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आंदोलन के आगाज से अंजाम तक…

मुद्दा
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जन लोकपाल बिल का प्रारूप देश के कानूनविदें, प्रशासकों और जांचकर्ताओं ने तैयार किया है। लोगों के ऑनलाइन सुझावों तथा चर्चाओं के आधार पर यह कई बार संशोधित हुआ। अब तैयार प्रारूप एक तरह से आम लोगों द्वारा तैयार किया गया है।

अन्ना के आंदोलन के विरोधियों की बात जाने दीजिए, उनके समर्थकों को भी उम्मीद नहीं थी कि सब कुछ इतना जल्दी हो जाएगा। लेकिन जब वह अनशन पर बैठे और पूरे देश में उनके साथ जनसमूह जुड़ता गया, यह स्पष्ट हो गया कि यह सामान्य आंदोलन नहीं है। यह ऐसा आंदोलन है जिसका दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। इससे परिवर्तन की नई बुनियाद पड़ेगी। देश भर से इस मुहिम को मिल रहे जनता के अपार समर्थन से तो यही लगता है कि आज नहीं तो कल सरकार को जन लोकपाल कानून बनाना ही होगा।

इस अभूतपूर्व आंदोलन की शुरुआत से अंत तक की कहानी:

गुहार
दिसंबर 2010 में भ्रष्टाचार पर अंकुश लाने के लिए लोकपाल विधेयक पारित कराने की मुहिम में तेजी आई। अन्ना हजारे समेत कई प्रबुद्ध जनों ने प्रधानमंत्री से लोकपाल बिल लाने की गुहार लगाई। हालांकि इसे अनसुना कर दिया गया। थक कर अन्ना ने आमरण अनशन की घोषणा की।

मुलाकात
अन्ना के आमरण अनशन की घोषणा के बाद सरकार के कानों पर जूं रेंगी। प्रधानमंत्री ने उन्हें बैठक के लिए समय दिया। सात मार्च को प्रधानमंत्री के साथ हुई बैठक में अन्ना हजारे के साथ जन लोकपाल कानून के लिए आंदोलन कर रहे दस अन्य लोग भी थे।

दो-टूक
प्रतिनिधिमंडल के प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री ने 13 मई तक अति व्यस्त होने के चलते इस बिल को देखने का समय न होने की असमर्थता जाहिर की।

सहमति
प्रतिनिधिमंडल के काफी जोर देने पर प्रधानमंत्री ने मानसून सत्र में विधेयक पेश किए जाने का आश्वासन दिया।

कौन सा विधेयक?
प्रधानमंत्री के साथ बैठक के दौरान उन्हें बताया गया कि लोकपाल बिल का सरकारी प्रारूप बहुत खराब है। इस बिल को तैयार करने वाले मंत्रियों के समूह में कुछ मंत्रियों की भ्रष्टाचार की पृष्ठभूमि को देखते हुए बिल से कुछ उम्मीद नहीं की जा सकती। यह कानून नख-दंत विहीन होगा जिससे भ्रष्टाचार खत्म करने का मसला जस का तस बना रहेगा।

सुझाव
बैठक में मौजूद केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने सुझाव दिया कि मंत्रियों की एक उपसमिति बना दी जाए जो इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सदस्यों से दो बार वार्ता करेगी। उनसे सुझाव लेकर यह तय करेगी कि इनमें से किन-किन सुझावों को बिल में शामिल किया जाए। इसके बाद उपसमिति अपनी रिपोर्ट मंत्रियों के समूह के समक्ष रखेगी। मंत्रियों का समूह लोकपाल बिल का अंतिम मसौदा तैयार करेगा और इसे आगामी मानसून सत्र में पेश किया जाएगा।

मांग
अन्ना ने अपनी मांग रखी कि एक संयुक्त समिति का गठन किया जाए जो लोकपाल बिल का प्रारूप तैयार करे। इस समिति के आधे सदस्य नागरिक समाज से होने चाहिए। यह समिति जन लोकपाल बिल को कार्यकारी प्रारूप मानते हुए काम करे।

इंकार
इस तरह की संयुक्त समिति के गठन को लेकर सरकार को किसी तरह की कानूनी अड़चन नहीं आने वाली थी, फिर भी प्रधानमंत्री ने इस तरह की समिति को गठित करने से इंकार कर दिया। उन्होंने जोर दिया कि मंत्रियों की उपसमिति और मंत्रिसमूह ही लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करेंगे।

