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द्रमुक की कठिन डगर

मुद्दा
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 M. Karunanidhiदेश में अब तक के सबसे बड़े 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में द्रमुक पार्टी के फंसने और सीट बंटवारे की खींचतान में कांग्रेस से गठबंधन टूटने के साथ ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.करुणानिधि का छठी बार सत्ता में लौटना मुश्किल हो सकता है। पिछले विधानसभा चुनाव में इस गठबंधन के शानदार प्रदर्शन से ही करुनानिधि की मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी संभव हो सकी थी। हालांकि सत्ता विरोधी लहर रोकने की कोशिशों के चलते द्रमुक ने पीएमके और वीसीके पार्टियों के साथ समझौते कर उनको क्रमश: 31 एवं 10 सीटें देने का फैसला किया है।

विपक्षी दल अन्नाद्रमुक ने भी बराबर का मजबूत गठबंधन बना लिया है। अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जे. जयललिता की फिल्म स्टार विजयकांत की पार्टी एमडीएमके के साथ सीट बंटवारे पर समझौता हो चुका है। एमडीएमके का राजनीतिक पदार्पण पिछले विधानसभा चुनाव (2006) में हुआ था। इसने अच्छा प्रदर्शन करते हुए आठ प्रतिशत वोट हासिल किए थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में इसने द्रमुक एवं अन्नाद्रमुक पार्टियों के वोटों में सेंधमारी करते हुए 10.8 प्रतिशत वोट हासिल किए। यह पार्टी दलितों को भी लुभाने में भी सफल रही है।

2जी स्पेक्ट्रम घोटाले और करुणानिधि के पारिवारिक सदस्यों की अलोकप्रियता के चलते प्रदेश की राजनीति में जयललिता एक बार फिर उभर कर सामने आ गई हैं। अपने परंपरागत वोटबैंक के अलावा शहरी क्षेत्रों में भी उनका जनाधार बढ़ा है। राज्य के तटीय इलाकों में श्रीलंका नेवी द्वारा तमिल मछुआरों को मारा जाना एक प्रमुख मुद्दा है। जयललिता इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश भी कर रही हैं।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सत्ता विरोधी लहर, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला और विजयकांत के करिश्मे की बदौलत जयललिता सत्ता में आने के ख्वाब देख रहीं है तो द्रमुक अपने जनाधार को बरकरार रखने की कोशिशों में लगा है।

tamil naduक्षत्रप

द्रमुक: पांच बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे एम करुनानिधि की यह पार्टी एक तरह से उनकी पारिवारिक कंपनी है। पारिवारिक झगड़े और 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला इस चुनाव में इस दल के नतीजों पर भारी पड़ सकते हैं ।

अन्नाद्रमुक: यह राजनीतिक दल भी इसकी सुप्रीमो जे जयललिता से शुरू होकर उन्हीं पर खत्म हो जाता है। इस प्रदेश में ऐतिहासिक रूप से देखे जाने वाले क्रमागत सत्ता विरोधी लहर के चलते यह दल कुर्सी हथियाने को लेकर बुरी तरह आशान्वित है।
डीएमडीके: अभिनेता विजयकांत के नेतृत्व वाला यह दल इस चुनाव में बड़ा खिलाड़ी बनकर उभर सकता है। जयललिता इस दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ने को सोच रही हैं ।

प्रमुख चुनावी मुद्दे: इस विधानसभा चुनाव में नतीजे अपने हक में करने के लिए सत्तारूढ़ द्रमुक लंबे समय से जनता में मुफ्त उपहार बांट रहा है। वहीं अन्नाद्रमुक इसे सत्ता हटाने में 2 जी घोटाले महंगाई और द्रमुक के भाई-भतीजावाद को मुद्दा बना सकता है।

रकबा: 130000 वर्ग किमी
आबादी: 6.24 करोड़
जनसंख्या घनत्व: 480 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी
शिशु मृत्युदर: 35.0
साक्षरता दर: 73.5
प्रति लाख जनसंख्या पर पुलिसबल: 67.5

 

