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न्यायिक सक्रियता
न्यायपालिका जनहित के मामलों में कार्यपालिका अथवा विधायिका के क्षेत्रों में हस्तक्षेप करती दिखाई दे तो उसे न्यायिक सक्रियता की संज्ञा दी जाती है।
शुरुआत
न्यायाधीशों के स्थानांतरण के मामले में अपने ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय की सात न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने निर्णय दिया कि जनता का कोई भी व्यक्ति, भले ही उसका वाद से सीधा संबंध न हो पर उसमें उसकी ‘पर्याप्त रूचि’ हो, अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालय में गुहार कर सकता है अथवा मूल अधिकारों के उल्लंघन के मामले में उन व्यक्तियों की शिकायतों को दूर कराने के लिए जो ‘गरीबी, लाचारी या असमर्थता या सामजिक एवं आर्थिक विपन्नता’ के कारण न्यायालय का द्वार नहीं खटखटा सकते, सर्वोच्च न्यायालय में फरियाद कर सकता है (एसपी गुप्ता बनाम भारत एआईआर 1982 एससी 149)। इस निर्णय से लोकसेवी व्यक्ति/नागरिक को या समाजसेवी संगठनों को छूट मिल गई है कि वे आम जनता के हित में न्यायिक राहत की मांग कर सकें।
जनहित याचिका
अदालत में पेश की जाने वाली यह एक याचिका है जिसे पीड़ित पक्ष की जगह किसी अन्य निजी पक्ष द्वारा उठाया जाता है। ऐसे मामलों को अदालत भी स्वत: संज्ञान ले सकती है। न्यायिक सक्रियता के तहत अदालत ने जनता को जनहित याचिका के रूप में एक ऐसा हथियार दिया है जिससे जनहित से जुड़े मसलों में प्रयोग किया जा सके। 1980 से पहले केवल पीड़ित पक्ष ही न्याय के लिए अदालत से गुहार लगा सकता था। जस्टिस पीएन भगवती और जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर पहले न्यायाधीश थे जिन्होंने जनहित याचिका को अदालत में मंजूरी दी।
चर्चित न्यायिक सक्रियता
मसला: खदानों में मजदूरों की दुर्दशा
कदम: बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत संघ, एआइआर 1984 एसी 803 में बंधुआ-मुक्ति के प्रति समर्पित एक संगठन ने एक पत्र द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया कि हरियाणा के फरीदाबाद जिले में स्थित पत्थर खदानों में भारी संख्या में मजदूर ‘अमानवीय तथा असह्य परिस्थितियों’ में काम कर रहे हैं।
नतीजा: न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को कई मानक अपनाने के अलावा मजदूरों के पुनर्वास के निर्देश दिए
मसला: बच्चों पर अत्याचार
कदम: एक याचिका में शिकायत की गई कि विदेशियों को भारतीय बच्चे गोद देने के काम में लगे सामाजिक संगठन कदाचार कर रहे हैं
नतीजा: अदालत ने बच्चों का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए सिद्धांत तथा मापदंड निर्धारित किए।
मसला: ताजमहल संरक्षण
कदम: पर्यावरण कार्यकर्ता एमसी मेहता ने ताजमहल को प्रदूषण बचाने के लिए अदालत में याचिका डाली
नतीजा: सुप्रीम कोर्ट ने ताज परकोटे में आने वाले क्षेत्र में स्थित उद्योगों द्वारा कोयले के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके साथ ही ताजमहल के इर्द-गिर्द दो लाख पौधरोपण के आदेश भी दिए।
मामला: गंगा नदी प्रदूषण
कदम: एमसी मेहता ने गंगा नदी की स्वच्छता को लेकर दो प्रदूषक उद्योगों के खिलाफ याचिका दर्ज करायी लेकिन बाद में इस याचिका में एक लाख से ज्यादा उद्योगों और देश के आठ राज्यों के तीन सौ कस्बों को शामिल कर लिया गया।
नतीजा: कोर्ट ने अपने फैसले में औद्योगिक संयंत्रों को बंद करने के निर्देश दिए और प्रदूषकों पर वित्तीय जिम्मेदारी भी सौंपी और 250 शहरों और कस्बों को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने को कहा। पश्चिम बंगाल में चलाए जा रहे छह हजार चमड़े के कारखानों को एक सुनियोजित लेदर काम्पलेक्स में स्थानांतरित करने के आदेश दिए।