अपील
जन लोकपाल विधेयक को लागू किए जाने को लेकर समाज के हर क्षेत्र से लोगों द्वारा सरकार से अपील शुरू हो गई। इसी क्रम में 1983 में देश को पहली बार क्रिकेट का सरताज बनाने वाले हरियाणा हरिकेन कपिलदेव ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। पत्र में कपिल ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि देश को जन लोकपाल बिल देकर अपना नाम हिंदुस्तान के इतिहास में भ्रष्टाचार को खत्म करने वाले नेता के तौर पर दर्ज करवा लें। कई और हस्तियों ने पीएम से इसी तरह की अपील की।

मान मनौव्वल
चार अप्रैल को अन्ना अनशन के इरादे से दिल्ली पहुंचे। इसे रोकने के लिए उसी दिन सरकार ने कई स्तरों पर कोशिश शुरू कर दी। सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार समिति ने लोकपाल विधेयक के मसौदे पर विमर्श शुरू कर अन्ना को शांत करने की कोशिश की।

जंग का बिगुल
पांच अप्रैल को अन्ना अपने 35 समर्थकों के साथ संसद से चंद कदम की दूरी पर जंतर-मंतर पर ऐतिहासिक आमरण अनशन पर बैठ गए। उनके आह्वान पर देश और विदेश में भी भूख हड़ताल कर इस आंदोलन का समर्थन किया.

असर
अन्ना का तीर सीधा निशाने पर लगा। भ्रष्टाचार पर गठित मंत्रिसमूह में शामिल कृषि मंत्री शरद पवार को छह अप्रैल को हटना पड़ा। खुद पर लगे आरोपों से व्यथित अन्ना ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी और कहा कि मैं कोई बच्चा नहीं हूं जो कोई मुझे बरगलाकर अनशन पर बिठा देगा।

बढ़ता गया कारवां
दूसरे ही दिन आमरण अनशन पर बैठने वालों की तादाद 35 से बढ़कर 200 से अधिक हो गई। इस आंदोलन को समाज के सभी तबके का प्रतिनिधित्व प्राप्त होने लगा चाहे वह मुंबई की मायानगरी हो, राजनीतिक वर्ग हो या खेल या कारोबार। लेकिन अन्ना के समर्थकों ने राजनेताओं को उनके पास फटकने तक नहीं दिया।

अधूरा प्रस्ताव
लोकपाल बिल पर मिल रहे अपार जन समर्थन से सांसत में फंसती दिख रही सरकार ने सात अप्रैल को अपना रवैया बदला। अन्ना से बातचीत की कमान टेलीकॉम मंत्री कपिल सिब्बल को सौंपी गई। दोनों पक्षों की बातचीत में बिल के मसौदे को तैयार करने को लेकर सरकार और जन संगठनों की भागीदारी और समय सीमा पर रजामंदी हुई लेकिन साझा समिति के स्वरूप और अध्यक्षता को लेकर पेंच फंसा रहा। सरकार चाहती थी कि यह अनौपचारिक समिति होगी और इसकी अध्यक्षता प्रणब मुखर्जी करें जो अन्ना हजारे को मंजूर नहीं था।

सभी की जीत
शुक्रवार,आठ अप्रैल को वह घड़ी आ गई जिसका सभी को इंतजार था। अन्ना की आंधी में सरकार की दृढ़ता तिनके की तरह बिखर गई। देर शाम तक सरकार ने अनशनकारियों की सभी मांगें मान ली। शनिवार को सुबह साढ़े दस बजे अन्ना ने अपना अनशन खत्म किया।

“मै वकील होने के साथ-साथ कानून मंत्री भी रह चुका हूं। मैंने जन लोकपाल विधेयक का अध्ययन किया है। यह अब तक का सबसे बेहतरीन कानूनी दस्तावेज है। अगर यह कानून लागू कर दिया जाता है तो पांच से दस साल के भीतर भ्रष्टाचार में काफी कमी आ जाएगी।“ – शांतिभूषण (प्रसिद्ध कानूनविद्)

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साभार : दैनिक जागरण 10 अप्रैल 2011 (रविवार)
मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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