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इस स्थिति के लिए तीन स्थितियां जिम्मेदार हैं लेकिन अब तक नीति-नियंताओं ने सबसे ज्यादा ध्यान उस वजह पर दिया है जो वस्तुत: कोई वजह ही नहीं है।
ढांचागत वजहें
गरीबी, भ्रष्टाचार, सभी को समान खाद्य उपलब्धतता को बढ़ावा देने वाली राष्ट्रीय नीतियों का अभाव, पर्यावरणीय अपक्षय, कारोबारी अवरोध, अपर्याप्त कृषि विकास, जनसंख्या वृद्धि, अपर्याप्त शिक्षा, सामाजिक और लैंगिक असमानता, खराब स्वास्थ्य स्थिति, सांस्कृतिक संवेदनहीनता
अस्थाई वजहें
महंगाई: यह एक अस्थाई कारण है।
ङ्क्तरूस और अर्जेंटीना में जबरदस्त सूखे एवं पाकिस्तान और कनाडा में आई बाढ़, अपनी आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न देशों द्वारा खाद्य पदार्थों के निर्यात पर लगी पाबंदी, जमाखोरों द्वारा मुनाफा कमाने के लिए अनाज का भारी भंडारण
अप्रासंगिक वजहें
ङ्क्तकुछ लोग खाद्य पदार्थों के वायदा कारोबार को भी इसका जिम्मेदार मानते हैं । यह सही भी है कि वायदा कारोबार में वृद्धि ने खाद्य पदार्थों की कीमतों को ज्यादा अस्थिर किया है हालांकि इस तथ्य के बहुत कमजोर प्रमाण मौजूद हैं । बहरहाल इस तरह के कारोबार द्वारा लंबे समय तक कीमतों को ऊपर नहीं रखा जा सकता है क्योंकि हर खरीदारी के उपरांत उसको बेचना भी जरूरी होता है।
ङ्क्तमाना जाता है कि तेजी से विकास कर रहे भारत और चीन में हर तरह के खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ी है लेकिन अभी तक तो इन दोनों देशों के किसान ही उनकी जरूरत को पूरा करने लायक खाद्य पदार्थों का उत्पादन कर रहे हैं । इसलिए इन देशों को ज्यादा मात्रा में खाद्यान्नों के आयात की जरूरत नहीं पड़ती।
बड़ा एजेंडा
2009 में औद्योगिक देशों ने जी-8 सम्मेलन में वैश्विक वित्तीय संकट के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा को अपनी वरीयता सूची में शीर्ष पर रखा है। इसके तहत इन देशों ने अगले तीन साल में कृषि के लिए 20 अरब डॉलर की राशि एकत्र करने का भरोसा जताया है। आमतौर पर अबतक स्वास्थ्य और विकास क्षेत्र में लगी दुनिया की सबसे अमीर चैरिटी संस्था गेट्स फाउंडेशन दुनिया की भूख शांत करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
बचाओ, न करो बर्बाद
दुनिया में पैदा किए जाने वाले खाद्य पदार्थ में से करीब आधा हर साल बिना खाए सड़ जाता है। गरीब देशों में इनकी बड़ी मात्रा खेतों के नजदीक ही बर्बाद हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार इस बर्बादी को आसानी से आधा किया जा सकता है। अगर ऐसा किया जा सके तो यह एक तरह से पैदावार में 15-25 फीसदी वृद्धि के बराबर होगी। अमीर देश भी अपने कुल खाद्यान्न उत्पादन का करीब आधा बर्बाद कर देते हैं लेकिन इनके तरीके जरा हटकर होते हैं । अध्ययनों के अनुसार अमेरिका और ब्रिटेन की दुकानों की चौथाई खाद्य वस्तुएं सीधे कूड़े के ढेर में जाती हैं । अमेरिका में हर साल बिना खाए फेंके जाने वाले खाद्य पदार्थों की मात्रा 430 लाख टन है जबकि ब्रिटेन में यह आंकड़ा 40 लाख टन का है। यदि सभी धनी देश इसी दर से खाद्य वस्तुओं की बर्बादी करते हों, (प्रति व्यक्ति सालाना 100 किलो ) तो कुल बर्बाद किए जाने वाले खाद्य पदार्थों की मात्रा सालाना 10 करोड़ टन सालाना होती है। यह मात्रा दुनियाभर में हर साल कुल मांस आपूर्ति की एक तिहाई है।
ऊर्जा बड़ी जरूरत या भोज्य पदार्थ
तमाम देश अपनी कुछ ऊर्जा जरूरतों में अहम हिस्सेदारी नवीकृत ऊर्जा (खासकर बायोफ्यूल्स) से पूरी करने का लक्ष्य तय कर रहे हैं । ये बायोफ्यूल्स (ईथाइल एल्कोहल) मक्का और गन्ने से बनाए जाते हैं । महत्वाकांक्षी लक्ष्य के तहत ब्राजील, जापान, इंडोनेशिया, और यूरोपीय संघ ने 2020 तक यातायात क्षेत्र की 10 फीसदी ऊर्जा आपूर्ति बायोफ्यूल्स से पूरी करने का विचार किया है। एफएओ के अनुसार इन सभी बायोफ्यूल्स के निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए दुनिया के कुल पैदा किए जा रहे अनाज के दस फीसदी हिस्से को बायोफ्यूल्स में तब्दील करना होगा
70 फीसदी: 2050 तक दुनिया के सभी लोगों की भूख शांत करने के लिए मौजूदा कृषि पैदावार में जरूरी वृद्धि दर. वैश्विक आबादी में वृद्धि की तुलना में 1960 से पहली बार दुनिया की दो प्रमुख फसलों चावल और गेहूं की पैदावार में गिरावट.
2 गुना: 2050 में नौ अरब लोगों की भूख शांत करने के लिए मौजूदा कृषि उत्पादन में दोगुनी वृद्धि करनी होगी.
30-50 फीसदी: गरीब और अमीर देशों में कुल पैदा किए जाने वाले खाद्य पदार्थों में से बिना उपयोग किए सड़ने वाले खाद्यान्न की हिस्सेदारी.
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साभार : दैनिक जागरण 20 मार्च 2011 (रविवार)
मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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