षा, अभिव्यक्ति का अभाव और जीवन के बेहतर करने के लिए अपर्याप्त क्षमता और मौके भी गरीबी से जुड़े होते हैं.- [विश्व बैंक]
अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा
इसके अनुसार आमतौर पर प्रतिदिन एक डॉलर पर गुजर बसर करने लोग गरीब की श्रेणी में आते हैं. 2008 में विश्व बैंक ने इस रेखा को संशोधित करते हुए 1.25 डॉलर तय किया. सामान्यरूप से गरीबी रेखा का निर्धारण करने में एक औसत व्यक्ति द्वारा सालाना उपभोग किए जाने वाले सभी जरूरी संसाधनों की लागत निकाली जाती है. मांग आधारित इस दृष्टिकोण के तहत एक सहनीय जीवन जीने के लिए जरूरी न्यूनतम खर्च का आकलन किया जाता है.
गरीबी मापने का पैमाना:-
बुनियादी गरीबी
इसके तहत तय की गई वास्तविक गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या की गणना की जाती है. इसे भोजन, वस्त्र, स्वास्थ्य और आवास के न्यूनतम स्तर को वहन करने के लिए जरूरी न्यूनतम आवश्यकताओं के संदर्भ में परिभाषित किया गया है. 1995 में कोपेनहेगन में आयोजित सामाजिक विकास पर विश्व सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र में कहा गया ‘बुनियादी गरीबी एक ऐसी दशा है जिसमें भोजन, सुरक्षित पेयजल, स्वास्थ्य, आवास, साफ-सफाई, शिक्षा और सूचना जैसी मूल मानव जरूरतों का घोर अभाव होता है. यह केवल आय पर ही निर्भर नहीं होती बल्कि सेवाओं के पहुंच पर भी.’ बाद में संयुक्त राष्ट्र के लिए डेविड गॉर्डन द्वारा तैयार किए गए शोध-पत्र ‘इंडीकेटर्स ऑफ पॉवर्टी एंड हंगर’ में बुनियादी गरीबी को पुन: परिभाषित किया गया. इसके अनुसार तय की गई आठ मूलभूत आवश्यकताओं में से किन्हीं दो के अभाव की दशा बुनियादी गरीबी मानी गई.
बुनियादी गरीबी का उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति ऐसे मकान में रहता है जिसकी फर्श कीचड़ की है. ऐसी दशा में उसे आवास से गंभीर रूप से वंचित माना जाएगा. एक ऐसा व्यक्ति जिसने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा और पढ़ नहीं सकता, उसे शिक्षा से गंभीर रूप से वंचित माना जाएगा. यदि कोई व्यक्ति अखबार, रेडियो, टेलीविजन या टेलीफोन जैसी सुविधाओं से रहित है तो उसे सूचना से गंभीर रूप से वंचित माना जाएगा. वे सभी व्यक्ति जो इनमें से किसी दो दशाओं से एक साथ वंचित है, उन्हें बुनियादी गरीबी में जीवन यापन करते हुए माना जाएगा. जैसे कोई व्यक्ति कीचड़ वाले फर्श के मकान में रह रहा है और उसे पढ़ना भी नहीं आता है.
तुलनात्मक गरीबी (रिलेटिव पॉवर्टी)
गरीबी मापने के इस तरीके में किसी तुलनात्मक गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की गरीबी को परिभाषित किया जाता है. उदाहरण के लिए औसत घरेलूप्रयोज्य आय के साठ फीसदी से कम आय वाले परिवार गरीब माने जाते हैं. इसके तहत यदि किसी अर्थव्यवस्था में सभी लोगों की वास्तविक आय में बढ़ोतरी होती हो, लेकिन आय का वितरण वही बना रहता है, तब तुलनात्मक गरीबी भी वही बनी रहती है. हालांकि कभी-कभी गरीबी मापने के इस तरीके में नतीजे अजीबोगरीब भी आ जाते हैं. खासकर कम जनसंख्या में इस तरह के नतीजों की आशंका अधिक रहती है. जैसे एक धनी पड़ोसी की औसत घरेलू आय सालाना दस लाख रुपये है. इस स्थिति में तुलनात्मक गरीबी के पैमाने पर सालाना एक लाख रुपये कमाई करने वाला परिवार भी गरीब माना जा सकता है. हालांकि यह परिवार इस कमाई में अपनी मूलभूत से अधिक जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है. दूसरी तरफ एक बहुत गरीब पड़ोस में अगर कोई औसत परिवार अपने भोजन की जरूरत का केवल 50 फीसदी कमाई करता है तब तुलनात्मक गरीबी के पैमाने पर औसत कमाई करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं माना जा सकता है. हालांकि बुनियादी गरीबी के पैमाने पर वह स्पष्ट रूप से गरीब है.
