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जनता द्वारा तैयार जनता के लिए बिल

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पहली बार एक विधेयक का प्रस्ताव देश के नागरिक समाज की ओर से संसद में विचार करने के लिए दिया गया है। इस विधेयक में सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों, चाहे वह प्रधानमंत्री, सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश या फिर अफसरशाही हो, के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की न केवल निष्पक्ष जांच करने की ताकत है बल्कि उन्हें दंडित भी करने की क्षमता है। इसमें लूटखसोट द्वारा अर्जित धन भी जनता को वापस दिलाने का प्रावधान किया गया है। इसलिए इसका महत्व लगभग संविधान के बराबर है। – स्वामी अग्निवेश

हांगकांग में 1974 में जन लोकपाल जैसा कानून बनाया गया था, जिससे वहां से भ्रष्टाचार समाप्त करने में कामयाबी मिली। अगर यह कानून बना दिया गया तो यहां पर भी भ्रष्टाचार को नष्ट किया जा सकता है। पारित कराने के लिए जो राजनीतिक दल इस विधेयक का समर्थन करेंगे, वे भ्रष्टाचार का खात्मा चाहते हैं और जो इसका विरोध करेंगे उनकी मंशा कुछ और ही है। – शांति भूषण

जो बिल सरकार ने तैयार किया है उसका कोई औचित्य नहीं है। उस कानून में लोकपाल को कोई अधिकार नहीं प्राप्त है। अगर लोकपाल को कुछ अधिकार देना है तो उसमें जन लोकपाल विधेयक के प्रावधानों को शामिल किया जाए। – एन संतोष हेगड़े

अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण और संतोष हेगड़े द्वारा जन लोकपाल विधेयक का मूल आधार तैयार किया गया। बाद में इस विधेयक पर अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े विद्वानों और गण्यमान्य लोगों की राय को भी इसमें शामिल किया गया। इसके अलावा देश भर में विभिन्न मंचों पर जनता की राय को भी इस विधेयक में जगह दी गई। इस तरह से यह जनता के द्वारा तैयार किया गया विधेयक बन चुका है। आइए, जानते हैं इस विधेयक के मूल स्वरूप के सूत्रधारों के बारे में।

अरविंद केजरीवाल: 43 साल के केजरीवाल आइआइटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं । 1992 में भारतीय राजस्व सेवा में आयकर आयुक्त कार्यालय में तैनात रहे। भारतीय राजस्व सेवा में साल 2000 तक काम करने के बाद सरकारी विभागों में घूसखोरी के खिलाफ लड़ाई के लिए परिवर्तन नामक संस्था का गठन किया। इस संस्था ने आयकर और बिजली जैसे सरकारी विभागों में लोगों की शिकायतों को दूर करने में बहुत मदद की। साल 2001 से यह संस्था सूचना के अधिकार और इसकेउपयोग करने के तरीके को लेकर जनता को जागरूक कर रही है। इसके प्रयासों से ही सूचना का अधिकार कानून आज आम आदमी की लाठी बनकर भ्रष्टाचार से न केवल लड़ रहा है बल्कि सरकार की जवाबदेही भी तय कर रहा है। सूचना के अधिकार पर किए गए काम पर अगस्त 2006 में अरविंद केजरीवाल को रमन मैगसेसे पुरस्कार से नवाजा गया.

प्रशांत भूषण: देश के पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण के बेटे प्रशांत भूषण भी देश के जाने-माने अधिवक्ता हैं । न्यायिक सत्यनिष्ठा और गुणवत्ता की साख बचाने के लिए 55 साल के प्रशांत भूषण ने समय-समय पर अहम मसलों को उठाया है। इन्होंने ही देश के मुख्य न्यायाधीश की बेंच को पीएफ घोटाले की सुनवाई ओपेन कोर्ट में करने पर विवश किया। बेंच इस मामले की सुनवाई चेम्बर्स में करना चाहती थी। न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई के लिए दुनिया भर में चर्चित प्रशांत भूषण जजों की नियुक्त प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की भी लड़ाई लड़ रहे हैं ।

एन संतोष हेगड़े: 71 साल के संतोष हेगड़े पूर्व लोकसभा अध्यक्ष केएस हेगड़े के पुत्र हैं । फरवरी 1984 में कर्नाटक राज्य के एडवोकेट जनरल बनाए गए और अगस्त 1988 तक इस पद पर आसीन रहे। दिसंबर 1989 से नवंबर 1990 तक इन्होंने देश के एडिशनल सॉलीसिटर जनरल की जिम्मेदारी निभाई। 25 अप्रैल 1998 को ये फिर से सॉलीसिटर जनरल ऑफ इंडिया नियुक्त किए गए। आठ जनवरी 1999 को एन संतोष हेगड़े सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश बने। जून 2005 में वे इस पद से सेवानिवृत्त हुए। तीन अगस्त 2006 को पांच साल के कार्यकाल के लिए इनको कर्नाटक का लोकायुक्त बनाया गया।

जेएम लिंगदोह: देश के उत्तरी राज्य मेघालय के खासी जनजाति से संबंध रखने वाले जेम्स माइकेल लिंगदोह एक जिला जज के बेटे हैं । दिल्ली से अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरी करने के बाद महज 22 साल की आयु में वह आइएएस बने। शीघ्र ही वे अपने पेशे के प्रति ईमानदारी बरतने और सच्चाई को लेकर अडिग रहने वालों में शुमार किए जाने लगे। इन्होंने राजनेताओं और स्थानीय अमीरों की जगह दबे-कुचले और असहाय तबके को प्रमुखता दी। 1997 में ये देश के चुनाव आयुक्त बने। 14 जून 2001 को इन्हें देश का मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया। सात फरवरी 2004 तक इन्होंने कई प्रदेशों में सफल चुनाव कराकर अपनी सफलता का परिचय दिया। साल 2002 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के सफल आयोजन से वहां लोगों ने निडर होकर अपने मतों का प्रयोग किया। गुजरात दंगों के तुरंत बाद वहां चुनाव कराने की मांग को इन्होंने खारिज कर दिया। दंगों से विस्थापित परिवारों और वहां व्याप्त डर के माहौल का हवाला देते हुए अंत तक ये अपने निर्णय पर अडिग रहे। 2003 में सरकारी सेवा क्षेत्र में इनके काम के लिए रमन मैगसेसे पुरस्कार से नवाजा गया।

स्वामी अग्निवेश: 72 साल के स्वामी अग्निवेश ख्यातिप्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता हैं । 1977 में ये हरियाणा विधानसभा के सदस्य बने। 1979 से 1982 तक ये वहां के शिक्षा मंत्री भी रहे। 1981 में स्थापित अपने संगठन बांडेड लेबर लिबरेशन फ्रंट द्वारा इन्होंने बंधुआ मजदूरी को खत्म करने का अभियान चलाया। जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में इन्होंने दासता और बंधुआ मजदूरी के आधुनिक स्वरूपों का मसला जोरशोर से उठाया। चार सितंबर 1987 को राजस्थान के देवराला में हुए रूपकुंवर सती कांड पर इन्होंने उस गांव के बाहर धरना शुरू किया। बाद में इनके प्रयासों से ही इस कुप्रथा को रोकने का कानून संभव हो सका। हाल में स्वामी अग्निवेश शांति बहाली के लिए नक्सलियों और सरकार के बीच मध्यस्थ भी बने।

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साभार : दैनिक जागरण 03 अप्रैल 2011 (रविवार)
मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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