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हर तरफ धुंआ है
हर तरफ कुहासा है
जो दांतों और दलदलों का दलाल है
वही देशभक्त है,
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूं, यह तीसरा आदमी कौन है?
मेरे देश की संसद मौन है।
न कोई तंत्र है
यह आदमी केखिलाफ
आदमी का खुला सा षड़यंत्र है।-धूमिल
अंधकार बढ़ता जाता है!
मिटता अब तरु-तरु में अंतर,
तम की चादर हर तरुवर पर,
केवल ताड़ अलग हो सबसे अपनी सत्ता बतलाता है!
अंधकार बढ़ता जाता है!
दिखलाई देता कुछ-कुछ मग,
जिस पर शंकित हो चलते पग,
दूरी पर जो चीजें उनमें केवल दीप नजर आता है!
अंधकार बढ़ता जाता है!
डर न लगे सुनसान सड़क पर,
इसीलिए कुछ ऊंचा स्वर कर
विलग साथियों से हो कोई पथिक , सुनो, गाता आता है!
अंधकार बढ़ता जाता है!–डा. हरिवंशराय बच्चन
मनमर्जी के मुताबिक रहने का अधिकार ही स्वतंत्रता है।
-इपिक्टीटस (यूनानी दार्शनिक)
स्वतंत्रता धरती की आखिरी सबसे अच्छी आशा है.
अब्राहम लिंकन (अमेरिकी राष्ट्रपति)
स्वतंत्रता दी नहीं जाती है, इसे हासिल किया जाता है.
नेताजी सुभाषचंद्र बोस (भारतीय स्वधीनता सेनानी)
अत्याचारी कभी स्वेच्छा से स्वतंत्रता नहीं देता है, उत्पीड़तों द्वारा इसकी मांग की जानी चाहिए.
मार्टिन लूथर किंग जूनियर (अमेरिकी अश्वेत नेता)
स्वतंत्रता बेहतर होने का एक अवसर है .
अल्बर्ट केमस (फ्रांसीसी दार्शनिक)
–कोई भी मेरी अनुमति के बिना मुझे कष्ट नहीं पहुंचा सकता
–लोगों की व्यक्तिगत आजादी को छीनकर किसी समाज की बुनियाद रखना संभव नहीं है
–आजादी एक जन्म के समान है। जब तक हम पूर्ण स्वतंत्र नहीं हैं तब तक हम दास हैं
–महात्मा गांधी
जनमत
क्या अब हमारे लिए आजादी के मायने बदल गए हैं ?
नहीं : 19 %
हां: 81 %
क्या हम सही मायने में आजाद हैं ?
नहीं: 90%
हां: 10 %
14 अगस्त को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “चूके तो चुक गए हम” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
14 अगस्त को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “मायूसी का मर्ज” पढ़ने के लिए क्लिक करें।
14 अगस्त को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “हमारी इस आजादी का मतलब !” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
साभार : दैनिक जागरण 14 अगस्त 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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