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‘परोपकाराय शतां विभूतय:’ सूक्ति को चरितार्थ करने वाले महापुरुषों की कमी नहीं है। इतिहास गवाह है कि जब-जब जनता के हितों की उपेक्षा की गई है तब-तब समाज के बीच से अपने आंदोलन से उस मसले को एक निर्णायक मोड़ दिया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बाद भी कई जननायकों ने अपना जीवन दांव पर लगाकर भूख हड़ताल द्वारा जनहित के मसलों को एक नया आयाम दिया।
देश में
दर्शन सिंह फेरूमान: पंजाब के अमृतसर जिले के फेरूमान गांव के दर्शन सिंह 1959 में कांग्रेस से अलग होकर स्वतंत्र पार्टी के सदस्य बने। इस बीच पंजाब प्रदेश की नई सीमा रेखा तय की गई। इस नए पंजाब में चंडीगढ़ सहित अन्य क्षेत्रों को शामिल कराने के लिए कुछ सिख नेताओं ने अकाल तख्त के सामने शपथ ली किंतु वे ऐसा न कर सके। अगस्त, 1969 में दर्शन सिंह ने सिख नेताओं की इस नाकामी पर प्रायश्चित करते हुए अपने जीवन को समाप्त करने का संकल्प लिया। ऐसा दृढ़ निश्चय कर अमृतसर सेंट्रल जेल में 15 अगस्त से भूख हड़ताल पर बैठे। उन्होंने मांग की कि जब तक चंडीगढ़ और अन्य क्षेत्रों को पंजाब में नहीं शामिल किया जाएगा तब तक वे अन्न-जल नहीं ग्रहण करेंगे। भूख हड़ताल के 74वें दिन यानी 27 अक्टूबर,1969 को इनकी मौत हुई।
पोट्टी श्रीरामुलु: तेलुगु लोगों के हितों की रक्षा और इस संस्कृति के संरक्षण के लिए उन्होंने तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी से भाषाई आधार पर अलग आंध्र प्रदेश बनाए जाने की मांग की। ये लंबी भूख हड़ताल पर बैठे लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के आश्वासन पर अनशन तोड़ना पड़ा। 19 अक्टूबर,1952 को फिर से भूख हड़ताल शुरू की। 58 दिनों की भूख हड़ताल के बाद 16 दिसंबर, 1952 को इनकी मौत हो गई। इसके बाद ही भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की मुहिम में तेजी आई।
मोरारजी देसाई: 1956 में गुजरात को अलग प्रदेश बनाए जाने की मांग पर वहां दंगे भड़क गए। इसको रोकने के लिए तत्कालीन बांबे के मुख्यमंत्री रहे मोरारजी एक सप्ताह तक भूख हड़ताल पर रहे।
1974 में उन्होंने गुजरात नवनिर्माण आंदोलन के तहत लंबी भूख हड़ताल पर जाकर केंद्र सरकार को गुजरात में नए चुनाव के लिए बाध्य कर दिया।
आइरोम शर्मिला चानू: मणिपुर की आइरन लेडी नाम से चर्चित शर्मिला चानू लगातार भूख हड़ताल किए हुए हैं।
चार नवंबर 2000 से वह राजनीतिक भूख हड़ताल पर जाकर सरकार से वहां पर लागू आर्म्स फोर्सेस स्पेशल पॉवर एक्ट 1958 हटाए जाने की मांग कर रही हैं।
मेधा पाटकर: 28 मार्च 2006 को सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने के विरोध में भूख हड़ताल शुरू की।
बीस दिन तक लगातार भूख हड़ताल के बाद 17 अप्रैल को इन्होंने तब अपना अनशन खत्म किया जब सुप्रीम कोर्ट ने वहां विस्थापन और पुनर्वास कार्यक्रम अपनी देखरेख में कराने का आदेश दिया।
ममता बनर्जी: दिसंबर 2006 में सिंगुर में प्रस्तावित टाटा की नैनो कार परियोजना के विरोध में तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो एवं फायरब्रांड नेता ममता बनर्जी ने 25 दिनों तक भूख हड़ताल की।
सुंदरलाल बहुगुणा: 1995 में टिहरी बांध के विरोध में 45 दिन भूख हड़ताल पर रहे। दो साल बाद दिल्ली में महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर फिर इन्होंने 74 दिनों तक भूख हड़ताल की।