राज्य विधानसभा चुनाव में बंटे विपक्ष का लाभ उठाने में जुटी है कांग्रेस

 

assamविधानसभा चुनावों वाले प्रदेशों में शायद यह अकेला राज्य होगा जहां सत्ताधारी पार्टी की स्थिति मजबूत दिखेगी। कांग्रेस जहां सत्ता बरकरार रखते हुए लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के लिए लड़ेगी वहीं विपक्षी दलों के लिए चुनौती अपना आधार बनाए रखने की है।

असम में त्रिकोणीय मुकाबला कांग्रेस के लिए फायदेमंद हो सकता है। कभी साथी रहे भाजपा और अगप में अब तक कोई स्पष्ट तालमेल नहीं बन पाया है। कुल 126 में से लगभग 30 सीटों पर अल्पसंख्यकों की ताकत को देखते हुए बड़ा घटक भाजपा से दूर दूर रहना चाहता है।

क्षत्रप

असम गण परिषद (अगप): प्रफुल्ल कुमार महंत के नेतृत्व वाला दल.

एयूडीएफ: इत्र व्यवसायी बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाले इस दल ने 2006 के चुनाव में 10 सीटें झटकी थीं। इस बार पार्टी प्रमुख भूमिका में होगी। कांग्रेस और असम गण परिषद दोनों इसे लुभाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं ।

रकबा: 78,438 वर्ग किमी
आबादी: 2,66,55,528
जनसंख्या घनत्व: 340 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी
साक्षरता दर: 64.28 फीसदी
लिंगानुपात: 965

 

बाजी पलटने को बेताब है यूडीएफ

 

Keralaकेरल से लाल झंडे की वामपंथी लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) सरकार उखड़ती तो दिख रही है, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व वाले विपक्षी यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के लिए सत्ता तक पहुंचने का रास्ता इतना आसान भी नहीं है। इसकी मुख्य वजह दिल्ली की यूपीए से लेकर तिरुअनंतपुरम तक यूडीएफ के नेताओं पर भ्रष्टाचार व घोटाले के आरोप हैं। राज्य के कई नेता यौन उत्पीड़न और भ्रष्टाचार के मामले में फंसे हुए हैं, जो उनकी मुश्किलें बढ़ा सकते है। वहीं दूसरी तरफ राज्य में स्थानीय निकाय और पंचायत के चुनावों में एलडीएफ का सूपड़ा साफ हो गया है। मतदाताओं के बदलते इस रुझान से आगामी चुनाव के संभावित नतीजों को लेकर एलडीएफ में जबर्दस्त घबराहट है।

सत्तारूढ़ एलडीएफ सरकार की नींद खुल गई है। वह अपनी खोई राजनीतिक जमीन को फिर पाने की जिद्दोजहद में दिनरात एक करती दिख रही है। दूसरी तरफ सत्ता से बाहर होने का दंश झेल रहे यूडीएफ के घटक दल एकजुट हो गए हैं। स्थानीय चुनावों में शानदार सफलता के बाद तो उन्हें सत्ता सस्ते में मिलती दिखने लगी है।

केरल के क्षत्रप

यूडीएफ: कांग्र्रेस के नेतृत्व में.

एलडीएफ: शीर्ष नेताओं मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन और पी विजयन में जगजाहिर मतभेद के चलते सीपीएम नेतृत्व का यह गठबंधन कमजोर पड़ रहा है.

रकबा: 38,863 वर्ग किमी
आबादी: 3,18,41,374
लिंगानुपात: 1058
जनसंख्या घनत्व: 819 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी
शिशु मृत्युदर: 12
प्रति व्यक्ति आय: 27,048 रुपये
साक्षरता दर: 90.92 (2001 के आंकड़े)

 

पुडुचेरी- 30 कुल सीटें

 

कांग्रेस – 2006 में 10 (29.91% वोट) – 2001 में 11 (22.78% वोट)

एआइडीएमके – 2006 में 3 (16.04% वोट) – 2001 में 3 (12.56% वोट)

डीएमके – 2006 में 7 (12.59% वोट) – 2001 में 7 (17.54% वोट)

अन्य – 2006 में 10 (41.46% वोट) – 2001 में 9 (47.12% वोट)

06 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “बह रही बदलाव की बयार!” पढ़ने के लिए क्लिक करें

06 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “बदल सकता है निजाम!” पढ़ने के लिए क्लिक करें

06 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे” पढ़ने के लिए क्लिक करें

साभार : दैनिक जागरण 06 मार्च 2011 (रविवार)
मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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