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गरीबी मिटाने के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है। ये बात और है कि भ्रष्ट तंत्र और लचर सरकारी रवैए के चलते इन योजनाओं का गरीबों को बहुत कम लाभ मिल पाता है। सरकार तो यह मानकर चलती है कि वह गरीबों को निशुल्क शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी तमाम बुनियादी जरूरतें मुहैया करा रही हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही होती है..
मनरेगा
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत ग्रामीण परिवारों के हर वयस्क सदस्य के लिए साल में सौ दिनों के सवेतन रोजगार प्रावधान।
हकीकत: फर्जी जॉब कार्ड बनाने और योजना के धन का अन्य जगह इस्तेमाल के मामलों ने इस महत्वाकांक्षी योजना की कलई खोल दी है। भ्रष्टाचार और लक्ष्य से दूर योजना की वास्तविकता से सरकार भी वाकिफ है तभी तो गांव-गांव जाकर इस योजना के ऑडिट की बात कही जा रही है। उड़ीसा में धांधली सामने आने पर सरकार को फटकार लगाते हुए इस साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ जांच के आदेश दिए।
लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली
इस योजना के तहत गरीबों को छूट या कम कीमत पर अनाज उपलब्ध कराया जाता है।
हकीकत: वितरण केंद्रों पर खराब गुणवत्ता वाले अनाज की उपलब्धता। मुनाफाखोरी के चलते अनाज को बाजार में बेचे जाने की शिकायतें आम हैं।
मिड डे मील योजना
प्राथमिक स्कूलों में छात्रों के नामांकन एवं उपस्थिति को बढ़ावा देने एवं उन्हें पोषण युक्त आहार मुहैया कराना इस योजना का मुख्य लक्ष्य है।
हकीकत: करोड़ों रूपये खर्च करने बाद भी सरकार अपने लक्ष्य को पाने में असफल रही है। इस योजना में भी कई घोटाले सामने आ चुके हैं।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य अभियान
ग्रामीण परिवारों को बहुमूल्य स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए 2005 में इस योजना की शुरुआत की गई। शिशु और मातृ मृत्युदर में कमी लाना, लोक स्वास्थ्य सेवाओं का नागरिकों तक पहुंच सुलभ कराना, लिंग एवं जन सांख्यिकीय संतुलन सुनिश्चित करना इस योजना के मुख्य लक्ष्य हैं।
हकीकत: इस योजना के तहत केंद्र से भेजे गए धन का उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हुआ। घोटाले के कारण दो मुख्य चिकित्सा अधिकारियों की हत्या हुई और एक उप मुख्य चिकित्साधिकारी की रहस्यमय परिस्थितियों में जेल के अंदर मौत हो गई। माना जा रहा है कि केवल इसी प्रदेश में पिछले पांच-छह साल से जारी घोटालों के चलते स्वास्थ्य योजना की करीब तीन हजार करोड़ रुपये की धनराशि इधर-उधर हो गई।
ग्रामीण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के तहत जारी धन (करोड़ में )
24,026 [2006-07]
27,512 [2007-08]
31,500 [2008-09]
69,170 [2009-10]
विभिन्न योजनाओं के लिए बजट 2010-11 में आवंटित धन
कार्यक्रमआवंटन (करोड़ में)
मनरेगा के लिए 40,100
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिए 12,000
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के लिए 2,984
इंदिरा आवास योजना के लिए 10,000
डिस्ट्रिक रुरल डेवलपमेंट एजेंसी प्रशासन के लिए 405
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के लिए 9,000
संपूर्ण स्वच्छता अभियान 1,580
इंटीग्रेटेड वाटरशेड मैनेजमेंट प्रोग्राम 2,458
राष्ट्रीय भू संसाधन प्रबंधन कार्यक्रम के लिए 200
जनमत
क्या आप योजना आयोग की गरीबी की नई परिभाषा से सहमत हैं?
हां: 9%
नहीं: 91%
क्या गरीबी की नई परिभाषा गरीबों के साथ किया गया क्रूर मजाक है?
हां: 90%
नहीं: 10%
आपकी आवाज
यह परिभाषा तो हर गरीब को कागजी तौर पर गरीबी रेखा से ऊपर उठा दे रही है। –अल्का चंद्रा, कानपुर
सरकार का हाथ गरीब के गाल से गले की ओर जा रहा है! बचाओ! -अशोक वशिष्ठ54@याहू.काम
देश में गरीबी के आंकड़ें कम दिखाने के प्रयास में गरीबों का उपहास हो रहा है। -मनोज गुप्ता यूपीटीडी@जीमेल.कॉम
यह परिभाषा गढ़ने वालों का जमीर रसातल में पहुंच चुका है। ऐसे लोगों को पहले जमीनी हकीकत का पता लगाना चाहिए। -मनमोहन कृष्णन263@जीमेल.काम
सरकार उस कैंटीन का पता बताए जहां 26 रुपये में भोजन मिलता है। जिससे तथाकथित अमीर उस भोजन का लुत्फ उठा सकें। -गोविंद गोयल85@याहू.काम
यह गरीबी की परिभाषा नहीं है। यह तो गरीब को गरीब न मानने की सरकारी साजिश है। -अंकुर दूबे, दिल्ली
सरकार गरीबों की संख्या कम दिखाने के चलते यह खेल खेल रही है। जिससे उसे गरीबों के कल्याण पर कम से कम खर्च करना पड़े। -आनंद मिश्र, सुल्तानपुर
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