जीडी अग्रवाल: 13 जून 2008 को उत्तरकाशी में भूख हड़ताल शुरू कर राज्य और केंद्र सरकार से भागीरथी पर बनाई जा रही पनबिजली परियोजनाओं को हटाने की मांग की।
30 जून को केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समूह के गठन का निर्णय लेने और तीन महीने में स्वीकार्य समाधान देने के लिखित आश्वासन के बाद इन्होंने अपनी भूख हड़ताल समाप्त की।
परदेस में
टेरेंस जोसेफ मैकस्वाइने : ऑयरलैंड के इस नाटककार, लेखक और राजनेता को राजद्रोह के आरोप में ब्रिटेन ने गिरफ्तार कर लिया था। अपनी गिरफ्तारी के विरोध और सैन्य कोर्ट द्वारा मुकदमा चलाये जाने के खिलाफ उन्होंने भूख हड़ताल शुरू की। अनशन के 74वें दिन उनकी मौत हो गई। उनके अनशन ने आयरलैंड के संघर्ष की तरफ अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया। महात्मा गांधी ने कहा है कि उनको अनशन के अस्त्र की प्रेरणा टेरेंस के तरीके से मिली।
आइरिश भूख हड़ताल (1981): आइरिश रिपब्लिकन आर्मी के स्वयंसेवक बॉबी सैंड्स के नेतृत्व में जेल में बंद कैदियों ने खुद को अपराधी के बजाय राजनैतिक कैदी की माने जाने की मांग की लेकिन ब्रिटेन की मार्गेट थैचर की सरकार ने उनकी मांग को मानने से इंकार कर दिया। लंबे अनशन के दौरान ही बॉबी सैंड्स को सांसद भी चुन लिया गया। लेकिन बॉबी सैंड्स समेत 10 कैदियों की मौत के बाद ही इस अनशन की समाप्ति हुई। बॉबी की अनशन के 66वें दिन, केविन लिंच (71 दिन) और कीरन डोहर्ती की 73 दिन बाद मृत्यु हुई।
क्यूबा में अनशन: क्यूबा के विद्रोही कवि पेड्रो लुईस बोइटल ने फुलजेंसियो बतिस्ता और बाद में फिदेल कास्त्रो की सरकार का विरोध किया था। 1961 में उसको 10 साल की सजा सुनाई गई। अवधि पूरी होने के बाद भी उसको रिहा नहीं किया गया। 1972 में वह अनशन पर बैठ गए। अनशन के 53वें दिन उसकी मृत्यु हो गई।
मुहिम के मसीहा
हरि देव शौरी: हरि देव शौरी (1911-2005) ने आम जनता के अधिकारों के लिए ‘कॉमन कॉज’ नामक संगठन की स्थापना की। उपभोक्ताओं के अधिकारों की लड़ाई के लिए जनहित याचिकाओं को कारगर हथियार बनाने में हरि देव का अहम योगदान है।
याचिकाओं का इस्तेमाल कर कई महत्वपूर्ण केस लड़े जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने लैंडमार्क निर्णय दिए।
जीआर खैरनार: बृहन्मुंबई म्युनिस्पल कॉरपोरेशन के डिप्टी कमिश्नर रह चुके जी आर खैरनार (69) को मुंबई में ‘वन मैन डिमोलिशन आर्मी’ के तौर पर जाना जाता है। उनकी मुंबई में अवैध रूप से निर्मित इमारतों को गिराने में अहम भूमिका रही।
यहां तक कि 1985 में महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंत दादा पाटिल के पुत्र के होटल को ढहा दिया था।
एमसी मेहता: पेशे से वकील पर्यावरणविद् महेश चंद्र मेहता (1946) ने पर्यावरणीय हितों की सुरक्षा के लिए मिशन चला रखा है।
उन्होंने पर्यावरण संबंधी मामलों की कई जंग लड़ी और निर्णायक मुकाम तक पहुंचाया।
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21 अगस्त को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “अनशन का अस्त्र” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
साभार : दैनिक जागरण 21 अगस्त 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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