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गुरुवार को मिड डे के इन्वेस्टिगेशन एडीटर ज्योतिर्मय डे की तेरहवीं भी हो गई, लेकिन खुद को स्कॉटलैंड यार्ड के बाद दुनिया की सबसे तेजतर्रार मानने वाली मुंबई पुलिस के हाथ हत्यारे के नाम पर एक धेला भी नहीं लगा है। मुंबई के पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक इस हत्याकांड को खुद के लिए एक चुनौती बता चुके है।
हत्याकांड
11 जून को दैनिक जागरण समूह के मुंबई से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ‘मिड डे’ के वरिष्ठ संपादक ज्योतिर्मय डे की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। जे डे के नाम से मशहूर 56 वर्षीय ज्योतिर्मय अंडरवल्र्ड की खोजी पत्रकारिता के शीर्ष पुरुष थे।
जांच: नौ दिन चले अढ़ाई कोस
दैनिक जागरण से बातचीत में अधिकारियों ने मायूसी भरे शब्दों में बताया कि अब तक कोई भी प्रगति नहीं हुई है। हम हवा में ही हाथ-पांव मार रहे है। अब तक हम इधर-उधर से जुटाए गए सुराग पर जांच कर रहे थे। वह सुराग भी खत्म हो गए हैैं। अब हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है। एक पुलिस अधिकारी का तो यहां
तक कहना है कि पुलिस के कुछ अधिकारी इस मामले में अतिरिक्त शक्तियों की मदद के लिए माहिम दरगाह पर माथा भी टेक आए है.
वाहवाही की खातिर
वारदात के तीसरे दिन पुलिस ने दो संदिग्धों मतीन उर्फ इकबाल हकेला एवं अनवर शेख को गिरफ्तार कर वाहवाही लूटने की कोशिश की, लेकिन पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक ने इन दोनों से खुद की गई पूछताछ में पाया कि किसी खबरी ने अपनी दुश्मनी निकालने के लिए इन दोनों का नाम पुलिस को बता दिया था। हालांकि इन दोनों ने भी पुलिस प्रताड़ना के डर से अपना अपराध कबूल कर लिया था। इस गिरफ्तारी के बाद मुख्यमंत्री और गृहमंत्री ने भी केस सुलझा लिए जाने का दावा कर दिया था, लेकिन जल्दी ही पुलिस को इन दोनों संदिग्धों को छोड़ना पड़ा।
विशेष जांच दल
मुख्यमंत्री के विशेष निर्देश पर क्राइम ब्रांच की आधा दर्जन से अधिक टीमें इस मामले की जांच में लगी हैं। इनके अलावा आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) एवं खुफिया विभाग की टीमें भी अपना काम कर रही हैैं। इन टीमों ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की रिकॉर्डिंग भी हासिल कर ली है, लेकिन घटना के समय तेज बरसात होने के कारण इन कैमरों से ली गई तस्वीरों में हत्यारों के चेहरे और उनकी मोटरसाइकिलों के नंबर स्पष्ट नहीं हो पा रहे है। बरसात की वजह से ही पुलिस घटना के बाद अपराधियों को पकड़ने के लिए खोजी कुत्तों की भी मदद नहीं ले पाई।
जांच के एंगिल
हत्या के कुछ दिनों पहले जे डे द्वारा तेल तस्करी पर कई खबरें छापने के कारण पुलिस दल कई तेल माफिया सरगनाओं से पूछताछ कर चुकी है। इनमें एक हत्या के मामले में पहले से जेल में बंद तेल माफिया मुहम्मद अली भी शामिल है। हालांकि इन सभी से पूछताछ में भी पुलिस को कुछ हाथ नहीं लगा है। इस हत्याकांड में पुलिस को मोबाइल काल रिकार्ड से भी ज्यादा मदद नहीं मिल पा रही है, क्योंकि हमेशा सतर्क रहने वाले जे डे अपने खबरियों से बात करने के लिए अपने मोबाइल फोन के अलावा ज्यादातर अलग-अलग पीसीओ बूथ का इस्तेमाल किया करते थे।
मीडिया पर हमले
समाज में व्याप्त कुरीतियों, बुराइयों, अंधविश्वासों, भ्रष्टाचारों और अन्य आपराधिक गतिविधियों को उजागर करने वाले खबरचियों पर होने वाले हमलों में वृद्धि चिंता का विषय है। आलम यह है कि पिछले दो साल में अकेले मुंबई में 184 पत्रकारों पर हमले किये जा चुके है। संदेशवाहक को नुकसान न पहुंचाने की मर्यादा हमारी संस्कृति का हिस्सा हुआ करती थी लेकिन अब तो ‘डोंट शूट द मैसेंजर’ सूत्रवाक्य ‘शूट द मैसेंजर’ में तब्दील हुआ दिखता है। हैरत तो तब होती है जब सरकारों और प्रशासन द्वारा इन घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता।
मारे गए पत्रकार
उमेश राजपूत: नई दुनिया (22 फरवरी 2011 को रायपुर में)
विजय प्रताप सिंह: इंडियन एक्सप्रेस, (20 जुलाई 2010 को इलाहाबाद में)
हेमचंद्र पांडेय: (स्वतंत्र) (दो जुलाई 2010 को आंध्र प्रदेश में )
विकास रंजन: हिंदुस्तान (25 नवंबर 2008 को रोसेरा, बिहार में)
जगजीत सैकिया: अमर असम (20 नवंबर 2008 को कोकराझार में)
जावेद अहमद मीर: चैनल 9 (13 अगस्त, 2008 को श्रीनगर में)
अशोक सोढ़ी: डेली एक्सेल्सियर (11 मई 2008 को सांबा में)
मुहम्मद मुस्लिुमुद्दीन: असमिया
प्रतिदिन (एक अप्रैल 2008, बाढ़पुखरी में)
अरुण नारायण देकाते: तरुण भारत (10 जून 2006, नागपुर)
प्रहलाद गोयला: असमिया खबर (छह जनवरी 2006, गोलाघाट में)
26 जून को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख खरी खरी” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
साभार : दैनिक जागरण 26 जून 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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