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नहीं भाती किसी की खुशहाली

मुद्दा
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बुधवार को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद गृहमंत्री सहित तमाम सुरक्षा विशेषज्ञों इस बात पर एकमत दिखे कि आतंकियों की इस बर्बरतापूर्ण कार्रवाई का एक मकसद देश की आर्थिक समृद्धि और खुशहाली को चोट पहुंचाना भी है। एक के बाद एक होने वाले इन आतंकी हमलों में लोगों की मौतें और संपत्ति की क्षति के रूप में होने वाला आर्थिक नुकसान जहां अल्पकालिक दुष्प्रभाव है वहीं अर्थव्यवस्था पर इसका व्यापक दूरगामी असर भी पड़ता है।


9-11इजरायल की अर्थव्यवस्था पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक अर्थव्यवस्था की विकास दर पर आए दिए होने वाले हमलों का असर पड़ता है। इस अध्ययन में पाया गया कि साल 2001 और 2003 के दौरान इजरायल का सकल घरेलू उत्पाद वर्तमान के मुकाबले 10 से 15 फीसदी अधिक था। उस दौरान यहां पूरी शांति थी। कहीं पर कोई आतंकी घटना नहीं घट रही थी। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने आतंकवाद के फलस्वरुप होने वाले जीवन व संपत्ति के नुकसान की सीधी लागत का आकलन किया है वहीं संसाधनों को आम जनता के उपयोग से हटाकर सुरक्षा उपायों में लगाने की अप्रत्यक्ष लागत का आकलन भी किया है। गौरतलब है कि छोटे से देश इजरायल का कई वर्षों से लगातार अधिक संख्या में आतंकवादी हमले झेलना विशेष मामला हो सकता है, लेकिन मिल्केन इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने दुनिया के कई विकसित और विकासशील देशों के आंकड़ों का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला कि आतंकी हमले की घटनाओं में लगातार इजाफा आर्थिक गतिविधियों के लिए अल्प और दीर्घकालीन दोनों रूपों में नुकसानदेह हैं।


अध्ययन में बताया गया कि आतंकवादी हमले से पैदा डर और अनिश्चितता पूंजी निर्माण प्रक्रिया पर हानिकारक असर डालते हैं। यहीं पूंजी निर्माण और पूंजी संचय दीर्घकालिक आर्थिक विकास का प्रमुख चालक है।


17 जुलाई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “सुरक्षा का आधारभूत ढांचा मजबूत करना जरूरी” पढ़ने के लिए क्लिक करें.



17 जुलाई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “आतंक के खात्मे के लिए सरकार के दावों का सच” पढ़ने के लिए क्लिक करें.



17 जुलाई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “जब जब दहली मुंबई” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


साभार : दैनिक जागरण 17 जुलाई 2011 (रविवार)


नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.



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