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बह रही बदलाव की बयार !

मुद्दा
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Jaylalitaपांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की रणभेरी बज चुकी है। सभी राजनीतिक दल जनता को लुभाने की व्यूहरचना में व्यस्त हो गए हैं लेकिन पब्लिक सब जानती है! महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे बड़े मुद्दों से दो-चार हो रही जनता भी इन चुनावों में राजनीतिक दलों को सबक सिखाने को खम ठोंके तैयार खड़ी है। इन पांच राज्यों में से असम और पुडुचेरी में कांग्रेस पार्टी की सत्ता है तो तमिलनाडु की कुर्सी पर केंद्र में इसकी सहयोगी पार्टी डीएमके विराजमान है। इसीलिए इन चुनावों में कांग्र्रेस पार्टी की साख सबसे ज्यादा दांव पर लगी हुई है। दूसरे स्थान पर जिनकी साख सबसे ज्यादा दांव पर लगी हुई है, वे वाम दल हैं।

पश्चिम बंगाल और केरल में इन दलों का आधिपत्य है। हालांकि चुनावों के नतीजे वही होंगे जो मतदाता चाहेंगे लेकिन इतना तो तय है कि आने वाले दिनों में देश की राजनीति की दशा और दिशा तय करने में इनका अहम योगदान होगा। केंद्र सरकार और उसके सहयोगियों के लिए लिटमस टेस्ट की तरह साबित होने जा रहे ये चुनाव बड़ा मुद्दा हैं।

आगामी पांच विधानसभाओं के चुनाव देश में वामपंथी राजनीति के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं । वामपंथी गठबंधन के दोनों प्रमुख राज्य पश्चिम बंगाल व केरल दांव पर हैं। मुकाबले में कांग्रेस के नेतृत्व वाला संप्रग है जो अपनी साख व रसूख बरकरार रखने के लिए संघर्षरत है। भाजपा नेतृत्व वाला राजग इन चुनावों में पूरी ताकत से उतर तो रहा है, लेकिन वह असम को छोड़कर बाकी राज्यों में तो सिर्फ खाता खोलने के लिए ही संघर्ष करता नजर आएगा। एक तरह से देश में तीसरी ताकत के वजूद के लिए ये चुनाव परिणाम काफी महत्वपूर्ण साबित होंगे।

Mamata पांच राज्यों (चार राज्य व एक केंद्र शासित राज्य पुडुचेरी) में सबसे अहम पश्चिम बंगाल है, जहां 34 साल से वामपंथी दलों का अखंड राज चल रहा है। देश के अन्य किसी भी राज्य में इतने लंबे समय तक कोई एक दल या एक गठबंधन लगातार सत्ता में नहीं रहा है। लेकिन इस बार हालात बदले हुए हैं । ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव में वामपंथी दलों को गहरा झटका दिया था। ऐसे में माकपा और उसके सहयोगी दलों के लिए बंगाल का लाल दुर्ग बचा पाना सबसे मुश्किल है। माहौल भांपकर ममता के सामने कांग्रेस ने भी अपने को पीछे कर लिया है और गठबंधन में सीटों का मामला पूरी तरह ममता पर छोड़ दिया है। भाजपा यहां पर सभी सीटों पर उतरने तो जा रही है, लेकिन उसका लक्ष्य महज खाता खोलना भर है।

दूसरा बड़ा राज्य तमिलनाडु हैं, जहां सत्ता की लड़ाई दो क्षेत्रीय दलों द्रमुक व अन्नाद्रमुक के गठबंधन के बीच है। कांग्रेस यहां द्रमुक के छोटे भाई की भूमिका में ही रहेगी। राज्य का माहौल व 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की मार झेल रही द्रमुक के लिए सत्ता बरकरार रख पाना बेहद मुश्किल लग रहा है। जयललिता द्रमुक व कांग्रेस को नेस्तनाबूद करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। भाजपा यहां पर भी सभी सीटों पर ही लड़ेगी, लेकिन पश्चिम बंगाल की तरह यहां भी उसकी जिद्दोजहद सिर्फ विधानसभा में एक अदद सीट से खाता खोलने भर की होगी। पुडुचेरी की राजनीति तमिलनाडु के साथ ही चलती है। इस केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा के लिए भी द्रमुक व अन्नाद्रमुक में ही संघर्ष रहेगा।

केरल में भी हालात लगभग पश्चिम बंगाल की तरह ही हैं। यहां भी वाम दलों की सरकार खतरे में हैं । माकपा के दो बड़े नेताओं बी एस अच्युतानंदन व राज्य माकपा के सचिव एम विजयन के बीच लगातार जारी संघर्ष ने सूबे में पार्टी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। राज्य में विपक्षी कांग्रेस नेतृत्व वाला संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा फिलहाल सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा के मुकाबले में लाभ की स्थिति में है। भाजपा यहां पर भी शून्य की स्थिति में है और उसने पूरी ताकत कासरगोड व त्रिवेंद्रम में लगा रखी है, जहां से दक्षिण के इस राज्य में पहली बार खाता खोला जा सके।

सबसे रोचक व कांटे का चुनाव असम में है। 126 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को इस बार असम गण परिषद के साथ भाजपा से भी मुकाबला करना पड़ रहा है। कांग्रेस के लिए लाभ की एक मात्र स्थिति अगप व भाजपा का अलग-अलग चुनाव मैदान में उतरना है। भाजपा यहां पर 30 सीटों का लक्ष्य सामने रख कर चल रही है। पिछली बार उसके दस विधायक जीते थे, लेकिन बाद में चार को राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ देने पर बाहर कर दिया गया था।

चुनाव तिथि

4, 11 अप्रैल-असम
18, 23, 27 अप्रैल एवं 3, 7, 10 मई-पश्चिम बंगाल
13 अप्रैल-पुडुचेरी
13 अप्रैल-केरल
13 अप्रैल-तमिलनाडु

पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा अपनी प्रामाणिक उपस्थिति दर्ज कराने के लिए चुनाव लड़ेगी। असम में भाजपा की कोशिश रहेगी कि नई सरकार में उसकी भूमिका सुनिश्चित हो। पश्चिम बंगाल व दक्षिण के तीनों राज्यों में भी भाजपा अपनी जगह बनाने की कोशिश करेगी।

-रविशंकर प्रसाद (महासचिव व मुख्य प्रवक्ता भाजपा)

विधानसभा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन को कमतर करके आंकना उचित नहीं है। लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन के आधार पर विधानसभा चुनावों के बारे में अटकलें नहीं लगाई जा सकती हैं। महंगाई, भ्रष्टाचार और घोटालों की भरमार से कांग्रेस की अगुवाई वाले संप्रग के घटक दल भारी दबाव में रहेंगे।

-नीलोत्पल बसु (माकपा नेता)

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06 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे” पढ़ने के लिए क्लिक करें

साभार : दैनिक जागरण 06 मार्च 2011 (रविवार)
मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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