आठ मूल जरूरतें
भोजन: बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआइ) 16 से अधिक होना चाहिए.
सुरक्षित पेयजल: जल सीधे तालाब या नदी से नहीं आना चाहिए और इसे नजदीक ही होना चाहिए (चलकर पहुंचने में 15 मिनट से अधिक का समय न लगे).
स्वच्छता सुविधाएं: टॉयलेट सुविधा घर में या आसपास होनी चाहिए.
स्वास्थ्य: गंभीर बीमारी और गर्भावस्था के दौरान आवश्यक रूप से इलाज मुहैया कराया जाए.
आवास: एक कमरे में चार से कम लोग रहने चाहिए. धूल, कीचड़ या मिट्टी से निर्मित फर्श नहीं होनी चाहिए.
शिक्षा: सभी अनिवार्य रूप से स्कूल जाते हों.
सूचना: सभी के लिए अखबार, रेडियो, टेलीविजन, कंप्यूटर, या घर में टेलीफोन की सुविधा होनी चाहिए.
सेवाओं की पहुंच: इसे परिभाषित नहीं किया गया है लेकिन सामान्यतौर पर इसे शिक्षा, स्वास्थ्य, कानूनी, सामाजिक और वित्तीय सेवाओं के संदर्भ में किया जाता है.
देशों में गरीबी मापने के तरीके
ओईसीडी और यूरोपीय संघ: इन देशों में गरीबी रेखा के निर्धारण में तुलनात्मक गरीबी पैमाने का उपयोग किया जाता है.
यह ‘आर्थिक दूरी’ पर आधारित होता है. आर्थिक दूरी आय का एक निर्धारित स्तर है जिसे औसत घरेलू आय का पचास फीसदी निर्धारित किया जाता है.
अमेरिका: यहां गरीबी को मापने के लिए बुनियादी गरीबी के सिद्धांत को अपनाया जाता है. 1963-64 में यहां गरीबी रेखा का निर्धारण किया गया. अमेरिका में गरीबी मापने वाले मानदंडों का विकास आज से करीब पचास साल पहले किया गया. उस समय आंकड़े यह दर्शाते थे कि हर परिवार अपनी कुल आय का एक तिहाई अपने खाद्य पदार्थो पर खर्च करते हैं. इस तरह आधिकारिक रूप से यहां जो गरीबी रेखा तय की गई है वह खाद्य लागत में तीन का गुणनफल होती है. तब से लगातार मुद्रास्फीति के आधार पर सालाना वही आंकड़े अद्यतन किए जाते हैं. परिवार के आकार के आधार पर यहां संघीय गरीबी रेखा का समायोजन किया जाता है.
विश्व बैंक: यह गरीबी को बुनियादी गरीबी के दृष्टिकोण से परिभाषित करता है. इसके अनुसार 1.25 डॉलर से कम पर रोजाना आजीविका चलाने वाले लोग घोर गरीबी की चपेट में हैं. दुनिया में इनकी संख्या 140 करोड़ है. वहीं दो डॉलर से कम पर आश्रित लोग मध्यम गरीबी के शिकार हैं. ऐसे लोगों की संख्या 270 करोड़ है.
09 अक्टूबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “आसान नहीं है गरीबों की पहचान” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
साभार : दैनिक जागरण 09 अक्टूबर 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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