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जिन खेल संस्थाओं और अधिकारियों का काम देश में खेल और खिलाड़ियों को बढ़ावा देना है, डोपिंग के अब तक के सबसे बड़े मामले में देश को शर्मसार करने के बाद सभी एक दूसरे पर दोषारोपण में जुटे हैं।
खिलाड़ियों का खेल
मंदीप कौर और उसके साथ डोपिंग मामले में फंसी अन्य एथलीट खिलाड़ी हालांकि इस मामले में चुप्पी साधे हैं। लेकिन सूत्रों के अनुसार इन लड़कियों का मानना है कि उन्होंने अपनी तरफ से कोई प्रतिबंधित दवा नहीं ली है। उन्होंने इसके लिए यूक्रेन के कोच यूरी ओगोरोडनिक को दोषी ठहराया है। उनके मुताबिक ग्वांगझू खेलों के दौरान यूरी ने शक्तिशाली सप्लीमेंट खरीदे थे। इन एथलीटों के अनुसार इससे पहले तीन मई को हुए डोपिंग परीक्षण में वह सफल रही थीं। तब किसी प्रकार की कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई। इन लड़कियों ने पांच मई से नए फूड सप्लीमेंट लिए थे। आशंका है कि इनमें ही प्रतिबंधित दवाएं शामिल रही हों।
कोच की कोशिश
बर्खास्त कोच यूरी ओगोरोडनिक ने कहा है कि वह पूरी तरह से निर्दोष हैं। हालांकि उन्होंने साइ पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उसकी वजह से पटियाला स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोट्र्स (एनआइएस) का स्तर दोयम दर्जे का है। उन्होंने कहा कि यहां ‘हमारे पास कोई डॉक्टर नहीं है। हमारे पास अच्छे फूड सप्लीमेंट नहीं है। जब हमने साइ से अच्छे फूड सप्लीमेंट की मांग की तो उन्होंने केवल विटामिन और प्रोटीन दी क्योंकि उनके पास पैसे नहीं है। यहां खाने में केवल चावल और मसालेदार खाना मिलता है जो एथलीट खिलाड़ियों के लिए उचित नहीं है।
डोपिंग का रैकेट
साइ के स्पोट्र्स मेडिसिन के पूर्व प्रमुख डॉ. अशोक आहूजा के अनुसार पिछले एक दशक से एथलेटिक फेडरेशन ऑफ इंडिया (एएफआइ)की जानकारी में व्यवस्थित ढंग से डोपिंग का खेल एनआइएस, पटियाला में चल रहा है। इनके मुताबिक 1998 में खिलाड़ियों की प्रदर्शन क्षमता बढ़ाने के एकमात्र मकसद से एएफआइ ने यूक्रेन के डॉ यूरी बोयको और डॉ अलेक्जेंडर (ट्रेनिंग पद्धति विशेषज्ञ)को बुलाया था। इनका एकमात्र मकसद शक्तिशाली दवाओं के इस्तेमाल से एथलीट खिलाड़ियों का प्रदर्शन बढ़ाना था। बोयको ने आने के बाद 300-500 सिरिंज मांगी और बड़ी मात्रा में सप्लीमेंट मांगे। बोयको के इस कदम का साइ डॉक्टरों ने विरोध किया था। उनके मुताबिक रात में खाने के बाद बोयको खिलाड़ियों को नियमित तौर पर शक्तिशाली दवाएं देता था। जबकि उसके इस कदम की जानकारी सभी खेल प्राधिकरणों मसलन एनआइएस, साइ और यहां तक कि खेल मंत्रालय तक को थी। लेकिन सबने जानबूझकर आंखें मूंद लीं क्योंकि देश को पदक चाहिए थे।
मंत्री का मंतव्य
खेल मंत्री अजय माकन ने डोपिंग की वजह से देश को हुई शर्मिंदगी के लिए एएफआइ के जनरल सेक्रेट्री ललित भनोट को जिम्मेदार ठहराया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो शख्स (ललित भनोट) भ्रष्टाचार के मामले (राष्ट्रमंडल खेल घोटाला) में फंसा है, वह राष्ट्रीय खेल फेडरेशन का जनरल सेक्रेट्री है। ऐसे प्रदूषित माहौल में किसी बेहतरी की आशा कैसे की जा सकती है। जहां तक एनआइएस, पटियाला की बात है तो यह भी अपनी दिशा से भटक चुका है। इसकी भूमिका को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है
खरी-खरी
मिल्खा सिंह (महान एथलीट)
छह-सात साल पहले भी एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में डोपिंग के मामले सामने आए थे। भारत को शर्मसार होना पड़ा था, लेकिन तब कोच, खिलाड़ियों और अधिकारियों के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई थी। लापरवाह प्रशिक्षकों को निलंबित करना सकारात्मक कदम है। डोपिंग के लिए भारतीय ओलंपिक संघ (आइओए) और सरकार भी जिम्मेदार है क्योंकि भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) उसके अंतर्गत आता है, जो देश के सभी खेल संघों के लिए कोच की नियुक्ति करता है। ये कोच ही खिलाड़ियों को फूड सप्लीमेंट लेने के लिए कहते हैं, जिसमें प्रतिबंधित पदार्थ मौजूद होते हैं। एथलीट भी डोपिंग के लिए जिम्मेदार हैं क्योंकि वे जानते हुए भी यह सब करते हैं, जिसको प्रोत्साहन उनके विदेशी कोच द्वारा ही दिया जाता है क्योंकि उन्हें लगता है कि कुछ समय बाद उनके शरीर से ये पदार्थ निकल जाएंगे। विदेशों में जमकर डोपिंग होती है, लेकिन जो पकड़ा जाता है वही दोषी होता है इसलिए भारतीय एथलीटों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए। खिलाड़ियों को फूड सप्लीमेंट लेने की जगह पौष्टिक आहार को प्राथमिकता देनी चाहिए। साथ ही उन्हें ऐसे पौष्टिक आहार से भी सतर्क रहना चाहिए, जिनमें प्रतिबंधित तत्व मिले होते हैं।
जनमत :
क्या डोपिंग के लिए सिर्फ खिलाड़ी ही जिम्मेदार हैं?
हां : 74 %
नहीं : 26 %
क्या आप डोपिंग के लिए भारतीय खेल प्रबंधन को जिम्मेदार मानते हैं?
हां : 89 %
नहीं : 11 %
आपकी आवाज
डोपिंग के लिए खिलाड़ी भी दोषी हैं. चौतरफा दबाव के चलते खिलाड़ी अपना कॅरियर तबाह कर रहे हैं. – रिंकी (झांसी)
खेलों में डोपिंग शर्मनाक है. इसके लिए पूरा खेल प्रशासन जिम्मेदार है. कोई भी इसे रोकने के लिए संजीदा नहीं दिख रहा. – आफताब (जम्मू)
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साभार : दैनिक जागरण 10 जुलाई 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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