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न्यायिक सुधारों पर दैनिक जागरण ने 26 जुलाई से आठ अगस्त, 2010 तक जन जागरण अभियान चलाया था। करीब दो सप्ताह तक चलाए गए इस अभियान में देश के नौ राज्यों के 29 शहरों को शामिल किया गया था। इस अभियान के तहत न्याय प्रणाली पर 18 हजार लोगों की प्रतिक्रिया रिकार्ड की गईं। करीब एक लाख लोगों के बीच हुए अपनी तरह के पहले और सबसे बड़े जन जागरण सर्वेक्षण के नतीजे चौंकाने वाले रहे। सर्वेक्षण में शामिल 75 फीसदी लोगों ने दो टूक कहा कि न्याय प्रणाली में उनका भरोसा डगमगाने लगा है। सर्वे में जहां पारदर्शी न्याय प्रणाली के लिए जनता की बेचैनी स्पष्ट रूप से झलकी वहीं, मुकदमों के निपटारे की समय-सीमा तय किए जाने की मांग भी सामने आई। आम लोगों ने बेबाक होकर अपनी राय देते हुए कहा कि कानून के ऊपर कोई भी नहीं होना चाहिए, न्यायमूर्ति भी नहीं। न्याय व्यवस्था से जुड़े व्यक्तियों विशेषतौर पर न्यायाधीशों एवं वकीलों की प्रतिभागिता और आम जनता की व्यापक भागीदारी के चलते न्याय के लिए जन जागरण अपनी तरह का अभूतपूर्व अभियान सिद्ध हुआ।
जनमत
क्या न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत है?
हां: 90%
नहीं: 10%
क्या आपको त्वरित, पारदर्शी और सुलभ न्याय मिल पाता है?
हां: 7%
नहीं: 93%
आपकी आवाज
न्याय की आस में कई लोग तबाह हो गए। आज त्वरित, पारदर्शी न्याय की प्राप्ति सपना है। -गौरीशंकर@रीडिफमेल.काम
आज की परिस्थितियों में आसानी से न्याय की उम्मीद बेमानी है। -पीयूष (जम्मू)
न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए व्यापक बदलाव की जरूरत है। नियुक्ति हेतु स्वतंत्र न्यायिक परिषद या आयोग का गठन होना चाहिए। -नारायण कैरो (लोहरदगा)
न्यायाधीशों की नियुक्तियों में ईमानदार और सत्यनिष्ठा वाले लोगों को प्रमुखता देनी चाहिए। -राम प्रसाद (गोरखपुर)
04 सितंबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “कानून के रखवालों के लिए कानून” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
04 सितंबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “जजों की नियुक्ति” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
04 सितंबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “आखिर क्यों उठे सवाल!” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
साभार : दैनिक जागरण 04 सितंबर 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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