Menu
blogid : 4582 postid : 247

एक पहलू यह भी…

मुद्दा
मुद्दा
  • 442 Posts
  • 263 Comments

Jagran Muddaपाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन यूरोपियन आर्गनाइजेशन ऑफ पाकिस्तानी माइनॉरिटीज के अनुसार पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों की पांच फीसदी अनुमानित आबादी इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। यहां पर कुल आबादी का पांच से छह फीसदी केवल ईसाई समुदाय के होने का अनुमान है। पाकिस्तान में जनगणना के दौरान जानबूझ कर अल्पसंख्यकों की आबादी को कम दिखाया जाता है जिससे उनकी बड़ी भागीदारी से रोका जा सके।

अल्पसंख्यकों की विविधता

अफगान: 1979 में अफगानिस्तान पर रूसी हमले के बाद से लाखों की संख्या में अफगान शरणार्थी पाकिस्तान में रह रहे हैं । एक ताजा अनुमान के मुताबिक अफगान शरणार्थियों की संख्या करीब 30-40 लाख है। इनमें बड़ी तादाद में लोगों ने वैध या अवैध तरीके से पाकिस्तानी राष्ट्रीय पहचान पत्र हासिल कर लिया है या फिर पाकिस्तानी नागरिक से शादी कर ली है।

अहमदी: पाकिस्तान के 1973 के संविधान के अनुसार इस्लाम के इस छोटे से संप्रदाय को इस्लाम से बहिष्कृत कर रखा गया है। 20 जून 2001 को परवेज मुशर्रफ के राष्ट्रपति बनने के बाद अहमदिया पंथ के लोगों को सेना और अन्य सरकारी विभागों में तरक्की देनी शुरू की गई।


ईसाई: पाकिस्तान का यह सबसे बड़ा धार्मिक अल्पसंख्यक समूह कई संप्रदायों में विभक्त है। एंग्लीकंस, प्रोटेस्टैंट्स, कैथोलिक्स, आर्मेनियन आर्थोडॉक्स, नेस्टोरियंस, और असीरियंस जैसे ईसाई संप्रदाय इनमें शामिल हैं । पाकिस्तानी समाज में हर स्तर पर मौजूद ईसाई समुदाय सरकार, नौकरशाही और कारोबार में उच्च पदों पर तैनात हैं ।

हिंदू और सिख: माना जाता है कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय हिंदू और सिखों की पाकिस्तान में आबादी आज की तुलना में 10-15 फीसदी अधिक थी। आज इन अल्पसंख्यकों की आबादी घटकर दो फीसदी से भी कम हो चुकी है। पाकिस्तान में इन अल्पसंख्यकों की मौजूदगी सर्वाधिक रूप से सिंध प्रांत के दक्षिण पूर्व में है।

कलश: यह हिंदूकुश का जातीय समूह नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस में निवास करता है। कलश भाषा बोलने वाले इस समूह की अपनी एक विशिष्ट संस्कृति है जो अन्य जाति समूहों से एकदम अलग है।

चित्राली: खैबर पख्तूनखवा के सबसे उत्तरी हिस्से में स्थित चित्राल में रहने वाले अधिकांश लोग खो जातीय समूह से संबंध रखते हैं लेकिन यहां दस से ज्यादा जातीय समूह और भी मौजूद हैं । हालांकि अपनी विविधतापूर्ण जातीय, धार्मिक और भाषाई पृष्ठभूमि के बावजूद भी इनमें चित्राली होने का एक मजबूत बोध रहता है। एक सार्वजनिक संस्कृति को साझा करने वाले इन लोगों की आम भाषा खोवर है।

ईशनिंदा यानी मौत को दावत!

Shahbaz_Bhattiमुस्लिम बहुल देश पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के दमन को एक तरह से तर्कसंगत ठहराने के लिए प्रयोग किया जाता है। अन्य बड़े मुस्लिम देशों की तुलना में यहां यह कानून अधिक सख्त है। इसमें इस्लामिक मान्यताओं के खिलाफ आवाज उठाने वाले के लिए सजा का प्रावधान है। यहां की आपराधिक दंड संहिता की धारा 295 में कहा गया है कि यदि कोई इस्लामी मान्यताओं, पैगंबर मुहम्मद या कुरान की निंदा करता है तो उसको जुर्माना से लेकर मृत्युदंड की सजा दी जा सकती है।

आतंक की दास्तां

शहबाज भट्टी हत्याकांड: दो मार्च को इस्लामाबाद में पाकिस्तानी कैबिनेट में शामिल एकमात्र ईसाई शहबाज भट्टी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। 42 साल के भट्टी देश के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री थे। ईशनिंदा कानून में सुधार की वकालत करने के लिए लंबे अर्से से इनको धमकियां मिल रही थी.

सलमान तासीर हत्याकांड: चार जनवरी 2011 को इस्लामाबाद में पंजाब प्रांत के प्रभावशाली गवर्नर रहे सलमान तासीर पर उनके ही अंगरक्षक ने गोलियां बरसाकर मौत की नींद सुला दिया। बाद में इस अंगरक्षक ने हत्या की वजह गवर्नर द्वारा ईशनिंदा कानून का विरोध किया जाना बताया.

हिंदुओं पर हमले: मानवाधिकार संगठनों के अनुसार पिछले दो सालों के दौरान अल्पसंख्यक हिंदुओं पर होने वाले हमलों में तेजी आई है। इनके मंदिरों और पुजारियों को निशाना बनाया जा रहा है। ऐसी घटनाओं के लिए सिंध प्रांत शीर्ष पर है। पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग भी मानता है कि वहां के हिंदू खतरे में हैं । बड़ी संख्या में वहां के हिंदू अल्पसंख्यक अपना घर-बार छोड़कर भारत के विभिन्न शहरों में शरण लेने को बाध्य हैं ।

ईसाइयों पर हमले: वहां के गिरिजाघरों और मिशन स्कूलों पर सैकडों बार हमले किए गए। पुलिस द्वारा मामलों को पंजीकृत न करने से ज्यादातर मामले प्रकाश में आ ही नहीं पाते।

ङ्क्तअगस्त 2009 में गोजरा के निकट एक ईसाई गांव में हिंसक भीड़ ने धावा बोलकर सात अल्पसंख्यकों की जान ले ली। हमले में कई घायल हुए। करीब सौ से ज्यादा मकानों और दुकानों में लूटपाट की गई

ङ्क्तजुलाई 2009 में कसूर के नजदीक एक ईसाई गांव में भीड़ ने हमला कर कई लोगों को फांसी पर लटका दिया

सिखों पर हमले: 21 फरवरी 2010 को पाकिस्तानी तालिबान ने दो सिखों का सिर कलम कर दिया।

ङ्क्तमार्च 2009 में औरकजई एजेंसी में रहने वाले 25 सिख परिवारों को तालिबान ने धमकी दी कि या तो इस्लाम स्वीकार कर जिहाद में शामिल हों अन्यथा पांच अरब रुपये अपनी सलामती के लिए चुकाओ.

अहमदियों पर हमले

मई 2010 में लाहौर में अहमदियों की दो मस्जिदों पर बंदूकधारियों ने ताबड़तोड़ हमले किए। घटना में 80 से ज्यादा लोग मारे गए.

13 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “दरकता पाकिस्तान” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

13 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “विफल राष्ट्र बनने की ओर” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

13 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “हम हिंदू हैं, कहां जाएं, वहां हालात ठीक नहीं” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

13 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “पाकिस्तान में अल्पसंख्यक सुरक्षा मसला” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

साभार : दैनिक जागरण 13 मार्च 2011 (रविवार)
मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh