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लोकतंत्र के स्तंभ

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mudda visual

विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका। दबाव समूह के रूप में मीडिया चौथा स्तंभ। इनकी अवधारणा हमारे बुद्धिजीवियों ने शायद यह सोचकर की होगी कि अगर ये अपने कार्य दायित्व सही ढंग से निभाते रहे, तो लोकतंत्र हमेशा पुष्पित-पल्लवित रहेगा। उनकी यह संकल्पना कहीं न कहीं सही भी थी। वर्षों से हम इसी बूते एक स्वस्थ लोकतंत्र का अनुभव न केवल लेते आ रहे है बल्कि सारी दुनिया को इससे प्रेरणा लेने को विवश भी कर रहे है।  हमारे पूर्ववर्तियों की सोच थी कि लोकतंत्र के इन चारों अंगों में से अगर कभी किसी में कोई विकार पैदा हुआ तो बाकी तीन दबाव बनाकर उस विसंगति को दूर करेंगे।


इधर-बीच इन चारों अंगों के बीच आपसी टकराव की घटनाओं और इनके प्रति जनता के बीच बढ़ रहे क्षोभ ने हमारे लोकतंत्र के कमजोर होने का संकेत दिया है। लगता है कि अब लोकतंत्र के चारों स्तंभ अपने कार्यदायित्व का बाखूबी निर्वाह नहीं कर पा रहे है। ऐसे में लोकतंत्र के मूल्यों को संरक्षित करने के लिए एक नये दबाव समूह के रूप में सिविल सोसाइटी नामक पांचवें स्तंभ का सामने आना शुभ संकेत माना जा सकता है। यह और बात है कि इस दबाव समूह और लोकतंत्र की मजबूती में संबंधों को लेकर बड़ी बहस की जरूरत बतायी जा रही हो। बहरहाल, लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए भ्रष्टाचार पर सख्त लोकपाल कानून बनाने के हिमायती सिविल सोसाइटी नामक इस पांचवें दबाव समूह की प्रासंगिकता और इनकी मांग बड़ा मुद्दा है।


लोकपाल पर लोक मत



क्या प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखा जाना चाहिए और क्या लोकपाल को किसी के प्रति जवाबदेह बनाया जाना चाहिए सवालों पर हमने विभिन्न क्षेत्र के ख्यातिलब्ध हस्तियों की राय जानी जो इस प्रकार है।


pranav pandyaप्रधानमंत्री को लोकपाल के अधीन होना चाहिए। स्वच्छ और पारदर्शी व्यवस्था के लिए ऐसा होना बेहद जरूरी है। लोकपाल को जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। उसे जनता द्वारा ही चुना जाना चाहिए। ऐसी पुख्ता व्यवस्था भी की जानी चाहिए कि जब लोकपाल अपने उद्देश्यों से भटक जाए तो जनता उसे किसी भी समय वापस बुला ले- डॉ. प्रणव पण्ड्या (कुलाधिपति देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार)


SUNDERLAL_BAHUGUNA_3800fप्रधानमंत्री की जनता के प्रति सीधी जवाबदेही के कारण इनको भी लोकपाल के दायरे में लाया जाए। गलतियां लोकपाल से भी हो सकती हैं। इसके लिए जनता को सजग रहना होगा। लोकपाल यदि सरकारी तंत्र पर निगाह रखेगा तो लोग उस पर नजर रखें –सुंदरलाल बहुगुणा (पद्मविभूषण व प्रसिद्ध पर्यावरणविद्)


ruskin bondनिश्चित रूप से प्रधानमंत्री भी लोकपाल के दायरे में होने चाहिए। देश में भ्रष्टाचारमुक्त व पारदर्शी व्यवस्था स्थापित करने के लिए यह बेहद जरूरी है।

कोई ऐसी सक्षम अथॉरिटी होनी चाहिए, जिसके प्रति लोकपाल को जवाबदेह बनाया जा सके। लोकपाल अपने उद्देश्यों पर कायम रहे इसके लिए यह जरूरी है –रस्किन बांड (प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक)


namvar singh प्रधानमंत्री व उनके कार्यालय को लोकपाल के तहत अवश्य लाया जाना चाहिए। जो लोग इसका विरोध कर रहे है वे गलत कर रहे है।

मेरे हिसाब से लोकपाल की किसी के प्रति जवाबदेही नहीं होनी चाहिए. –प्रो. नामवर सिंह (हिंदी साहित्य के विख्यात आलोचक)


Mahasweta Deviमैं लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री पद को भी लाने के पक्ष में हूं। यदि ऐसा नहीं होता है तो यही समझा जाएगा कि इस पद पर बैठे व्यक्ति से कोई गलती होती है, तो उसकी जांच नहीं होगी?

साथ ही, मैं यह भी मानती हूं कि लोकपाल को संविधान के प्रति जवाबदेह होना चाहिए.-महाश्वेता देवी (ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका)


Usha Gangulyप्रधानमंत्री भी देश का नागरिक होता है, तो उसके लिए अलग व्यवस्था क्यों होनी चाहिए?

