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किरण बेदी –मैगसेसे पुरस्कार प्राप्त देश की पहली महिला आइपीएस
आजादी के इन चौसठ सालों में कितनी सरकारें आईं और गईं लेकिन किसी ने भी भ्रष्टाचार से लड़ने की जिजीविषा नहीं दिखाई। हमारी इसी कमजोरी के चलते ही साल दर साल घोटाले दर घोटाले जारी रहे। हमारे राजनेताओं और नौकरशाहों ने तंत्र में सुधार के लिए कुछ नहीं किया।
अपराधियों के लिए परस्पर मददगार इस व्यवस्था में धीरे-धीरे भ्रष्टाचार जड़ें जमाने लगा। भ्रष्ट धनबली लोग सत्ता में आते गए और ईमानदार छवि वाले लोग किनारे हो गए। हालात ये हो गए कि सत्ता में ईमानदार लोगों की संख्या गिनी-चुनी रह गई जिससे ये प्रभावहीन हो गए। अब यहां बेईमान और भ्रष्ट लोगों का बोलबाला हो गया है। जनता बेचारी मूकदर्शक बनी असहाय देखती है और अन्तत: उसे भी हार मान लेना पड़ता है। इन सबका नतीजा यह हुआ कि एक पूरी नई पीढ़ी अपनी रोजाना की जिंदगी में भ्रष्टाचार को पुष्पित-पल्लवित देखते हुए जवां हुई। इनको भी लगने लगा कि यहां जल्दी अमीर बनने का या अमीर बने रहने का यही रास्ता है।
खुली अर्थव्यवस्था के बाद घोटालों और इससे बनाए गए काले धन में बेतहाशा वृद्धि हुई। आजादी के बाद के शुरुआती सालों में कुछ लाख रुपये अब करोड़ों लाख रुपये में बदल चुके हैं । काले धन की यह कमाई विदेश में देश की छवि और निष्ठा को सीधे तौर पर दागदार करती है। ईमानदारी का मूल्यांकन करने वाली ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की सूची में हमारा देश बहुत नीचे है। इस सूचकांक में हम उन देशों के साथ खड़े हैं जहां मानवाधिकारों की स्थिति बदतर है और वे मानव विकास सूचकांक में भी पिछड़े हैं ।
हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली आर्थिक अपराधों के खिलाफ प्रभावकारी नहीं है। इसकी मुख्य वजह लचर और पक्षपाती प्रवर्तन प्रणाली का होना है। हाल में हुए घोटालों ने इस प्रणाली की बड़ी आसानी से कलई खोल दी। भ्रष्टाचार के मामलों के सुबूतों को सामने लाने में मीडिया ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। इसी तरह आम नागरिकों का समूह भी भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी जंग का ऐलान करते हुए इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आइएसी) के रूप में सामने आया। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए नागरिक समूह आइएसी के प्रणेता अरविंद केजरीवाल, शांति भूषण, प्रशांत भूषण, बाबा रामदेव, स्वामी अग्निवेश, श्री श्री रविशंकर और अन्य ख्यातिप्राप्त लोग हैं । कानून विशेषज्ञों के समूह ने जन लोकपाल नामक एक ऐसे विधेयक को तैयार किया है जो वर्तमान तंत्र की सभी खामियों से निपटने की क्षमतावाला एक प्रभावकारी कानून है। इस कानून में मुकदमा चलाने, सजा देने, भ्रष्टाचार से कमाई गई दौलत की रिकवरी करने, विसलब्लोअर्स की सुरक्षा करने, मामलों की त्वरित सुनवाई, और मंत्री से संतरी किसी को भी न बख्शने जैसे असरदार प्रावधान किए गए हैं ।
महाराष्ट्र के गांधी के नाम से प्रसिद्ध अन्ना हजारे को आमरण अनशन का इसलिए आह्वान करना पड़ा क्योंकि सरकार ने एक ऐसे लोकपाल बिल का मसौदा तैयार किया है जो नख-दंत विहीन है। इस बिल में न तो रकम की रिकवरी का प्रावधान है और न ही प्रधानमंत्री को इसके दायरे में रखा गया है। लोकसभा के स्पीकर या राज्यसभा के चेयरमैन की अनुमति के बिना किसी भी शिकायत की जांच ही नहीं की जा सकती है। इसका सीधा सा मतलब है कि भ्रष्टाचार से लड़ाई में यह लोकपाल बेअसर रहेगा। यही वह कमी है जिसको दूर किया जाना चाहिए और अन्ना हजारे की अगुआई में ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ आंदोलन शुरू हो चुका है। आंदोलनकारियों की सरकार से मांग है कि लोकपाल कानून को तैयार करने के लिए संयुक्त समिति का गठन किया जाए। यानी इसमें सरकार के लोग भी हों और ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ के लोगों का भी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो। इस प्रकार ऐसे कानून का निर्माण किया जाए जिसकी सचमुच जरुरत है।
हालांकि यह आसान काम नहीं है। भ्रष्टाचार में व्यापक भागादारी वाले मंत्री और नौकरशाह कभी भी स्वैच्छिक रूप से किसी भी ऐसे कानून को नहीं बनाएंगे जिससे उन पर ही फंदा कस जाए। इसलिए हम लोगों को भ्रष्टाचार को समूल खत्म करने के लिए एक लंबे और कड़े संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए। इस सुधार के रूप में जन लोकपाल बिल एक शुरुआत है। आगे और बहुत कुछ होने वाला है।
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साभार : दैनिक जागरण 03 अप्रैल 2011 (रविवार)
मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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