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कृषि योग्य भूमि का गैर कृषि कार्यों में उपयोग करने के दुष्परिणाम खाद्य सुरक्षा में भी दिखाई देंगे। उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित आठ लेन के एक्सप्रेस-वे के निर्माण और टाउनशिप निर्माण के अलावा उद्योगों, रीयल एस्टेट इत्यादि में कुल मिलाकर 23 हजार गांवों के विस्थापन की योजना है। यह राज्य के सभी गांवों का एक चौथाई आंकड़ा है। इसका मतलब यह हुआ कि उत्तर प्रदेश के अनाज उत्पादन के कुल 198 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में से एक तिहाई यानी कि 66 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि को गैर कृषि कार्यों में इस्तेमाल किया जाएगा। इनमें से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की उपजाऊ जमीन का एक बड़ा हिस्सा गायब होकर कंक्रीट के जंगलों में तब्दील हो जाएगा। एक मोटे अनुमान के मुताबिक 66 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि क्षेत्र को गैर कृषि कार्यों में उपयोग किए जाने से अनाज के उत्पादन में 140 लाख टन की कमी आएगी। इसका मतलब यह हुआ कि आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश को भयानक खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ सकता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहले ही खाद्यान्न संकट गहराता जा रहा है। वैश्विक स्तर पर वर्ष 2008 के खाद्य संकट के कारण 37 देशों में खाद्यान्न के लिए दंगे भड़क उठे थे। इसी से भविष्य की भयावह तस्वीर का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
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साभार : दैनिक जागरण 22 मई 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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