संविधान में सभी समान हैं, और किसी पद से गड़बड़ी की संभावना बनी रहती है, तो फिर लोकपाल सबके लिए जरूरी है। लोकपाल को जनता के प्रति जवाबदेह होना होगा। यह कैसे हो, इसे संविधान के दायरे में तय किया जाए. -उषा गांगुली (मशहूर रंगकर्मी)


Suman Rawatयदि समाज का आम वर्ग अपने कार्य के प्रति ईमानदार व निष्ठावान हो तो किसी की भी जवाबदेही की जरूरत नहीं है। प्रधानमंत्री के पद का अपना ही रुतबा व वजूद है। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाया जाए। लोकपाल की जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए.  -सुमन रावत मेहता (अर्जुन पुरस्कार विजेता)


manojkumar2आम नागरिक की तरह प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए। लोकपाल को जोकपाल बनाना कतई उचित नहीं है। सबसे बड़ा पेंच यही है कि लोकपाल किसके प्रति जवाबदेह हो। मेरी राय है कि लोकपाल का दायरा तय करने पर चर्चा की बजाय इस बात पर सहमति बनाई जाए कि लोकपाल किसके प्रति जवाबदेह हो सके. – मनोज कुमार (फिल्म अभिनेता)


YashpalSharmaप्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाना मुझे उचित नहीं लगता। हमें किसी एक पर तो विश्वास करना होगा। प्रधानंत्री को पूरे देश ने, पूरे सदन ने चुना है। अगर उन्हें ही लोकपाल के दायरे में शामिल किया गया तो लोकपाल किसके प्रति जवाबदेह होगा।

मेरी राय है कि इस पद को को लोकपाल के दायरे से अलग कर लोकपाल को इसके प्रति जवाबदेह बनाया जाना चाहिए. -यशपाल शर्मा (चरित्र अभिनेता)


sudha vergisप्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाना जरूरी है। इससे देश की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता एवं  जिम्मेदारी बढ़ेगी। देश का प्रत्येक व्यक्ति जब लोकपाल के अधीन होगा, तो फिर प्रधानमंत्री क्यों नहीं? लोकपाल के ऊपर भी किसी का नियंत्रण होना चाहिए। इसके लिए सरकार कोई व्यवस्था तैयार करे, ताकि तंत्र को सही तरीके से संचालित किया जाए.-सुधा वर्गीज (पद्मश्री सम्मानित समाजसेविका)


ramdharहमारे देश में संसद सर्वोच्च है। प्रधानमंत्री को लोकपाल के अन्दर होना चाहिए या नहीं, यह संसद को तय करने देना चाहिए। संसद को ही तय करने दिया जाये कि लोकपाल किसके प्रति जिम्मेदार होगा? राज्यों के लोकायुक्त की व्यवस्था है। लेकिन लोकायुक्त की नियुक्ति के बावजूद व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं दिखायी दे रहा है। इस पर भी सोचने की जरूरत है.-रामाधार (कृषि वैज्ञानिक)


arun kamalसंसदीय प्रणाली में जनता के प्रतिनिधि ही सर्वोपरि होते हैं और प्रधानमंत्री उनका प्रतिनिधि होता है। इस प्रणाली में देश का प्रत्येक नागरिक बराबर है। इसलिए प्रधानमंत्री और सभी निर्वाचित प्रतिनिधि सीधे जनता के प्रति जिम्मेदार हैं। इसलिए संसदीय प्रणाली के स्थान पर किसी भी दूसरी या एक व्यक्ति के प्रणाली का मैं विरोध करता हूं, चाहे वह राष्ट्रपति प्रणाली हो या लोकपाल प्रणाली। भ्रष्टाचार की जड़ पूंजीवाद और व्यक्तिगत संपत्ति है। वास्तव में भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए संपत्ति के उत्तराधिकार को समाप्त करना होगा। इससे भ्रष्टाचार मिटाने में काफी सहायता मिलेगी। जब तक पूंजीवाद और व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकार रहेगा, भ्रष्टाचार रहेगा। दरअसल, यह मुद्दा मात्र आर्थिक नहीं, नैतिक भी है.-अरुण कमल (कवि, साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता)


क्या कहते हैं राजनीतिक दल

तृणमूल कांग्रेस
प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में लाने का विरोध कर रही है पार्टी। पार्टी मुखिया एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अनुसार जो लोग भ्रष्टाचार से लड़ने की बात कर रहे हैं, उन्हें पहले राजनीति में आना चाहिए। उसके बाद व्यवस्था परिवर्तन की बात करनी चाहिए.


भाजपा
आज की परिस्थितियों में भाजपा भले ही सरकार के रुख के बाद अपने पत्ते खोलने की बात कह रही हो, लेकिन अपने प्रधानमंत्रित्व काल में अटल बिहारी वाजपेयी ने इस पद को लोकपाल के दायरे में रखे जाने की वकालत की थी.


द्रमुक
संप्रग का यह घटक दल प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में लाने का समर्थन कर रहा है.


राकांपा
प्रधानमंत्री और न्यायपालिका के ऊपर कोई नहीं हो सकता। लोकपाल को द्वारपाल होना चाहिए, न कि दंडपाल।’


वाम मोर्चा
एक प्रस्ताव पारित कर इसने सरकार से सशक्त और प्रभावी लोकपाल कानून बनाने की मांग की है.


03 जुलाई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “लोकपाल पर तकरार के अहम मसले” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


03 जुलाई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “डरे हुए लोग फैला रहे हैं भ्रम” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


03 जुलाई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “रोग से अधिक घातक इलाज” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


साभार : दैनिक जागरण 03 जुलाई 2011 (रविवार)


नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.





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