मसला: वाहनों से बढ़ता वायु प्रदूषण
कदम: कभी दुनिया के चौथे सबसे
प्रदूषित शहर दिल्ली की आबोहवा को सुधारने का श्रेय भी एमसी मेहता को जाता है। वायु प्रदूषण को कम करने के लिए मेहता ने एक याचिका दाखिल की।
नतीजा: सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश में शीशारहित पेट्रोल के उपयोग का आदेश दिया। इसके साथ-साथ वाहनों में प्राकृतिक गैस और अन्य स्वच्छ ईंधनों को बढ़ावा दिए जाने का निर्देश दिया।
मसला: दिल्ली के प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को अन्यत्र स्थापित करना
कदम: दिल्ली के औद्योगिक कचरों के दुष्प्रभाव से लोगों को बचाने के लिए ऐसे उद्योगों को दिल्ली के पड़ोसी राज्यों में स्थापित करने की पहल की गई।
नतीजा: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के रिहायशी क्षेत्रों में चल रहे उद्योग धंधों को एक औद्योगिक क्षेत्र में ले जाने का भी आदेश किया। इसके बाद अदालत ने दिल्ली सरकार को लघु उद्योगों के लिए 28 औद्योगिक क्षेत्रों में सीईटीपी (कॉमन ईफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स) स्थापित करने को कहा। इसके मामले के परिणामस्वरूप प्रदूषण फैलाने वाले एक लाख उद्योगों को दिल्ली से बाहर बसाया गया।
मसला: पर्यावरण के प्रति जागरूकता और शिक्षा
कदम: सुप्रीम कोर्ट के सामने इस अनूठे और ऐतिहासिक मसले को लाने वाले सचेतक एमसी मेहता ही हैं। इन्होंने देश भर के स्कूलों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता को अनिवार्य विषय के रूप में लागू किए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की
नतीजा: अदालत ने पर्यावरण के प्रति जागरूकता को देशभर के स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय स्तर के सभी शैक्षणिक संस्थानों में बतौर अनिवार्य विषय लागू किए जाने के आदेश दिए। भारत एकमात्र ऐसा देश हैै जहां के स्कूलों और कॉलेजों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता को एक अनिवार्य बिषय के रूप में पढ़ाया जाता है।
परदेस में भी प्रहरी
अमेरिका
1973 में रो बनाम वेड मामले में अदालत ने गर्भपात को कानूनी बताया। इसी तरह यहां 2000 के राष्ट्रपति चुनाव में अदालत ने ऐतिहासिक फैसला दिया। दो प्रमुख दलों के राष्ट्रपति उम्मीदवारों जार्ज डब्लू बुश और अल गोर के बीच इस मामले में 5-4 के बहुमत से न्यायालय ने फ्लोरिडा में वोटों की फिर से गिनती करने पर रोक लगाई। नतीजतन बुश राष्ट्रपति चुने गए।
यूरोपीय संघ
यूरोपीय संघ और उसके किसी सदस्य देश के बीच किसी विवाद की स्थिति में यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस सक्रिय हो जाता है। यह अदालत मामले में एक नई व्यवस्था देती है। जब यूरोपीय संघ और उसके सदस्य देश के बीच कोई संधि होती है तो सभी सरकारों के लिए एक स्पष्ट कानून के ढांचे पर सहमति बनाना बहुत मुश्किल होता है। इस मुश्किल का हल अदालत द्वारा तय किए जाने पर सारे पक्ष सहमत होते हैं। केसिस डी डिजॉन मामले में यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस ने यह व्यवस्था दी कि 15 से 25 फीसदी एल्कोहल की मात्रा वाली शराब की बिक्री पर रोक लगाने वाले जर्मन कानून यूरोपीय संघ के कानूनों से मेल नहीं खा रहे हैं।
कनाडा
यहां की कानून प्रणाली को ब्रिटिश कानून पद्धति से लिया गया है। यहां की अदालतें प्रमुख रूप से अपने न्यायाधीशों के विवेक, देश की नीति और कानून पर आश्रित हैं जो इसे एक कार्य सक्षम निकाय बनाते हैं। न्यायिक सक्रियता के मसले पर कनाडा की न्याय व्यवस्था अमेरिका की न्यायिक प्रणाली से बेहतर मानी जाती है।
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