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विफल राष्ट्र बनने की ओर

मुद्दा
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uma singhउमा सिंह

(जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में प्रोफेसर और पाकिस्तान मामलों की विशेषज्ञ)

पाकिस्तान समाज अब तक के सबसे विस्फोटक दौर से गुजर रहा है। पाकिस्तान की सुरक्षा एवं स्थिरता के संकट ने उसके राष्ट्र के रूप में विफल हो जाने के खतरे को बढ़ा दिया है। युवाओं में बढ़ती कट्टरता और कट्टरपंथी समूहों का तेजी से उभरना आज के पाकिस्तान की सबसे बड़ी चिंता का विषय है। धार्मिक दक्षिणपंथी ताकतें सत्ता हथियाने के लिए आम जनता को गुमराह कर रही हैं। दूसरी ओर लंबी अवधि के सैन्य शासन ने भी जनता को राजनैतिक रूप से विमुख करने का काम किया है। नतीजतन जनरल जिया उल हक और परवेज मुशर्रफ के दौर में विकल्प के रूप इस्लामी ताकतें तेजी से पनपीं। पाकिस्तान को सबसे ज्यादा झटका तब लगा जब सामाजिक और आर्थिक रूप से उपेक्षित लोगों में इन कट्टपंथी धार्मिक समूहों को एक तरह की वैधानिकता हासिल हो गई।

पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी की हत्या यह साबित करने के लिए काफी है कि पाकिस्तान इस्लामिक कट्टरपंथियों की आंधी को रोकने में असहाय है। इन दोनों ने मध्ययुगीन ईशनिंदा कानून का विरोध किया था। जिसे तालिबानी तत्व विशुद्ध इस्लामिक देश बनाने की पहली शर्त मानते हैं। ये हत्याएं इस समाज के पैदाइशी अंतर्विरोधों को रेखांकित करती हैं। जो एक ओर कानून को विचारधारात्मक स्तर पर चुनौती देता है तो दूसरी ओर नियम कानून के आधार पर शासन की कामना भी करता है। व्यापक संदर्भों में देखा जाए तो ‘चरमपंथ समर्थक’ और ‘चरमपंथ विरोध’ के मुद्दे पर ही राजनीतिक गठबंधन इस वक्त वहां की राजनीतिक धुरी हैं।

पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय पर की जाने वाली हिंसा का सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। इस संबंध में जो भी आकलन किया गया है वह गैर मुस्लिम संगठनों ने किया है। सात नवंबर 2010 को पंजाब प्रांत की एक ईसाई महिला आसिया बीबी को ईशनिंदा कानून का विरोध करने के कारण मौत की सजा सुनाई गई। देश के इतिहास में इस वजह से मौत की सजा पाने वाली वह पहली महिला हैं। इसी तरह ईशनिंदा कानून के कई प्रावधानों के तहत पूरे पाकिस्तान में अहमदी समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है। तालिबान ने एक बयान जारी कर अहमदी और शिया समुदाय को इस्लाम और आम लोगों का दुश्मन करार दिया है। तालिबान ने इन समुदायों पर हमला करने वाले लोगों को बधाई दी है।

दरअसल जनरल जिया के समय से ही देश में इस्लामिक चरमपंथ को बढ़ावा मिला। धीरे-धीरे ये लोग राजनीति की मुख्यधारा की सबसे महत्वपूर्ण आवाज हो गए। यदि पाकिस्तान सरकार अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वहन करने में नाकाम रहती है तो इस बात की प्रबल संभावना है कि सत्ता कट्टरपंथियों के हाथों में चली जाएगी। ऐसे में परमाणु हथियारों से लैस पाकिस्तान दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाएगा क्योंकि ये उन्मादी कट्टरपंथी इसका गलत इस्तेमाल कर सकते हैं। पाकिस्तानी सेना की निष्क्रियता बताती है कि सेना के भीतर भी कट्टरपंथी लोग हावी हो रहे हैं। सैन्य प्रमुख अशफाक कियानी ने कहा है कि सेना के कई तत्वों के मन में सलमान तासीर और शहबाज भट्टी के हत्यारों के प्रति सहानुभूति है। सलमान तासीर की बेटी ने कहा भी है कि पाकिस्तान में क्रांति की नहीं विकास की जरूरत है।

हाल में यहां जिहादी लेखन लगातार बढ़ता जा रहा है। ये जिहादी साहित्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा का प्रचार कर रहा है। इस साहित्य में शिया, अहमदी और आगा खानी समुदाय के लोगों के खिलाफ जहर उगला जाता है। चरमपंथी जमात-उद-दावा (लश्कर-ए-तैयबा से संबंधित) संगठन ने दावा किया है कि उसकी मजाला-अल-दावा मैगजीन की हर महीने दो लाख प्रतियां बिक जाती हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पाकिस्तान सरकार जिन चीजों की मुखालफत करती है, इस जिहादी साहित्य में उन्हीं चीजों का समर्थन करते हुए उनको जायज ठहराया जाता है। पाकिस्तान सरकार इन जिहादी संगठनों पर लगाम कसने में कमजोर साबित हो रही है।

13 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “दरकता पाकिस्तान” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

13 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “हम हिंदू हैं, कहां जाएं, वहां हालात ठीक नहीं” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

13 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “एक पहलू यह भी…” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

13 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “पाकिस्तान में अल्पसंख्यक सुरक्षा मसला” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

साभार : दैनिक जागरण 13 मार्च 2011 (रविवार)
मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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